#Gomia #PravasiMazdoor : 13 दिन बाद लौटी लाश – परिवार की उम्मीदें टूटीं
- नाइजर में 15 जुलाई को अपराधियों ने प्रवासी मजदूर गणेश करमाली की गोली मारकर हत्या की।
- 13 दिन बाद शव बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड के कारीपानी गांव पहुंचा।
- पत्नी-बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल, ग्रामीणों में गम का माहौल।
- गणेश घर के इकलौते कमाऊ सदस्य थे, पीछे छोड़ा मां-पिता, पत्नी और तीन बच्चे।
- विदेश में काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा पर उठे गंभीर सवाल।
बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड अंतर्गत तिलैया पंचायत के कारीपानी गांव के रहने वाले प्रवासी मजदूर गणेश करमाली का शव सोमवार देर रात पैतृक गांव पहुंचा।
13 दिनों से परिजन उनकी लाश का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही एम्बुलेंस शव लेकर गांव पहुंची, पूरा माहौल गमगीन हो गया।
अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण पहुंचे। हर किसी की आंखों में आंसू थे।
नाइजर में अपराधियों की गोली से मौत
बताया जा रहा है कि 15 जुलाई को पश्चिमी अफ्रीकी देश नाइजर में अज्ञात अपराधियों ने गणेश करमाली की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
वे वहां ट्रांसरेल लाइटिंग लिमिटेड कंपनी में काम कर रहे थे।
हमले में उत्तर प्रदेश के कृष्णा गुप्ता की भी मौत हुई, जबकि जम्मू-कश्मीर के रणजीत सिंह को अपराधियों ने अगवा कर लिया।
परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
गणेश करमाली (39) घर के इकलौते कमाऊ सदस्य थे। उन्होंने अपने पीछे मां गोलकी देवी, पिता धनाराम करमाली, पत्नी यशोदा देवी, दो बेटियां (राजकुमारी 17 साल, ज्योति 5 साल) और एक बेटा अंशू (2 साल) को छोड़ दिया।
पांच साल पहले उनके 10 वर्षीय बेटे की ट्रेन हादसे में मौत हो गई थी।
एक माह पूर्व बेटी की शादी हुई थी, लेकिन कंपनी से छुट्टी नहीं मिलने के कारण गणेश शामिल नहीं हो सके।
प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा पर सवाल
प्रवासी मजदूरों के हित में काम करने वाले सिकंदर अली ने कहा:
सिकंदर अली ने कहा: “यह पहली घटना नहीं है। नाइजर और अफ्रीकी देशों से पहले भी कई बार शव महीने भर बाद आए हैं। मजदूरों की सुरक्षा को लेकर सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे।”
इससे पहले 25 अप्रैल 2025 को नाइजर में झारखंड के गिरिडीह जिले के बगोदर के पांच मजदूरों का अपहरण हुआ था, जिनका आज तक पता नहीं चला है।
लगातार हो रही इन घटनाओं ने प्रवासी भारतीय मजदूरों की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है।
न्यूज़ देखो: प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा कब सुनिश्चित होगी?
गणेश करमाली की मौत एक बार फिर दिखाती है कि विदेश में काम करने वाले भारतीय मजदूर कितने असुरक्षित हैं।
सरकार और कंपनियों को मजदूरों की सुरक्षा, बीमा और संकट के समय त्वरित मदद के लिए मजबूत तंत्र विकसित करना होगा।
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