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लाभर शिव मंदिर में सावन के अंतिम सोमवार पर आस्था का सैलाब, श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

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#लातेहार #सावनस्पेशल : मनोकामना सिद्ध महादेव के दरबार में उमड़ी भक्तों की भीड़
  • सावन के अंतिम सोमवार पर लाभर शिव मंदिर में भारी भीड़ उमड़ी।
  • मंदिर को मनोकामना सिद्ध महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
  • छिपादोहर, गारू, लात, चुंगरू और दूरदराज से पहुंचे भक्त।
  • सैकड़ों साल पुराना इतिहास, बुजुर्ग बताते हैं लगभग 150 साल पुराना मंदिर।
  • सावन पूर्णिमा पर विशाल मेला और भव्य भंडारा का आयोजन होता है।

लातेहार जिले के छिपादोहर स्थित लाभर शिव मंदिर में सावन के अंतिम सोमवार को श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। सुबह से ही लंबी कतारों में भक्त जल, बेलपत्र और दूध अर्पित कर भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद लेने पहुंचे। मंदिर परिसर ‘बोल बम’ और ‘हर हर महादेव’ के नारों से गूंजता रहा।

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। यही कारण है कि छिपादोहर के अलावा गारू, लात, चुंगरू, महुवाडाढ़ और दूरदराज के इलाकों से लोग बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं।

सैकड़ों साल पुराना है लाभर शिव मंदिर

लाभर शिव मंदिर का इतिहास रहस्यमय और प्राचीन है। मंदिर निर्माण की सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है, लेकिन बुजुर्गों का कहना है कि यह मंदिर कम से कम 150 साल पुराना है। पीढ़ी दर पीढ़ी यह मान्यता चली आ रही है कि यहां भगवान शिव स्वयंभू रूप में विराजमान हैं।

सावन पूर्णिमा पर लगता है मेला और भंडारा

सावन माह का महत्व यहां खास है। सावन पूर्णिमा के दिन मंदिर परिसर में विशाल मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस अवसर पर भव्य भंडारा भी होता है, जिसमें श्रद्धालुओं को महाप्रसाद परोसा जाता है। यह आयोजन श्रद्धालुओं के बीच भाईचारे और सामाजिक एकता का संदेश देता है।

मंदिर के पुजारी ने कहा: “लाभर शिव मंदिर में सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती। यही वजह है कि भक्त हर सावन में बड़ी संख्या में यहां आते हैं।”

न्यूज़ देखो: आस्था और परंपरा का संगम

लाभर शिव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह हमारी प्राचीन परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। ऐसे आयोजन समाज में एकता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देते हैं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

परंपरा को सहेजना हम सबकी जिम्मेदारी

धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों की महत्ता केवल पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक जुड़ाव और सकारात्मकता का स्रोत भी है। आइए, इन परंपराओं को जीवित रखें और आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाएं। अपनी राय कमेंट करें, और इस खबर को दोस्तों व परिवार के साथ शेयर करें, ताकि हमारी संस्कृति का संदेश दूर तक पहुंचे।

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