#गुमला #जनजातीय_संस्कृति : दीपावली के दूसरे दिन गांवों में बच्चे और युवा घर-घर जाकर पारंपरिक भिक्षाटन और सामूहिक भोजन में शामिल
- डुमरी प्रखंड और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में जनजातीय समाज के लोग पारंपरिक रीति से भिक्षाटन करते नजर आए।
- बच्चे और युवा टोली बनाकर नगाड़ा, मांदर और झांझ की थाप पर नाचते-गाते घर-घर पहुंचे।
- भिक्षाटन गीत “धसा मसा रे सोहराई पीठा खा, आईज ख़बे मुर्गी मुड़ी कईल ख़बे लूआठ बाऊ, ढूक भूसडडी ढूक येहे घरे ढूक” के साथ मांगा गया।
- ग्रामीणों ने अन्न, पीठा, मिठाई और पैसे भिक्षा स्वरूप दिए और सामूहिक भोजन में शामिल हुए।
- युवा समाजसेवी प्रेम प्रकाश भगत ने बताया कि यह परंपरा भाईचारा, सहयोग और एकता की भावना को मजबूत करती है।
डुमरी और आसपास के गांवों में बुधवार को दीपावली के दूसरे दिन जनजातीय समाज ने अपनी प्राचीन और सांस्कृतिक परंपरा के अनुसार भिक्षाटन का उत्सव मनाया। सुबह से ही गांव के बच्चे और युवा टोली बनाकर नगाड़ा, मांदर और झांझ की थाप पर घर-घर जाकर भिक्षाटन करते नजर आए। इस अवसर पर पारंपरिक गीत “धसा मसा रे सोहराई पीठा खा, आईज ख़बे मुर्गी मुड़ी कईल ख़बे लूआठ बाऊ, ढूक भूसडडी ढूक येहे घरे ढूक” गाकर वे अन्न, पीठा, मिठाई और पैसे की भिक्षा मांगते रहे।
पारंपरिक गीत और नृत्य से उत्सव का रंग
भिक्षाटन करते हुए बच्चे और युवा पूरे उत्सव के रंग में रंग गए। उनके नृत्य और गीतों ने गांव में खुशियों का माहौल बना दिया। ग्रामीण भी अपनी परंपरा के अनुसार भिक्षा स्वरूप अन्न और पैसे देकर इस लोकरीति में शामिल हुए।
बीरेंद्र भगत ने बताया: “यह परंपरा हमारे पूर्वजों से चली आ रही है। इस दिन अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं रहता। सभी एक साथ खाते हैं और आनंद मनाते हैं।”
सामूहिक भोजन और भाईचारे का संदेश
एकत्रित अन्न और सामग्री को गांव के बाहर नदी किनारे ले जाकर सामूहिक पिकनिक भोजन बनाया गया। सभी ग्रामीणों ने साथ बैठकर भोजन किया और पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किया। इस दौरान माहौल खुशनुमा और उत्साहपूर्ण बना रहा।
युवा समाजसेवी प्रेम प्रकाश भगत ने कहा: “भिक्षाटन और सामूहिक भोज हमारी संस्कृति की पहचान है। इससे गांव में भाईचारा और एकता बनी रहती है। यह जनजातीय समाज के संस्कृति और सामूहिकता का प्रतीक पर्व है।”
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
इस परंपरा से बच्चों में संस्कृति की समझ बढ़ती है और युवा एक-दूसरे के सहयोग और समर्पण की भावना सीखते हैं। सामूहिक भोजन और नृत्य गांव में आपसी मेलजोल और समाज में एकता की भावना को मजबूत करता है। यह पर्व केवल आनंद का नहीं, बल्कि सामाजिक मूल्य और सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक है।
न्यूज़ देखो: जनजातीय संस्कृति की जीवंतता और सामाजिक एकता
डुमरी में दीपावली के अवसर पर निभाई गई यह परंपरा यह दर्शाती है कि सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के माध्यम से समाज में भाईचारा और सहयोग की भावना को मजबूत किया जा सकता है। ऐसे उत्सव न केवल पारंपरिक ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचाते हैं बल्कि युवा वर्ग में समाज और संस्कृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव भी पैदा करते हैं।
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हम सभी को चाहिए कि अपनी संस्कृति, परंपरा और सामाजिक रीतियों का सम्मान करें। दीपावली जैसे पर्व हमें एकजुटता और भाईचारे का संदेश देते हैं। अपनी राय कमेंट करें, खबर को शेयर करें और अपने समाज में सहयोग, प्रेम और एकता का संदेश फैलाएँ।