Latehar

लातेहार में बैंकिंग सेवाओं की दुर्दशा, PNB बेतला शाखा से ग्रामीण बेहाल

#लातेहार #बैंकिंग_परेशानी – ई-केवाईसी के लिए डेढ़ महीने से भटक रही छात्रा, बैंककर्मियों की लापरवाही से नाराज़ ग्रामीण

  • लातेहार जिले में बैंकिंग व्यवस्था चरमराई, PNB बेतला शाखा सबसे ज्यादा लापरवाह
  • चौथी कक्षा की छात्रा लाडली कुमारी 1.5 महीने से करा रही बैंक के चक्कर
  • ई-केवाईसी के लिए फॉर्म और नगद जमा करने के बाद भी नहीं हो रहा काम
  • बैंककर्मी हर दिन टालते हैं – “कल आइए” कहकर
  • शाखा प्रबंधक से संपर्क नहीं हो पाया, फोन कॉल तक नहीं रिसीव कर रहे

बैंक के चक्कर काट रही चौथी की छात्रा, सिस्टम बना उपेक्षा का प्रतीक

लातेहार जिले के बरवाडीह प्रखंड अंतर्गत कंचनपुर गांव की निवासी और कक्षा चार की छात्रा लाडली कुमारी, पिछले डेढ़ महीने से पंजाब नेशनल बैंक बेतला शाखा का लगातार चक्कर काट रही है। ई-केवाईसी कराने के लिए लाडली ने 100 रुपये नगद के साथ फॉर्म जमा किया, लेकिन अब तक कार्य नहीं हुआ।

“हर दिन बैंककर्मी बस इतना कहते हैं – कल आइए, काम हो जाएगा। अब तक कुछ नहीं हुआ,” – लाडली के नाना बुद्धेश्वर सिंह

ननिहाल में रहकर पढ़ रही छात्रा, लाचार सिस्टम से परेशान

लाडली अपने ननिहाल कंचनपुर में रहकर पढ़ाई कर रही है। उसके पिता मुकेश सिंह अमडीहा, मंगरा से हैं। नाबालिग छात्रा के बैंक खाते से जुड़ी जरूरी प्रक्रिया के लिए वह स्कूल के समय में कटौती कर बार-बार बैंक जा रही है, लेकिन हर बार उसे झूठा आश्वासन देकर लौटा दिया जाता है।

बैंक के कर्मचारियों से जब इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि शाखा प्रबंधक से संपर्क करें, जबकि शाखा प्रबंधक शनि कुमार अपराह्न 2 बजे तक बैंक में ही नहीं पहुंचे। उनसे मोबाइल कॉल के जरिए भी संपर्क नहीं हो पाया।

PNB शाखा की निष्क्रियता से ग्रामीणों में आक्रोश

यह समस्या सिर्फ लाडली की नहीं है। बेतला शाखा के व्यवहार और सेवा से दर्जनों ग्रामीण त्रस्त हैं। ई-केवाईसी, आधार अपडेट, अकाउंट खोलने या बैंकिंग से जुड़ी किसी भी सामान्य प्रक्रिया के लिए लोगों को कई-कई बार आना पड़ता हैबुजुर्ग, छात्र, महिलाएं – सभी हताश हैं।

न्यूज़ देखो : जब एक बच्ची सिस्टम से हार मान रही हो, तब चुप रहना अन्याय है

न्यूज़ देखो मानता है कि एक छोटे से गांव की बच्ची जब सिस्टम की उपेक्षा से टूटने लगे, तो यह सिर्फ एक बैंकिंग लापरवाही नहीं, बल्कि सरकारी जवाबदेही की असफलता है। क्या एक ई-केवाईसी के लिए 45 दिन की दौड़ जरूरी है? ऐसे हालात में आम ग्रामीण नागरिक के लिए आर्थिक समावेशन सिर्फ कागजों में रह जाता है।

हम ऐसे हर मुद्दे को ज़मीन से उठाएंगे, आवाज़ को आगे बढ़ाएंगे और जिम्मेदारों को कठघरे में लाएंगे।

हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

सिस्टम की उदासीनता से नहीं, जन-जागरूकता से बदलेगी तस्वीर – आवाज़ उठाएं, बदलाव लाएं।

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