
#गिरिडीह #गौसेवा : श्री गोपाल गौशाला परिसर में दीप प्रज्वलन के साथ ऐतिहासिक मेले का शुभारंभ – जनप्रतिनिधियों और श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़
- पचंबा स्थित श्री गोपाल गौशाला परिसर में हुआ 128वां मेला का भव्य उद्घाटन।
- जमुआ विधायक मंजू कुमारी, भाजपा जिलाध्यक्ष महादेव दुबे, दिनेश प्रसाद यादव, कामेश्वर पासवान और ज्ञान रंजन रहे उपस्थित।
- जनप्रतिनिधियों ने मेले को गिरिडीह की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान बताया।
- गौसेवा, सजावट और प्रबंधन की व्यवस्था की हुई खुलकर सराहना।
- मेले में भजन-कीर्तन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भक्तों की भारी भीड़ रही आकर्षण का केंद्र।
गिरिडीह जिले के पचंबा स्थित श्री गोपाल गौशाला परिसर में शुक्रवार को 128वां गोपाल गौशाला मेला का दूसरा दिन ऐतिहासिक बन गया, जब पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ दीप प्रज्वलन कर भव्य उद्घाटन किया गया। मेला परिसर रोशनी, भक्ति और सांस्कृतिक रंगों से सराबोर था। श्रद्धालु दूर-दराज के इलाकों से पहुंचकर इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बने।
परंपरा और संस्कृति का अद्भुत संगम
मेले का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ, जिसे जमुआ विधायक मंजू कुमारी, भाजपा जिलाध्यक्ष महादेव दुबे, सांसद प्रतिनिधि दिनेश प्रसाद यादव, प्रदेश मंत्री कामेश्वर पासवान, संयोजक मुकेश साहू, और नगर थाना प्रभारी ज्ञान रंजन ने संयुक्त रूप से किया। मंच पर मौजूद सभी अतिथियों का जोरदार स्वागत किया गया और गौशाला समिति के सदस्यों को पुष्पगुच्छ व अंगवस्त्र से सम्मानित किया गया।
विधायक मंजू कुमारी ने कहा: “यह मेला गिरिडीह की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान है, जो समाज में एकता और श्रद्धा का संदेश देता है।”
सांसद प्रतिनिधि दिनेश प्रसाद यादव ने कहा: “गिरिडीह का यह आयोजन झारखंड का गौरव है, जो वर्षों से गौसेवा और लोकपरंपरा को सहेजने का कार्य कर रहा है।”
जनप्रतिनिधियों ने की प्रबंधन की तारीफ
भाजपा जिलाध्यक्ष महादेव दुबे ने कहा कि इस बार गौशाला मेला की सजावट और प्रबंधन अत्यंत सराहनीय है। उन्होंने समिति को बधाई देते हुए कहा कि यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। कामेश्वर पासवान ने इसे राज्य का नंबर वन मेला बनने की दिशा में एक सशक्त प्रयास बताया और कहा कि इस परंपरा को आगे बढ़ाना हर नागरिक का कर्तव्य है।
श्रद्धा और जनसहभागिता की मिसाल
गौशाला परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रही। चारों ओर भक्ति गीतों की गूंज, झूले, प्रसाद वितरण और बच्चों की हंसी से माहौल उत्सवमय बन गया। आसपास के गांवों, कस्बों और जिलों से बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचे। गौसेवा, भजन संध्या, और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने कार्यक्रम की गरिमा बढ़ा दी।
स्थानीय युवाओं ने भी मेले के आयोजन में बढ़-चढ़कर सहयोग किया। स्वच्छता और व्यवस्था बनाए रखने में स्वयंसेवकों की भूमिका उल्लेखनीय रही। समिति के संयोजक मुकेश साहू ने कहा कि इस आयोजन का उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता बढ़ाना भी है।
मुकेश साहू ने कहा: “गौशाला मेला हमारे संस्कारों और परंपरा का प्रतीक है। हर वर्ष यहां की भीड़ यह साबित करती है कि लोग अब भी संस्कृति से गहराई से जुड़े हैं।”
प्रशासन और समाज की संयुक्त भूमिका
नगर थाना प्रभारी ज्ञान रंजन ने कहा कि पूरे आयोजन के दौरान सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रखी गई है। पुलिस प्रशासन और समिति मिलकर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। स्थानीय व्यापारी संगठनों ने भी मेला परिसर में दुकानें और स्टॉल लगाकर इस परंपरा को आर्थिक सहयोग दिया।
मेले में शाम के समय गौपूजन और भजन कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें बच्चों और महिलाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। मंच से कलाकारों ने देशभक्ति और सामाजिक गीतों की प्रस्तुति दी, जिससे माहौल और भी भावनात्मक हो गया।
समाजिक सौहार्द का संदेश
इस आयोजन ने गिरिडीह में सामाजिक एकता और धार्मिक सद्भाव का संदेश दिया। हिंदू-मुस्लिम समुदाय के कई लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए और गौशाला समिति के कार्यों की प्रशंसा की। यह आयोजन न केवल एक धार्मिक उत्सव रहा, बल्कि समाज में सद्भाव, सेवा और समर्पण की भावना को मजबूत करने वाला प्रतीक बन गया।
न्यूज़ देखो: संस्कृति और सेवा का प्रेरक संगम
गोपाल गौशाला मेला गिरिडीह की उस जीवंत परंपरा का प्रतीक है जो सेवा और संस्कृति को जोड़ती है। स्थानीय प्रशासन, जनता और समाजसेवी संगठनों के मिलेजुले प्रयासों से यह आयोजन एक मिसाल बन चुका है। ऐसे प्रयास न केवल धार्मिक आस्था को बढ़ाते हैं, बल्कि सामाजिक एकता की डोर को भी मजबूत करते हैं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
संस्कृति से जुड़ें, सेवा में सहभाग बनें
गौशाला मेला हमें यह सिखाता है कि संस्कृति की जड़ों से जुड़े रहना समाज की सबसे बड़ी ताकत है। अब समय है कि हर नागरिक अपने स्तर पर गौसेवा, स्वच्छता और लोक संस्कृति संरक्षण में योगदान दे।
अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को दोस्तों के साथ साझा करें और गिरिडीह की इस प्रेरणादायक परंपरा को झारखंड के हर कोने तक पहुंचाएं।




