
#पलामू #बालसुरक्षा : रेस्क्यू बच्चों को सीडब्ल्यूसी के सामने पेश नहीं करने पर रेलवे को कार्रवाई का पत्र
- जपला स्टेशन पर 8 जुलाई को 6 नाबालिगों को रेस्क्यू किया गया था।
- आरपीएफ ने बच्चों को उनके माता-पिता को सौंप दिया, बिना सीडब्ल्यूसी के समक्ष पेश किए।
- बाल कल्याण समिति ने आरपीएफ की मनमानी और नियमों की अनदेखी को लेकर जताई चिंता।
- रेलवे को पत्र लिखकर कार्रवाई की अनुशंसा, बच्चों को गया सीडब्ल्यूसी के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश।
- अध्यक्ष शैलेन्द्रनाथ चतुर्वेदी ने मामले की पुष्टि करते हुए गंभीर संकेतों की बात कही।
बच्चों को बिना सीडब्ल्यूसी प्रक्रिया के लौटाया गया, समिति ने उठाए गंभीर सवाल
झारखंड के पलामू जिले के जपला रेलवे स्टेशन पर 8 जुलाई को आरपीएफ द्वारा 6 नाबालिग बच्चों को रेस्क्यू किया गया, लेकिन इसके बाद प्रक्रियागत चूक और कानूनी अनदेखी सामने आई है। रेस्क्यू के बाद इन बच्चों को बाल कल्याण समिति (CWC) के समक्ष प्रस्तुत करने के बजाय सीधे उनके माता-पिता को सौंप दिया गया।
आरपीएफ ने व्हाट्सएप पर दी जानकारी, समिति ने जताई आपत्ति
9 जुलाई को जपला आरपीएफ ने सीडब्ल्यूसी सदस्य रविशंकर कुमार को व्हाट्सएप के माध्यम से सूचित किया कि बच्चे घर से डांट के कारण भागे थे और उन्हें उनके परिजनों को सौंप दिया गया। बिना किसी दस्तावेजी प्रस्तुति, बच्चों को उनके घर भेज देना, समिति के अनुसार, बाल संरक्षण कानूनों की सीधी अनदेखी है।
बाल कल्याण समिति अध्यक्ष शैलेंद्रनाथ चतुर्वेदी ने कहा: “रेस्क्यू के बाद बच्चों को सीडब्ल्यूसी के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है। आरपीएफ का यह रवैया स्वेच्छाचार और प्रक्रिया की अवहेलना है। हमने रेलवे को कड़ा पत्र लिखा है।”
समिति को संदेह: असली कहानी छुपाई जा रही है
बाल कल्याण समिति का कहना है कि बच्चों को बाल श्रम के लिए ले जाए जाने की आशंका थी, लेकिन आरपीएफ ने ‘माता-पिता द्वारा डांटने’ वाली कहानी बना दी। यह कहानी न सिर्फ संदिग्ध है, बल्कि संभावित मानव तस्करी या बाल मजदूरी जैसे मामलों पर पर्दा डालने की कोशिश प्रतीत होती है।
सीडब्ल्यूसी की टिप्पणी में कहा गया है: “बच्चों की वापसी की प्रक्रिया में मनमानी और पारदर्शिता की कमी थी। बिना मेडिकल, काउंसलिंग और सत्यापन के बच्चों को सौंप देना अस्वीकार्य है।”
अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश, बच्चों को गया सीडब्ल्यूसी भेजने का निर्देश
पलामू बाल कल्याण समिति ने इस पूरे प्रकरण को गंभीर प्रशासनिक लापरवाही मानते हुए रेलवे के मुगलसराय डिवीजन स्थित आरपीएफ डिविजनल सुरक्षा आयुक्त को पत्र लिखा है। पत्र में जपला में तैनात आरपीएफ कर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई है। साथ ही, समिति ने कहा कि इन बच्चों को अब बिहार के गया स्थित सीडब्ल्यूसी के समक्ष प्रस्तुत किया जाए, क्योंकि सभी बच्चे गया जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के निवासी हैं।
न्यूज़ देखो: बच्चों की सुरक्षा में लापरवाही नहीं, जवाबदेही जरूरी
यह मामला साफ दर्शाता है कि रेल सुरक्षा बल जैसे जिम्मेदार एजेंसियों को बाल संरक्षण के कानूनों की पूर्ण समझ और पालन की आवश्यकता है। बच्चों को सुरक्षित रेस्क्यू करना ही काफी नहीं, बल्कि कानूनी प्रक्रिया से गुजराना और सीडब्ल्यूसी के समक्ष प्रस्तुत करना एक संवैधानिक जिम्मेदारी है। बाल मजदूरी, मानव तस्करी जैसे गंभीर विषयों की अनदेखी एक खतरनाक संकेत है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
बच्चों की आवाज़ को अनसुना न करें
हमें यह याद रखना होगा कि हर बच्चा देश का भविष्य है, और उनके साथ न्याय करना हम सबकी जिम्मेदारी है। यदि आप किसी बच्चे को संकट में देखें, तो चुप न रहें — जागरूक बनें, आवाज़ उठाएं और ज़रूरतमंद तक सहायता पहुंचाएं। इस खबर को साझा करें, कॉमेंट करें और बच्चों की सुरक्षा में सहभागी बनें।