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नागपुरी थोपने का फैसला पलामू-गढ़वा की अस्मिता पर हमला — सूर्या सिंह

#पलामू #गढ़वा #झारखंडटीईटी : भाषाई आत्मसम्मान की लड़ाई में युवा नेता सूर्या सिंह ने सरकार पर बोला हमला — नागपुरी थोपे जाने के फैसले को बताया मगही-भोजपुरी संस्कृति पर सीधा प्रहार
  • पलामू और गढ़वा में नागपुरी को थोपे जाने के खिलाफ सूर्या सिंह ने जताया कड़ा विरोध
  • बोले: मगही और भोजपुरी को दबाने की कोशिश है यह फैसला
  • टीईटी 2025 में क्षेत्रीय भाषा चयन पर उठाया बड़ा सवाल
  • कहा: यह केवल भाषा नहीं, अस्मिता और अधिकार का प्रश्न है
  • फैसला वापस नहीं लिया गया, तो बड़ा जन आंदोलन खड़ा होगा

भाषा थोपे जाने के खिलाफ सूर्या सिंह का तीखा विरोध

भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता सूर्या सिंह ने झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा (JTET) 2025 के लिए पलामू और गढ़वा में नागपुरी को क्षेत्रीय भाषा के रूप में थोपे जाने के निर्णय को जनविरोधी और सांस्कृतिक आत्मा पर प्रहार बताया है। उन्होंने कहा कि यह महज़ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि मगही और भोजपुरी बोलने वाले करोड़ों लोगों की अस्मिता पर चोट है। उन्होंने कहा कि सदियों से इस क्षेत्र में लोग मगही और भोजपुरी में सोचते, बोलते और संवाद करते आए हैं, ऐसे में नागपुरी को थोपना जनविरोध, संवेदनहीनता और भाषाई राजनीति का घातक उदाहरण है।

सरकार पर लगाया क्षेत्रीय भेदभाव का आरोप

सूर्या सिंह ने इस फैसले को पलामू और गढ़वा के साथ सौतेला व्यवहार करार देते हुए कहा कि सरकार जानबूझकर इस क्षेत्र की आवाज को दबाना चाहती है। उन्होंने कहा कि

सूर्या सिंह ने कहा: “यह फैसला हमारी आने वाली पीढ़ियों से उनकी भाषाई जड़ों को काट देने जैसा है। अगर आज हम चुप रहे, तो कल हमारी भाषाएं किताबों से भी ग़ायब हो जाएंगी।”

जन आंदोलन की चेतावनी

सूर्या सिंह ने स्पष्ट किया कि अगर सरकार यह फैसला तुरंत वापस नहीं लेती, तो पलामू और गढ़वा की जनता सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेगी। उन्होंने कहा कि यह केवल विरोध नहीं बल्कि सम्मान, अधिकार और सांस्कृतिक पहचान की निर्णायक लड़ाई होगी। उन्होंने जनता से आह्वान किया कि वे एकजुट होकर इस संघर्ष में शामिल हों, क्योंकि

सूर्या सिंह ने कहा: “यह लड़ाई हर गांव, हर चौपाल, हर दिल से उठेगी और तब तक नहीं रुकेगी जब तक सरकार यह फैसला वापस नहीं लेती।”

मातृभाषाओं की बहाली की मांग

अंत में सूर्या सिंह ने झारखंड सरकार से मगही और भोजपुरी को पलामू-गढ़वा की क्षेत्रीय भाषा के रूप में बहाल करने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह भविष्य की पीढ़ियों की भाषाई सुरक्षा और सांस्कृतिक अस्तित्व की रक्षा की लड़ाई है, जिसे अब कोई नहीं रोक सकता।

न्यूज़ देखो: मातृभाषा की रक्षा में उठी आवाज

नागपुरी को पलामू और गढ़वा में थोपने का निर्णय केवल एक भाषाई विवाद नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान, स्थानीय भावना और भाषाई अधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा बन चुका है। जब एक क्षेत्र विशेष की मातृभाषा को दरकिनार कर किसी और क्षेत्र की भाषा थोपी जाती है, तो वह जनता की अस्मिता के लिए खतरा बन जाती है। न्यूज़ देखो इस आवाज को मंच दे रहा है — ताकि कोई सत्ता भाषाई पहचान को कुचल न सके।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

मातृभाषा को सम्मान दो — पहचान और अधिकार बचाओ

अपने क्षेत्र की भाषा, संस्कृति और पहचान को बचाए रखना सिर्फ सरकार का नहीं, हर नागरिक का भी कर्तव्य है। अब समय है एकजुट होकर आवाज उठाने का — ताकि आने वाली पीढ़ियों को उनकी मातृभाषा में ही सीखने और आगे बढ़ने का अधिकार मिले।
आप इस फैसले से सहमत हैं या विरोध में? नीचे कमेंट करें, अपनी राय दें और इस खबर को अपने दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ जरूर शेयर करें।

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