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बरवाडीह में मां दुर्गा विसर्जन से पूर्व खोईछा व सिंदूर खेला की परंपरा ने बिखेरा उत्साह

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#बरवाडीह #दुर्गापूजा : महिलाओं ने पारंपरिक विधि-विधान से की खोईछा भराई और सिंदूर खेला, मां दुर्गा से सुख-शांति की कामना
  • बरवाडीह प्रखंड के विभिन्न पूजा पंडालों में विसर्जन से पूर्व आयोजन।
  • महिलाओं ने खोईछा भराई कर मां दुर्गा से आशीर्वाद लिया।
  • बंगाली परंपरा के अनुरूप हुआ सिंदूर खेला।
  • एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर दी मंगलकामनाएं।
  • पूरे आयोजन में श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर रहा।

बरवाडीह (लातेहार) के पूजा पंडालों में मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन से पूर्व पारंपरिक रस्मों का आयोजन बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ किया गया। महिलाओं ने पहले पूजा-अर्चना कर खोईछा भरने की परंपरा निभाई और माता रानी से सुख-शांति एवं समृद्धि का आशीर्वाद मांगा।

खोईछा भरने की रस्म

बरवाडीह रेलवे क्लब, बस स्टैंड स्थित आदि शक्ति मंदिर, गढ़वा टॉड दुर्गा मंडप सहित कई जगहों पर महिलाओं ने पारंपरिक विधि-विधान के अनुसार खोईछा भरने की रस्म पूरी की। यह परंपरा माता के आशीर्वाद स्वरूप अपने जीवन में सुख-समृद्धि लाने की मान्यता से जुड़ी है।

सिंदूर खेला की झलक

खोईछा भरने के बाद बंगाली परंपरा के अनुसार सिंदूर खेला का आयोजन किया गया। महिलाओं ने मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित किया और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं दीं। यह रस्म आपसी सौहार्द, वैवाहिक सुख और दीर्घायु की मंगलकामना का प्रतीक मानी जाती है।

श्रद्धालुओं का उत्साह

पूरे आयोजन के दौरान महिलाओं और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिली। भक्तों ने जयकारों और भक्ति गीतों के बीच मां दुर्गा से अगले वर्ष पुनः आने की प्रार्थना की। वातावरण पूरी तरह भक्तिमय और उमंग से भरा रहा।

न्यूज़ देखो: संस्कृति और आस्था का संगम

बरवाडीह में दुर्गापूजा के दौरान निभाई जाने वाली ये रस्में केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं बल्कि संस्कृति और परंपरा की जीवंत झलक भी हैं। ऐसी परंपराएं समाज में एकजुटता, प्रेम और आपसी विश्वास को और मजबूत करती हैं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

परंपरा निभाएं, संस्कृति संजोएं

आज जब आधुनिकता तेजी से फैल रही है, ऐसे आयोजनों के जरिए हमारी जड़ों से जुड़ी संस्कृति जीवित रहती है। अब समय है कि हम सब इन परंपराओं को न सिर्फ निभाएं बल्कि अगली पीढ़ी को भी सिखाएं। अपनी राय कमेंट करें और इस खबर को दोस्तों तक शेयर करें ताकि आस्था और संस्कृति का महत्व अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे।

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