
#सिमडेगा #रामरेखा_धाम : श्रद्धा और भक्ति के संगम में डूबा सिमडेगा, राजकीय रूप में शुरू हुआ ऐतिहासिक रामरेखा मेला
- कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर रामरेखा धाम में महा अनुष्ठान के साथ मेले का शुभारंभ हुआ।
- उपायुक्त कंचन सिंह और पुलिस अधीक्षक एम. अर्शी सहित कई गणमान्य लोगों ने किया उद्घाटन।
- महंत अखंड दास जी महाराज ने कहा – “रामत्व अपनाना ही सच्ची भक्ति है।”
- मेले के दौरान रामरेखा धाम स्मारिका का किया गया विमोचन।
- राज्य सरकार ने इस वर्ष मेले को राजकीय महोत्सव के रूप में आयोजित किया है।
- श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर प्रशासन ने किए व्यापक इंतजाम।
सिमडेगा जिले के प्रसिद्ध रामरेखा धाम में मंगलवार को कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर महा अनुष्ठान के साथ भव्य रामरेखा मेला का शुभारंभ हुआ। यह आयोजन जिले में आस्था, भक्ति और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन गया। जिलेभर से पहुंचे श्रद्धालु भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना में लीन दिखे। प्रशासन की ओर से इसे राजकीय महोत्सव घोषित किए जाने के बाद कार्यक्रम की भव्यता और श्रद्धा दोनों का विशेष संगम देखने को मिला।
धार्मिक उत्साह और प्रशासनिक गरिमा का संगम
रामरेखा धाम परिसर में मंगलवार को सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। श्रद्धालुओं के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा। उपायुक्त कंचन सिंह, पुलिस अधीक्षक एम. अर्शी, रामरेखा धाम विकास समिति के अध्यक्ष अखंड दास जी महाराज, मुख्य संरक्षक दुर्ग विजय सिंह देव, संरक्षक कौशल राज सिंह देव और सचिव ओमप्रकाश साहू चैतन्य सहित कई गणमान्य लोग इस अवसर पर उपस्थित रहे। सभी ने संयुक्त रूप से पूजन-अर्चन, नारियल फोड़कर और दीप प्रज्वलित कर मेले का शुभारंभ किया।
इसके बाद उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक ने भगवान श्रीराम के विग्रह की पूजा कर जिले की सुख, शांति और समृद्धि की कामना की। इस दौरान रामरेखा धाम से संबंधित स्मारिका का भी विमोचन किया गया, जिसमें धाम की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का विस्तृत विवरण दिया गया है।
संतों ने दिया आस्था और भक्ति का संदेश
मंच से अपने आशीर्वचन में महंत अखंड दास जी महाराज ने कहा,
अखंड दास जी महाराज ने कहा: “राम सबके हैं, और उन्हें जानने के लिए स्वयं में रामत्व लाना आवश्यक है। इस कलियुग में केवल राम नाम की भक्ति ही जीवन को पवित्र और सफल बना सकती है।”
उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम ने मानवता, मर्यादा और सत्य का जो आदर्श प्रस्तुत किया, वही आज भी समाज में नैतिकता और धर्म का आधार है।
ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व का केंद्र
धाम के संरक्षक कौशल राज सिंह देव ने कहा कि
कौशल राज सिंह देव ने कहा: “रामरेखा धाम आस्था और आध्यात्मिकता का प्रतीक स्थल है। भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल में इस क्षेत्र में समय व्यतीत किया था और वनवासी समाज को समानता और प्रेम का संदेश दिया था।”
उन्होंने बताया कि यह भूमि साधु-संतों की तपोभूमि है, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु अपने जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भरने आते हैं। धाम में स्थित प्राकृतिक सौंदर्य, धार्मिक शिलालेख और ऐतिहासिक गुफाएं इस स्थल को विशेष बनाती हैं।
प्रशासन ने की सघन तैयारियां
उपायुक्त कंचन सिंह ने कहा कि
कंचन सिंह ने कहा: “रामरेखा धाम न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी सिमडेगा का सबसे महत्वपूर्ण स्थल है। भगवान श्रीराम के वनवास की स्मृतियाँ इस भूमि से जुड़ी हैं। इस वर्ष राज्य सरकार के निर्देशानुसार मेले को राजकीय स्वरूप दिया गया है और प्रशासन ने हर स्तर पर तैयारी की है।”
वहीं पुलिस अधीक्षक एम. अर्शी ने बताया कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए पर्याप्त संख्या में पुलिस बल और सुरक्षा कर्मी तैनात किए गए हैं।
एम. अर्शी ने कहा: “मेला परिसर और आसपास के क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो, इसके लिए कंट्रोल रूम और मॉनिटरिंग सिस्टम भी सक्रिय रखा गया है।”
भक्ति और संस्कृति का संगम बना मेला परिसर
मेला परिसर में सुबह से ही भजन-कीर्तन और रामधुन की गूंज सुनाई देती रही। श्रद्धालु दीप प्रज्वलित कर भगवान श्रीराम की आराधना करते दिखे। स्थानीय कलाकारों और सांस्कृतिक संस्थानों ने पारंपरिक नृत्य, कीर्तन और झांकी प्रस्तुत की। बच्चों और युवाओं में उत्साह देखते ही बन रहा था। मेला के दौरान प्रसाद वितरण और भक्ति सभाओं का आयोजन भी निरंतर जारी रहा।
श्रद्धालुओं के लिए बनी रहेगी अविस्मरणीय याद
रामरेखा धाम में आयोजित यह धार्मिक मेला न केवल आस्था का प्रतीक है बल्कि सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक बन चुका है। दूर-दराज के श्रद्धालु यहां आकर आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव कर रहे हैं। प्रशासन के कुशल प्रबंधन और स्थानीय सहयोग के चलते यह आयोजन पूर्णत: सफल रहा।
न्यूज़ देखो: आस्था और एकता का प्रतीक रामरेखा मेला
रामरेखा धाम का यह भव्य आयोजन दर्शाता है कि झारखंड की धार्मिक पहचान और सांस्कृतिक धरोहर कितनी समृद्ध है। प्रशासन की सजगता और श्रद्धालुओं की अनुशासनप्रियता से यह मेला जनसहयोग और श्रद्धा का अद्भुत उदाहरण बना है। यह आयोजन स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत को भी सशक्त बना रहा है।
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श्रद्धा में समर्पण और संस्कृति में एकता
भक्ति का यह पर्व हमें सिखाता है कि समाज में शांति, मर्यादा और प्रेम तभी संभव है जब हम धर्म के मार्ग पर चलें। आइए इस अवसर पर हम सब मिलकर सकारात्मकता और सद्भावना का संदेश फैलाएं। सजग रहें, सक्रिय बनें। अपनी राय कमेंट करें और इस शुभ समाचार को दोस्तों तक पहुंचाएं ताकि आस्था और एकता की यह प्रेरणा हर हृदय तक पहुंचे।




