#मेदिनीनगर #श्रद्धांजलि : गुरुजी ने झारखंड को दी पहचान, नामधारी ने याद किए ऐतिहासिक पल
- पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन, दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में ली अंतिम सांस।
- पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने कहा, झारखंड नाम के पीछे गुरुजी की दृढ़ता।
- वनांचल नाम का प्रस्ताव किया था खारिज, आदिवासी अस्मिता के प्रतीक बने शिबू सोरेन।
- सुशील मोदी थे वनांचल के पक्ष में, नामधारी ने गुरुजी का दिया साथ।
- 15 नवंबर 2000 को झारखंड का गठन, गुरुजी की सोच बनी आंदोलन की आत्मा।
दिल्ली से उठी खबर, झारखंड में शोक की लहर
झारखंड आंदोलन के महानायक और पूर्व मुख्यमंत्री दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन सोमवार की सुबह दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में हुआ। उनकी मौत की खबर से न केवल झारखंड, बल्कि पूरा आदिवासी समाज शोकाकुल हो गया। राज्यभर में गहरी शोक की लहर है।
“शिबू सोरेन नहीं होते तो झारखंड नाम नहीं होता”
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने गुरुजी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि अगर शिबू सोरेन नहीं होते, तो आज राज्य का नाम शायद झारखंड नहीं होता।
इंदर सिंह नामधारी ने कहा: “उन्होंने वनांचल के प्रस्ताव का विरोध किया और अड़कर कहा कि यह राज्य झारखंड ही कहलाएगा।”
वनांचल प्रस्ताव का विरोध कर बनाया इतिहास
नामधारी ने याद किया कि जब बिहार से अलग राज्य गठन की प्रक्रिया अंतिम चरण में थी, तब विधानसभा में कुछ नेताओं ने राज्य का नाम ‘वनांचल’ रखने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन शिबू सोरेन ने इसका स्पष्ट विरोध किया। उन्होंने कहा कि “झारखंड” केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आंदोलन का प्रतीक है।
सुशील मोदी के विरोध के बीच बना झारखंड
नामधारी ने बताया कि उस समय भाजपा विधायक दल के नेता सुशील मोदी वनांचल नाम के पक्ष में थे, लेकिन उन्होंने स्वयं गुरुजी के तर्कों का समर्थन किया। अंततः गुरुजी की दृढ़ता के कारण 15 नवंबर 2000 को झारखंड एक स्वतंत्र राज्य बना।
“झारखंड शब्द ही आंदोलन की आत्मा”
इंदर सिंह नामधारी ने कहा कि शिबू सोरेन केवल एक नेता नहीं, बल्कि एक विचार, एक चेतना और एक आंदोलन का नाम थे। उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा।
नामधारी ने कहा: “वह राजनीतिक भूगोल के नहीं, बल्कि सांस्कृतिक नक्शे के निर्माता थे।”
न्यूज़ देखो: झारखंड की पहचान का प्रहरी
शिबू सोरेन ने जिस दृढ़ता से “झारखंड” नाम को बचाया, वह केवल एक नाम नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता और संघर्ष की आवाज थी। उनके योगदान को नमन करना ही नहीं, बल्कि उनके सपनों का झारखंड बनाना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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गुरुजी के सपनों का झारखंड बनाना ही सच्ची श्रद्धांजलि
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