
#बानो #आक्रोश_रैली : आदिवासी एकता मंच ने अधिकार, जाति प्रमाण पत्र और पहचान से जुड़े मुद्दों पर बीडीओ के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा।
- आदिवासी एकता मंच के बैनर तले बड़ी आक्रोश रैली निकाली गई।
- रैली जयपाल सिंह मैदान से शुरू होकर बिरसा चौक तक पहुंची।
- बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर नेताओं ने लोगों को संबोधित किया।
- बिरजो कुंडलना और सुधीर डांग ने आदिवासी अधिकार जागरूकता पर जोर दिया।
- आनंद मसीह टोपनो ने जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने में हो रही परेशानी की बात उठाई।
- रैली के बाद बीडीओ नैमुदिन अंसारी को राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नाम पांच सूत्री मांगों का ज्ञापन सौंपा गया।
आदिवासी एकता मंच के नेतृत्व में गुरुवार को बानो प्रखंड में आयोजित आक्रोश रैली ने स्थानीय राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों का ध्यान अपनी ओर खींचा। रैली जयपाल सिंह मैदान से शुरू होकर मुख्य मार्ग से होते हुए बिरसा चौक पहुंची, जहां भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। इसके बाद मंच के प्रमुख नेताओं ने आदिवासी समुदाय की समस्याओं और अधिकारों के मुद्दे उठाते हुए लोगों को संबोधित किया। मांगे प्रस्तुत करने के बाद रैली प्रखंड मुख्यालय पहुंची और पदाधकारी के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा गया।
रैली का मार्ग और उद्देश्य
आक्रोश रैली सुबह जयपाल सिंह मैदान से निकाली गई। बड़ी संख्या में ग्रामीण, युवा और विभिन्न आदिवासी समूह इसमें शामिल हुए। जुलूस मुख्य पथ से गुजरते हुए बिरसा चौक पहुंचा, जहां भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर रैली ने प्रतीकात्मक सम्मान दिया। रैली का मुख्य उद्देश्य आदिवासी अधिकारों, भूमि सुरक्षा और प्रमाण पत्र संबंधी समस्याओं को सरकार तक पहुंचाना था।
नेताओं ने उठाए आदिवासी अधिकारों से जुड़े मुद्दे
बिरसा चौक पर आयोजित सभा में जिप सदस्य बिरजो कुंडलना और प्रमुख सुधीर डांग ने उपस्थित लोगों को संबोधित किया।
सुधीर डांग ने कहा कि झारखंड बने 25 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज भी आदिवासी समुदाय के हितों पर ठोस पहल नहीं दिखती।
सुधीर डांग ने कहा: “हम लोग वोट देकर विधायक और सांसद बनाते हैं, लेकिन जीतने के बाद वे हमें भूल जाते हैं। अब हमें अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़नी होगी।”
सभा में आदिवासी एकता मंच के अध्यक्ष आनंद मसीह टोपनो ने जाति प्रमाण पत्र की समस्या को गंभीर बताया।
आनंद मसीह टोपनो ने कहा: “लोहार और चिक बड़ाइक समाज को प्रमाण पत्र निर्गत कराने में भारी परेशानी है। महतो कुर्मी और अन्य जातियां आदिवासी में शामिल होने के लिए दबाव बना रही हैं, जिसके विरोध में हम लोग आज एकत्र हुए हैं। हमारा विरोध आगे भी जारी रहेगा।”
उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय अपनी ऐतिहासिक पहचान और आरक्षण संरचना से समझौता नहीं करेगा।
अनुसूचित जाति और जनजाति की सूची को लेकर चिंता
रैली में मौजूद नेताओं ने कहा कि 32 अनुसूचित जाति समुदायों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए और किसी भी प्रकार से उनके हिस्से का हक नहीं छीनने दिया जाएगा। समुदाय की मांग है कि जाति-सूची में बदलाव वैज्ञानिक, पारदर्शी और समुदाय के हितों को ध्यान में रख कर ही किए जाएं।
बीडीओ को सौंपा गया पांच सूत्री मांग पत्र
रैली के बाद जुलूस प्रखंड मुख्यालय पहुंचा, जहां प्रखंड विकास पदाधिकारी नैमुदिन अंसारी को राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नाम पांच सूत्री मांगों से युक्त ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन में विशेष रूप से जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने, आदिवासी समुदाय की भूमि सुरक्षा, और अधिकारों की रक्षा से जुड़े बिंदु शामिल थे।
ज्ञापन सौंपने के दौरान मंच के प्रमुख कार्यकर्ता अनूप मिंज, धर्मदास टोपनो, अनिल लुगुन, कृपा हेमरोम, इलियाजर कुंडलना, सहित कई कार्यकर्ता उपस्थित थे, जिन्होंने प्रशासन से मांगों पर त्वरित कार्रवाई की अपेक्षा जताई।
समुदाय की एकजुटता का संदेश
रैली ने यह स्पष्ट किया कि स्थानीय जनजातीय समुदाय अपनी समस्याओं को लेकर अब अधिक संगठित, मुखर और सक्रिय है। नेताओं का कहना है कि आने वाले दिनों में यदि मांगे पूरी नहीं होती हैं, तो आंदोलन को और व्यापक रूप दिया जाएगा।

न्यूज़ देखो: रैली ने उठाई आदिवासी अस्मिता की आवाज
इस रैली ने बानो प्रखंड ही नहीं, पूरे क्षेत्र में आदिवासी अस्मिता और अधिकारों से जुड़े मुद्दों को मजबूती से सामने रखा है। जाति प्रमाण पत्र और भूमि सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रशासन और सरकार का ध्यान जाना आवश्यक है। यह आंदोलन दिखाता है कि जनजातीय समुदाय अब अपनी आवाज संगठित तरीके से उठा रहा है और ठोस कार्रवाई की अपेक्षा करता है।
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अधिकारों की रक्षा का संकल्प, एकता की ताकत
जनजातीय समाज की आवाज जब एकजुट होकर उठती है, तब बदलाव की राह खुद बनती जाती है। बानो की यह रैली इसी जागरूकता और साहस का प्रतीक है, जो अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित संघर्ष की दिशा दिखाती है। अब समय है कि हर नागरिक, हर समुदाय अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझे और जिम्मेदारी निभाए। अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को साझा करें और आदिवासी अधिकारों की जागरूकता को आगे बढ़ाएं ताकि हर आवाज शासन तक मजबूती से पहुंचे।





