Simdega

बानो के संत मिखाइल औषधि अनुसंधान केंद्र में जड़ी-बूटियों से हो रहा गंभीर रोगों का उपचार

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#सिमडेगा #बानो : पिछले 25 वर्षों से संत मिखाइल औषधि अनुसंधान केंद्र हाटिंगहोडे में दुर्लभ रोगों का हर्बल उपचार कर रहे हैं डॉ. ऑस्कर हेमरोम
  • बानो प्रखंड के हाटिंगहोडे स्थित केंद्र पिछले 25 वर्षों से सेवा में सक्रिय।
  • ब्लड कैंसर, हेपेटाइटिस, हृदय रोग, कुष्ठ, लकवा जैसे गंभीर रोगों का इलाज।
  • सभी उपचार जड़ी-बूटी आधारित औषधियों से किए जाते हैं।
  • डॉ. ऑस्कर हेमरोम ने बताया कि इलाज पूरी तरह प्राकृतिक और पारंपरिक विधि पर आधारित है।
  • केंद्र में दूर-दराज के मरीजों का भी सफल उपचार किया जा रहा है।

सिमडेगा जिले के बानो प्रखंड के हाटिंगहोडे गांव में संचालित संत मिखाइल औषधि अनुसंधान केंद्र पिछले पच्चीस वर्षों से जनसेवा का उदाहरण बना हुआ है। यहाँ डॉ. ऑस्कर हेमरोम के निर्देशन में पारंपरिक औषधीय ज्ञान के माध्यम से कई जटिल और लाइलाज बीमारियों का सफल उपचार किया जा रहा है।

जड़ी-बूटी से उपचार की परंपरा

केंद्र में ब्लड कैंसर, हेपेटाइटिस, चर्म रोग, हृदय रोग, नामर्दी, हाइड्रोसिल, बवासीर, ब्रेन हेमरेज, कुष्ठ और लकवा जैसे गंभीर रोगों का इलाज किया जाता है। डॉक्टर हेमरोम का कहना है कि उपचार में पूरी तरह से प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल होता है, जिनके कोई दुष्प्रभाव नहीं होते।

डॉ. ऑस्कर हेमरोम ने कहा: “हम प्रकृति की गोद में छिपी औषधीय शक्ति का उपयोग करते हैं। जो दवाइयाँ हम तैयार करते हैं, वे पूरी तरह हर्बल होती हैं और मरीजों को स्वस्थ करने में प्रभावी सिद्ध हो रही हैं।”

ग्रामीणों के लिए आशा का केंद्र

यह औषधि केंद्र न केवल सिमडेगा बल्कि आस-पास के जिलों और पड़ोसी राज्यों के मरीजों के लिए भी आशा का केंद्र बन गया है। यहाँ दूर-दराज के गाँवों से आने वाले रोगियों का निःस्वार्थ भाव से इलाज किया जाता है। डॉ. हेमरोम और उनकी टीम का मानना है कि पारंपरिक चिकित्सा पद्धति आज भी आधुनिक चिकित्सा के साथ मिलकर समाज की सेवा कर सकती है।

न्यूज़ देखो: परंपरा और विज्ञान का अद्भुत संगम

संत मिखाइल औषधि अनुसंधान केंद्र यह साबित करता है कि जब पारंपरिक ज्ञान और सेवा भावना एक साथ आते हैं, तो परिणाम समाज के लिए अमूल्य हो जाते हैं। यह केंद्र न केवल बीमारियों से राहत दे रहा है, बल्कि ग्रामीण चिकित्सा के क्षेत्र में नई संभावनाओं के द्वार खोल रहा है।

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आयुर्वेदिक धरोहर की रक्षा का समय

आज जब आधुनिक दवाइयों पर निर्भरता बढ़ रही है, ऐसे में जड़ी-बूटी आधारित उपचार प्रणाली को बढ़ावा देना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। हमें इन परंपरागत चिकित्सा विधियों को संरक्षित और प्रसारित करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी प्रकृति से जुड़ी इस अनमोल धरोहर का लाभ उठा सकें। अपनी राय कमेंट करें और इस प्रेरक खबर को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाएँ।

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