Giridih

शहीद सीताराम उपाध्याय की प्रतिमा का अब भी इंतजार, खोखली निकलीं वादों की घोषणाएं

#गिरिडीह #शहीद_सम्मान — 7 साल बीते, न तोरण द्वार बना, न प्रतिमा, मां-बाप जी रहे उपेक्षित जीवन

  • 18 मई 2017 को शहीद हुए थे बीएसएफ जवान सीताराम उपाध्याय
  • हर साल श्रद्धांजलि कार्यक्रम, लेकिन स्थायी स्मारक आज तक नहीं बना
  • सांसदों और अधिकारियों ने किए थे बड़े वादे — पर हकीकत में शून्य
  • दिव्यांग पिता और मां को सिर्फ ₹1000 पेंशन, कोई सरकारी सहायता नहीं
  • गांववालों में आक्रोश, सरकार और जनप्रतिनिधियों से सम्मान की मांग

श्रद्धांजलि की रस्म अदायगी, पर सम्मान अब भी अधूरा

गिरिडीह जिले के पालगंज गांव का नाम सीताराम उपाध्याय की बहादुरी से जुड़ चुका है। 18 मई 2017 को जम्मू-कश्मीर के आरएसपुरा सेक्टर में पाकिस्तानी गोलीबारी में देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले इस जवान की शहादत को आज सात साल बीत चुके हैं, लेकिन गांव में उनकी याद में एक प्रतिमा या स्मारक तक नहीं बन सका

हर साल गांव में बलिदान दिवस पर युवाओं द्वारा तिरंगा यात्रा निकाली जाती है, फोटो पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी जाती है, लेकिन स्थायी स्मारक के अभाव में यह आयोजन अधूरा लगता है

वादों की भरमार, ज़मीनी सच्चाई शून्य

शहादत के समय नेताओं और अधिकारियों ने श्रद्धांजलि देने की होड़ में कई बड़े ऐलान किए थे

धनबाद सांसद ढुल्लू महतो ने पालगंज मोड़ पर प्रतिमा निर्माण की घोषणा की,
गिरिडीह सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी ने तोरण द्वार का शिलान्यास किया

लेकिन सात साल बीतने के बाद भी न तो प्रतिमा बन सकी और न तोरण द्वारस्थानीय अधिकारियों का तर्क है कि “तोरण द्वार सरकारी प्रावधान में नहीं है”, और घोषणाएं कागजों से आगे नहीं बढ़ सकीं

मां-बाप की हालत बदतर, केवल नाम की पेंशन

शहीद के पिता ब्रजनंदन उपाध्याय दिव्यांग हैं और मां किरण देवी उम्रदराज
इनके नाम पर सिर्फ ₹1000 की पेंशन आती है, जो सम्मान के नाम पर एक मजाक से कम नहीं
कोई सरकारी सहायता नहीं, कोई विशेष सुविधा नहीं, और बेटा-बहू मधुबन में रहते हैं, जिससे माता-पिता अधिकतर अकेले जीवन बिता रहे हैं

“बेटा देश के लिए गया था, सरकार कहती है शहीदों को नहीं भुलाया जाएगा… लेकिन हमारे लिए कोई कुछ नहीं करता,” — ब्रजनंदन उपाध्याय, पिता

सवाल अब भी जिंदा है: कब मिलेगा सही सम्मान?

सात साल बाद भी सरकार और प्रशासन की चुप्पी ने लोगों को आहत किया है
गांव के लोग पूछते हैं —
क्या एक प्रतिमा बनवाने के लिए भी सात साल कम थे? क्या शहादत का इतना ही मोल है?

अब वक्त आ गया है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई जाए और घोषणाओं को धरातल पर उतारा जाएशहीद को असली श्रद्धांजलि तभी होगी, जब उनके नाम पर स्थायी स्मारक बने और उनके माता-पिता को सम्मान के साथ जीवन जीने का अवसर मिले

न्यूज़ देखो : शहादत का सम्मान, आपकी आवाज़

न्यूज़ देखो आपके सामने उन मुद्दों को लाता है, जो न्याय और सम्मान से जुड़े होते हैं
शहीद सीताराम उपाध्याय जैसे वीरों को सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं, हक और सम्मान चाहिए।
आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि देश के लिए बलिदान देने वालों की याद को सिर्फ रस्म अदायगी तक सीमित नहीं रहने देंगे
आपकी आवाज़ ही उनका सच्चा सम्मान है। जुड़े रहिए न्यूज़ देखो के साथ — सच और बदलाव के लिए।

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