
#गुमला #धान_अधिप्राप्ति : सरकार के 15 दिसंबर से लैंपस खोलने के आदेश के बावजूद चपका लैंपस बंद है।
गुमला जिले के घाघरा प्रखंड में सरकार के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद चपका स्थित लैंपस अब तक बंद पड़ा है। 15 दिसंबर से धान अधिप्राप्ति शुरू करने का आदेश किसानों को राहत देने के लिए जारी किया गया था। लैंपस बंद रहने से किसान बिचौलियों के हाथों कम दाम पर धान बेचने को मजबूर हैं। यह स्थिति सरकारी व्यवस्था की सुस्ती और निगरानी की कमी को उजागर करती है।
- 15 दिसंबर से धान अधिप्राप्ति शुरू करने का सरकारी आदेश।
- चपका लैंपस, घाघरा प्रखंड अब तक बंद।
- किसान उचित सरकारी मूल्य से वंचित।
- बिचौलियों और व्यापारियों को सीधा फायदा।
- किसानों को तत्काल नकदी की जरूरत।
- प्रशासन से तुरंत खरीद शुरू कराने की मांग।
झारखंड सरकार द्वारा राज्य भर में धान अधिप्राप्ति को समय पर शुरू कराने के उद्देश्य से 15 दिसंबर से सभी लैंपस खोलने का सख्त आदेश जारी किया गया था। इस आदेश का मकसद साफ था कि किसान अपनी मेहनत की फसल को बिचौलियों के हाथों औने-पौने दाम पर न बेचें और उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मिल सके। लेकिन गुमला जिले के घाघरा प्रखंड स्थित चपका लैंपस में जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट नजर आ रही है।
सरकारी आदेश बनाम जमीनी सच्चाई
सरकार की मंशा के अनुसार, धान अधिप्राप्ति केंद्र खुलते ही किसान सीधे लैंपस में अपनी उपज बेच सकें, जिससे उन्हें समय पर भुगतान और उचित मूल्य मिले। लेकिन चपका क्षेत्र के किसान बीते कई दिनों से लैंपस खुलने का इंतजार कर रहे हैं। केंद्र के मुख्य द्वार पर लटका ताला किसानों की उम्मीदों को लगातार तोड़ रहा है।
किसान इंतजार में, फसल घरों में पड़ी
चपका और आसपास के गांवों के किसान बताते हैं कि धान की कटाई पूरी हो चुकी है। फसल घरों और खलिहानों में रखी है, लेकिन लैंपस बंद होने के कारण वे उसे सरकारी दर पर नहीं बेच पा रहे हैं। लंबे समय तक इंतजार करना उनके लिए संभव नहीं है क्योंकि घर की जरूरतें, बच्चों की पढ़ाई, कर्ज की अदायगी और अगली फसल की तैयारी के लिए उन्हें तत्काल पैसों की आवश्यकता होती है।
बिचौलियों को मिल रहा सीधा फायदा
सरकारी व्यवस्था की इस सुस्ती का सबसे बड़ा लाभ बिचौलियों और निजी व्यापारियों को मिल रहा है। किसान बताते हैं कि गांव-गांव घूमकर व्यापारी कम कीमत पर धान खरीद रहे हैं। किसानों की मजबूरी का फायदा उठाकर वे सरकारी दर से काफी नीचे दाम तय कर रहे हैं।
मजबूरी में औने-पौने दाम पर बिक्री
कई किसानों ने बताया कि यदि लैंपस समय पर खुल जाता तो वे सरकारी दर पर धान बेचकर आर्थिक रूप से मजबूत स्थिति में होते। लेकिन नकदी की जरूरत और अनिश्चितता के कारण उन्हें मजबूरी में निजी व्यापारियों को धान बेचना पड़ रहा है। इससे उन्हें इस साल भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
किसानों की चिंता और नाराजगी
चपका क्षेत्र के किसानों में इस स्थिति को लेकर गहरी नाराजगी है। उनका कहना है कि सरकार हर साल धान अधिप्राप्ति को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन जब लाभ देने का समय आता है तो जमीनी स्तर पर व्यवस्थाएं चरमरा जाती हैं।
प्रशासनिक लापरवाही का आरोप
ग्रामीणों का आरोप है कि संबंधित विभाग और स्थानीय प्रशासन इस मामले में गंभीर नहीं है। यदि समय रहते लैंपस को क्रियाशील किया जाता, तो किसान आज बिचौलियों के चंगुल में नहीं फंसते। किसानों ने यह भी कहा कि सिर्फ कागजी आदेश जारी करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनकी सख्त मॉनिटरिंग भी जरूरी है।
आर्थिक नुकसान की आशंका
यदि जल्द ही चपका लैंपस को शुरू नहीं किया गया, तो किसानों को इस साल भारी वित्तीय नुकसान झेलना पड़ सकता है। धान की बिक्री से मिलने वाली राशि से ही किसान खाद, बीज और सिंचाई की व्यवस्था करते हैं। देर होने पर न सिर्फ मौजूदा फसल का नुकसान होगा, बल्कि अगली खेती भी प्रभावित होगी।
ग्रामीणों की प्रशासन से मांग
ग्रामीणों और किसानों ने जिला प्रशासन और संबंधित विभाग से मांग की है कि कागजी आदेशों से आगे बढ़कर तुरंत ठोस कार्रवाई की जाए। उनका कहना है कि चपका लैंपस को अविलंब खोलकर धान की खरीदारी शुरू कराई जाए, ताकि अन्नदाताओं को उनकी फसल का उचित सरकारी मूल्य मिल सके।
लैंपस की भूमिका और जिम्मेदारी
लैंपस का उद्देश्य ही किसानों को बिचौलियों से बचाकर सीधा लाभ देना है। ऐसे में जब लैंपस ही बंद पड़े हों, तो पूरी व्यवस्था पर सवाल उठना स्वाभाविक है। किसानों का कहना है कि यदि सरकार वास्तव में उनकी आय बढ़ाना चाहती है, तो उसे ऐसे मामलों में त्वरित हस्तक्षेप करना होगा।
भरोसे की परीक्षा
चपका लैंपस का बंद रहना न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि किसानों के भरोसे की भी परीक्षा ले रहा है। बार-बार ऐसी स्थितियां बनने से किसान सरकारी योजनाओं पर विश्वास खोने लगते हैं।
न्यूज़ देखो: आदेश से आगे अमल जरूरी
यह मामला दिखाता है कि सिर्फ आदेश जारी कर देना पर्याप्त नहीं है, जब तक उनका सही तरीके से पालन न हो। धान अधिप्राप्ति जैसी संवेदनशील व्यवस्था में देरी सीधे किसानों की जेब पर असर डालती है। अब यह देखना अहम होगा कि जिला प्रशासन कितनी जल्दी चपका लैंपस को चालू कर किसानों को राहत देता है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
अन्नदाता की आवाज को अनसुना न करें
किसान की मेहनत का सही मूल्य मिलना उसका अधिकार है, कोई उपकार नहीं। यदि समय पर लैंपस खुलता है, तो बिचौलियों की मनमानी अपने आप खत्म होगी। इस मुद्दे पर आपकी क्या राय है, क्या प्रशासन को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। अपनी बात कमेंट में लिखें, इस खबर को साझा करें और किसानों की आवाज को मजबूती देने में अपना योगदान दें।





