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लातेहार में परहैया टोला की उपेक्षा उजागर — न नल से पानी, न सड़क से रास्ता

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#लातेहार #पेयजलसड़कसमस्या : चंदवा के परहैया टोला में आदिम जनजाति परिवार बुनियादी सुविधाओं से वंचित
  • चंदवा प्रखंड के परहैया टोला में नल-जल योजना के नल वर्षों से खराब पड़े हैं
  • सड़क की हालत इतनी खराब कि बरसात में पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है
  • ग्रामीण दशकों से एक पुराने कुएं के दूषित पानी पर निर्भर हैं
  • पंचायत समिति सदस्य अयुब खान ने डीसी से हस्तक्षेप की मांग की
  • गांव के कई लोग मजबूरी में पलायन कर रहे हैं, बाकी मजदूरी व बीनकर जीवन चलाते हैं

आदिम जनजाति टोले की प्यास बनी सरकारी उपेक्षा का प्रतीक

लातेहार जिले के चंदवा प्रखंड अंतर्गत दामोदर ग्राम के परहैया टोला में 20 परिवारों के करीब 100 से अधिक लोग आज भी शुद्ध पेयजल और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। यह टोला एनएच-99 (न्यू 22) के समीप पहाड़ी क्षेत्र में बसा हुआ है और प्रखंड मुख्यालय से केवल चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, बावजूद इसके विकास योजनाओं से दूर है।

नल-जल योजना यहां बनी मज़ाक

सरकार की नल-जल योजना, जो झारखंड में कई गांवों में शुद्ध पेयजल पहुँचाने का माध्यम बनी है, परहैया टोला में सिर्फ बोरे गए पाइप और टूटी मशीनों का नाम है। दो जगह बोरिंग कराए गए थे, लेकिन दोनों ड्राई निकले, नल से एक बूंद पानी नहीं निकल रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि गर्मियों में कुएं और चापाकलों का जलस्तर गिर जाता है, जिससे शादी-ब्याह या अंतिम संस्कार जैसे अवसरों पर भी पानी के लिए भारी संकट खड़ा हो जाता है।

टोले की वृद्ध महिला असरीता परहिन ने कहा: “हमलोग अभी भी कुएं का गंदा पानी पीते हैं, बहुत बार बोले लेकिन कोई अधिकारी सुनता ही नहीं।”

सड़क पर कीचड़, जीवन में संघर्ष

बरसात के कारण यहां की कच्ची सड़कें कीचड़ में तब्दील हो गई हैं। लोग पैदल चलने में भी लाचार हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों से लेकर बीमार मरीजों तक सभी को कंधे पर उठाकर बाहर ले जाना पड़ता है। ग्रामीणों ने बताया कि दसकों से सड़क की स्थिति नहीं बदली, आज भी गांव जाने का रास्ता बरसात में नदी बन जाता है।

रोज़ी-रोटी के लिए भी बाहर जाना मजबूरी

यहां के परहैया समुदाय के कुछ लोग सूप-दौरा बनाकर, तो कुछ मजदूरी या पलायन करके जीवन यापन करते हैं। विशाल परहैया, रोहित परहैया, धर्मदेव परहैया जैसे कई युवा दूसरे प्रदेशों में मजदूरी करने गए हैं, क्योंकि गांव में न काम है, न सुविधा। महिलाओं को जंगल से लकड़ी लाकर बेचना पड़ता है ताकि घर का चूल्हा जल सके।

अयुब खान ने किया दौरा, डीसी से हस्तक्षेप की मांग

चंदवा पंचायत समिति सदस्य अयुब खान ने परहैया टोला का दौरा कर वहां की स्थिति का जायजा लिया। उन्होंने बताया कि सरकार की योजनाएं ज़मीन तक नहीं पहुँच पा रही हैं। उन्होंने कहा कि परहैया समुदाय सरकार की सूची में ‘आदिम जनजाति’ होने के बावजूद उपेक्षित है।

अयुब खान ने कहा: “मैंने कई बार जलापूर्ति और सड़क के लिए अधिकारियों को लिखा, लेकिन आज भी हालात जस के तस हैं। डीसी महोदय को पत्र भेजकर इस टोले में शीघ्र पेयजल और सड़क की व्यवस्था की मांग की गई है।”

न्यूज़ देखो: जमीनी हकीकत से उठती पीड़ा की पुकार

न्यूज़ देखो की इस रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि झारखंड के दूरस्थ इलाकों में आदिम जनजातियों के लिए सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों में ही हैं। पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता, सामाजिक न्याय और विकास की अवधारणाओं को कटघरे में खड़ा करती है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

सजग नागरिक बनें, असली मुद्दों पर उठाएं आवाज़

विकास तभी सार्थक होता है जब वह अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक पहुंचे। इस रिपोर्ट को पढ़ें, साझा करें, और सरकारी तंत्र को जवाबदेह बनाने में अपनी भागीदारी निभाएं।
आपकी एक आवाज़ एक टोले की ज़िंदगी बदल सकती है।

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