
#गढ़वा #पलायन : जरही गांव के अजय कुमार की मुंबई में ट्रेन दुर्घटना में मौत ने स्थानीय रोजगार संकट और नेतृत्व की नाकामी पर गंभीर सवाल खड़े किए
• गढ़वा के जरही गांव निवासी 37 वर्षीय अजय कुमार की मुंबई में ट्रेन से कटकर मौत।
• कल्याण रेलवे स्टेशन के पास गार्डवाल निर्माण कार्य के दौरान दुर्घटना।
• परिवार का अकेला कमाऊ सदस्य था अजय कुमार।
• शव पहुंचते ही गांव में मातम, ग्रामीणों की भारी भीड़।
• घटना ने क्षेत्रीय पलायन, रोजगार संकट और जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही पर सवाल खड़े किए।
गढ़वा जिले के डंडई थाना क्षेत्र के जरही गांव के मूल निवासी अजय कुमार, उम्र 37 वर्ष, की महाराष्ट्र के कल्याण क्षेत्र में एक दुखद रेल दुर्घटना में मौत हो गई। अजय कुमार, जो अपने परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य थे, काम की तलाश में मुंबई गए थे। गुरुवार की सुबह लगभग छह बजे कल्याण रेलवे स्टेशन के पास गार्डवाल निर्माण के दौरान वे लोकल पैसेंजर ट्रेन की चपेट में आ गए, जिससे उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। रविवार को उनके शव के गांव पहुंचने पर वातावरण गमगीन हो गया और ग्रामीणों की भीड़ शोक संतप्त परिवार को ढांढस बंधाने के लिए उमड़ पड़ी। यह घटना न सिर्फ एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि पूरे क्षेत्र में बढ़ते पलायन और प्रशासनिक उदासीनता को भी उजागर करती है।
मुंबई में निर्माण कार्य के दौरान दर्दनाक हादसा
अजय कुमार बेहतर रोजगार की तलाश में मुंबई गए थे, जहां वे कल्याण रेलवे स्टेशन के पास गार्डवाल निर्माण कार्य में लगे हुए थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार निर्माण स्थल के पास काम करते समय अचानक विपरीत दिशा से आई लोकल पैसेंजर ट्रेन की चपेट में आ जाने से उनकी मौत हो गई। हादसा इतना तेज था कि मौके पर मौजूद लोग कुछ समझ भी नहीं पाए। काम के दौरान सुरक्षा के क्या इंतजाम थे—इस पर भी सवाल उठने लगे हैं।
परिवार का सहारा छिनने से सदमे में गांव
अजय कुमार अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। उनकी मौत ने परिवार की आर्थिक रीढ़ तोड़ दी है। उनके गांव में शव पहुंचते ही मातम का माहौल छा गया। सैकड़ों ग्रामीणों ने परिवार को सांत्वना दी, लेकिन सभी के दिल में यही पीड़ा रही कि आखिर कब तक रोजगार की तलाश में दूर-दराज शहरों में जाकर लोगों की जान जोखिम में पड़ती रहेगी।
पलायन की मजबूरी और टूटते वादों की कड़वी सच्चाई
यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि गढ़वा क्षेत्र की उस कड़वी हकीकत को सामने लाती है जिसमें रोजगार के अभाव में युवाओं को परिवार छोड़कर हजारों किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। वर्षों से यहां रोजगार सृजन, उद्योग स्थापना और कौशल विकास के वादे होते रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस परिणाम दिखाई नहीं देता। चुनावी भाषणों में दिए गए आश्वासन, जैसे कि स्थानीय उद्योग, प्रशिक्षण केंद्र और रोजगार के अवसर, चुनाव खत्म होते ही हवा हो जाते हैं।
जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न
इस दुखद घटना ने क्षेत्रीय नेताओं की जिम्मेदारी को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
लोग पूछ रहे हैं:
स्थानीय रोजगार के लिए रोडमैप कहाँ है?
पिछले पाँच वर्षों में क्षेत्रीय स्तर पर ऐसे क्या कदम उठाए गए जिनसे रोजगार का संकट कम हो सके? यहां कोई औद्योगिक परियोजना, कोई बड़ा रोजगार केंद्र या प्रशिक्षण योजना जमीन पर दिखाई नहीं देती।
पलायनग्रस्त गांवों के लिए योजना क्यों नहीं?
जरही जैसे गांवों से हर वर्ष बड़ी संख्या में युवा बाहर जाने को मजबूर हैं। इसके लिए क्या कोई विशेष योजना बनाई गई? क्या नेताओं के पास इस समस्या पर कोई दीर्घकालिक समाधान है?
जरही के ग्रामीणों का कहना है कि यदि स्थानीय स्तर पर रोजगार होता, तो अजय कुमार जैसे अनेक युवा अपनी जान जोखिम में डालकर महानगर नहीं जाते। यह घटना न केवल एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि व्यवस्था की गंभीर विफलता भी है।
व्यवस्था और नेतृत्व—दोनों को जागना होगा
अजय कुमार की मौत से साफ है कि इस क्षेत्र में रोजगार सृजन, औद्योगिक ढांचा, और कौशल विकास की योजनाएं सिर्फ कागजों में सीमित हैं। जब तक स्थानीय स्तर पर आय के स्थायी साधन विकसित नहीं किए जाएंगे, तब तक पलायन और दुर्घटनाओं का यह दुष्चक्र चलता रहेगा। यह जिम्मेदारी प्रशासन और जनप्रतिनिधियों दोनों की है कि वे सिर्फ आश्वासन न दें, बल्कि जमीनी हकीकत बदलें।
न्यूज़ देखो: पलायन की मजबूरी नहीं, समाधान की राह खोजनी होगी
अजय कुमार की मौत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि पलायन कोई विकल्प नहीं—यह मजबूरी है। यह घटना बताती है कि अब नेताओं के वादों से आगे बढ़कर ठोस नीतियों और क्रियान्वयन की जरूरत है। रोजगार सृजन, उद्योग स्थापना और ग्रामीण कौशल विकास को प्राथमिकता मिले तभी बदलाव आएगा। प्रशासन और नेतृत्व को मिलकर इस दिशा में गंभीर प्रयास करने होंगे, ताकि कोई और परिवार ऐसी त्रासदी न झेले।
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अब बदलाव की मांग करने का समय है
अजय कुमार की मौत केवल एक परिवार का दर्द नहीं—यह हमारी सामूहिक विफलता का आईना है। अब हमें आवाज उठानी होगी कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बनें, पलायन रुके और गांवों में विकास की रोशनी पहुंचे। अपने क्षेत्र की समस्याओं पर बात करें, नेताओं से जवाब मांगें और सकारात्मक बदलाव की दिशा में एकजुट हों।
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