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गढ़वा के कुम्हार दिवाली पर मिट्टी से रच रहे परंपरा और कला की नई कहानी

#गढ़वा #स्वदेशी_दिवाली : चार पीढ़ियों से चल रहा माटी कला का परंपरागत व्यवसाय बना स्थानीय आकर्षण का केंद्र

गढ़वा के मेन बाजार स्थित घड़ा पट्टी इलाका इन दिनों दिवाली की रौनक से जगमगा रहा है। हर दुकान पर मिट्टी की खुशबू और रंग-बिरंगे दीयों की चमक लोगों को आकर्षित कर रही है। इन्हीं दुकानों में परंपरागत दीये बेचने के लिए मेहनती कारीगर अनिल प्रजापति अपने परिवार के साथ बैठकर हस्तचालित चाक पर दीये, खिलौने और सजावटी वस्तुएं तैयार कर रहे हैं। उनके हाथों की कला सिर्फ मिट्टी को आकार नहीं देती, बल्कि उस मिट्टी में रची परंपरा और संस्कृति को जीवित रखती है।

चार पीढ़ियों से चली आ रही मिट्टी की परंपरा

अनिल प्रजापति का परिवार पिछले चार पीढ़ियों से कुम्हारगीरी के कार्य में लगा हुआ है। उनके दादा और पिता भी यही काम करते थे, और अब अनिल इसे अपने बच्चों तक पहुंचा रहे हैं। वे बताते हैं कि दिवाली के समय उनके बनाए मिट्टी के छोटे-बड़े दीये, कलश और खिलौने की काफी मांग रहती है। हाथों से बने ये दीये न सिर्फ घरों को रोशन करते हैं, बल्कि सैकड़ों वर्षों पुरानी भारतीय कारीगरी की आत्मा को भी जीवित रखते हैं।

अनिल प्रजापति ने मुस्कुराते हुए कहा: “हमारे हाथों से बनी हर चीज़ में आस्था और परंपरा की गंध है। जब लोग मिट्टी के दीये जलाते हैं, तो हमें लगता है जैसे हमारी मेहनत से उनके घर उजाले से भर गए हों।”

घड़ा पट्टी बाजार में स्वदेशी उत्सव की चमक

गढ़वा मेन बाजार का घड़ा पट्टी इलाका इन दिनों त्योहार की हलचल और स्वदेशी उत्पादों की रौनक से भर गया है। यहां स्थानीय कुम्हारों द्वारा बनाए गए दीये, कलश, मूर्तियां और खिलौने बड़ी मात्रा में बिक रहे हैं। लोग अब चीनी लाइटों की जगह मिट्टी के दीयों और हस्तनिर्मित सजावटों को प्राथमिकता दे रहे हैं।

एक स्थानीय ग्राहक ने बताया: “मिट्टी के दीये न केवल सुंदर दिखते हैं बल्कि हमारे त्योहार की असली परंपरा को भी बनाए रखते हैं। इस बार हमने पूरे घर को मिट्टी से बने सामानों से सजाया है।”

सरकारी पहल से नई उम्मीदें

झारखंड माटी कला बोर्ड और मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड की पहल से कारीगरों में नई ऊर्जा आई है। हाल ही में गढ़वा जिले में उपायुक्त दिनेश यादव के द्वारा माटी शिल्पकारों को 90% अनुदान पर विद्युत संचालित चाक दिए गए। इस योजना के तहत केवल ₹2350 अंशदान देकर कारीगर आधुनिक चाक प्राप्त कर सकते हैं।

उपायुक्त दिनेश यादव ने कहा था: “दीपावली और छठ पर्व के समय मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ जाती है। विद्युत संचालित चाक से कारीगर अधिक उत्पादन कर अपनी आय बढ़ा सकते हैं।”

इस योजना के तहत ग्राम तेनार की कांति देवी और राकेश कुमार प्रजापति को इलेक्ट्रिक चाक दिए गए, जबकि अन्य लाभुकों को प्रखंड कार्यालय से वितरण किया गया। जिला उद्योग केंद्र गढ़वा के महाप्रबंधक रघुवर सिंह, EoDB मैनेजर दीपक कुमार और प्रखंड उद्यमी समन्वयक आशीष कुमार सिंह भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

परंपरा और आधुनिकता का संगम जरूरी

हालांकि सरकार द्वारा की जा रही पहल सराहनीय है, लेकिन अनिल प्रजापति जैसे कई पारंपरिक कलाकार अब भी सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। हस्तचालित चाक से काम करने वाले इन कलाकारों को विद्युत चाक या प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई है। फिर भी इनका उत्साह कम नहीं हुआ। वे अपने हुनर से मिट्टी को जीवन देने का कार्य निरंतर जारी रखे हुए हैं।

अनिल कहते हैं: “हम मेहनत से डरते नहीं, बस चाहते हैं कि सरकार हम तक भी यह सुविधा पहुंचाए ताकि हम अपनी कला को और निखार सकें।”

न्यूज़ देखो: मिट्टी की खुशबू में आत्मनिर्भर भारत की कहानी

गढ़वा की घड़ा पट्टी में अनिल जैसे कलाकार यह साबित कर रहे हैं कि सच्चा उजाला मिट्टी से ही आता है। उनकी मेहनत और परंपरा आत्मनिर्भर भारत की असली ताकत है। ऐसे कलाकारों के सशक्तिकरण से ही स्थानीय अर्थव्यवस्था में स्थायी विकास संभव है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

मिट्टी के दीयों से जगमगाए उम्मीदों का दीप

दिवाली पर जब हम अपने घरों में दीये जलाएं, तो याद रखें कि हर दीये में किसी कारीगर का सपना जलता है। आइए, हम सब मिलकर इन हाथों को मजबूती दें जो मिट्टी से उम्मीद गढ़ते हैं।
स्वदेशी अपनाएं, स्थानीय कारीगरों का सम्मान करें और आत्मनिर्भर भारत की ज्योति को प्रखर बनाएं। अपनी राय कमेंट करें, खबर को साझा करें और दूसरों को भी स्वदेशी दीये खरीदने के लिए प्रेरित करें।

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