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गुमला के लवाबार गांव में जर्जर पुल बना जानलेवा रास्ता — बारिश में बढ़ी दुर्घटना की आशंका

#डुमरी #पुल_क्षति : स्कूल बच्चों और ग्रामीणों की जान खतरे में, प्रशासन से मरम्मत की मांग

पुल बना जान का जोखिम, ग्रामीणों का टूटा भरोसा

डुमरी प्रखंड के खेतली पंचायत अंतर्गत लवाबार गांव में ग्रामीणों की परेशानियां इन दिनों पुल की वजह से बढ़ गई हैं। मुख्य सड़क पर स्थित यह बड़ा पुल पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है, जिससे रोजमर्रा का आवागमन एक जोखिमपूर्ण कार्य बन गया है। खासकर स्कूली बच्चों, मरीजों और वृद्धों के लिए यह पुल डर और असहायता का प्रतीक बनता जा रहा है।

आवाजाही पर लगा ब्रेक, लंबा रास्ता बना मजबूरी

स्थानीय निवासी कमलेश इंदवार ने बताया कि अब बड़े वाहन पूरी तरह से इस पुल से गुजरने में असमर्थ हैं। छोटे वाहन जैसे बाइक या ऑटो भी बड़ी सावधानी से धीरे-धीरे इस पुल को पार करते हैं। जिन लोगों को बाजार जाना होता है या जरूरी काम होता है, वे या तो लंबा रास्ता पकड़ते हैं या फिर हर रोज जान हथेली पर लेकर इसी जर्जर पुल से गुजरते हैं।

बरसात में बढ़ा खतरा, बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित

ग्रामीण महिला रीना देवी ने बताया कि बरसात में पुल पर बने गड्ढों में पानी भर जाता है जिससे फिसलन और हादसों की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। स्कूल जाने वाले बच्चों के अभिभावकों के लिए हर दिन एक मानसिक तनाव का कारण बन चुका है यह पुल। उन्होंने कहा, “स्कूल वाहन जैसे-तैसे इस पुल से गुजरते हैं, लेकिन डर तो हर दिन बना ही रहता है।”

ग्रामीणों की मांग: प्रशासन तुरंत करे हस्तक्षेप

गांव के अन्य नागरिकों ने भी कहा कि यह स्थिति बहुत पुरानी है और सरकार को बार-बार सूचना देने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। उनकी मांग है कि:

कमलेश इंदवार ने कहा: “अगर प्रशासन ने शीघ्र कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो किसी दिन कोई बड़ी दुर्घटना हो सकती है।”

न्यूज़ देखो: नजरअंदाज न करें ग्रामीणों की आवाज़

लवाबार जैसे दूरस्थ गांवों में इन्फ्रास्ट्रक्चर की बदहाली ग्रामीण जीवन को खतरे में डाल रही है। यह सिर्फ पुल की मरम्मती का मामला नहीं है, यह सवाल है सरकार की प्राथमिकताओं का। अगर छोटे गांवों की बुनियादी जरूरतें अनदेखी की जाएंगी, तो सामाजिक संतुलन और भरोसा दोनों प्रभावित होंगे। प्रशासन को इस पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए

हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

सजग नागरिक, सुरक्षित रास्ते

ग्रामीणों की यह मांग किसी एक गांव की नहीं, बल्कि झारखंड के सैकड़ों गांवों की सामूहिक आवाज़ है। आइए, हम भी इस खबर को साझा करें, चर्चा में लाएं और प्रशासन को जगाएं — क्योंकि सुरक्षित रास्ता, सबका अधिकार है।

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