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घायलों को बचाने वाले बने अभियुक्त, दुमका में इंसानियत की मिसाल बना सवाल

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#दुमका #गुड_सेमैरिटन : सड़क हादसे में मदद करने वाले निरंजन मंडल पर ही हत्या का मुकदमा दर्ज, इंसानियत पर उठे सवाल
  • 20 सितम्बर को सड़क हादसे में घायल दो लोगों की मदद के लिए निरंजन मंडल ने दिखाई मानवता।
  • दोनों घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए उन्होंने खुद दौड़-धूप कर एंबुलेंस और इलाज की व्यवस्था की।
  • एक घायल को बेहतर इलाज के लिए भेजा गया, जबकि श्रवण मंडल को परिजन कुंडा और फिर रांची ले गए।
  • अब उसी घटना में मददगार निरंजन मंडल पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने जांच शुरू की।
  • स्थानीय लोगों में आक्रोश, बोले — “अगर मदद करना अपराध है, तो इंसानियत पर भरोसा कौन रखेगा?”

दुमका जिले की यह घटना इंसानियत और कानून दोनों के बीच गहरे सवाल छोड़ रही है। 20 सितम्बर को हुए सड़क हादसे में जब लोग तमाशबीन बने रहे, तब निरंजन मंडल ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए घायलों को अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था की। उन्होंने एंबुलेंस बुलाकर एक घायल को बेहतर इलाज के लिए भेजा, जबकि दूसरे घायल श्रवण मंडल को उनके परिजन आगे के उपचार के लिए ले गए। उस वक्त हर कोई उनकी मानवता की सराहना कर रहा था।

मददगार बना अभियुक्त

लेकिन अब वही निरंजन मंडल, जो उस दिन लोगों की जान बचाने में जुटे थे, खुद हत्या के अभियुक्त बना दिए गए हैं। पुलिस ने हादसे में घायल श्रवण मंडल की मृत्यु के बाद इस मामले में निरंजन मंडल के खिलाफ धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया है। इस कार्रवाई ने न केवल स्थानीय लोगों को चौंका दिया है बल्कि “गुड सेमैरिटन” कानून की भावना पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं, जो नागरिकों को जरूरतमंदों की मदद के लिए प्रोत्साहित करता है।

स्थानीय प्रतिक्रिया और सवाल

घटना के बाद पूरे क्षेत्र में आक्रोश और निराशा का माहौल है। ग्रामीणों ने कहा कि अगर किसी घायल की मदद करने पर हत्या का आरोप लग सकता है, तो आगे कौन किसी की मदद करेगा?

एक स्थानीय निवासी ने कहा: “निरंजन मंडल ने जो किया वह इंसानियत का सबसे बड़ा उदाहरण था। अब उसी को सजा मिल रही है, यह व्यवस्था पर कलंक है।”

इंसानियत बनाम कानून का टकराव

कानून का उद्देश्य न्याय है, लेकिन जब कानून की प्रक्रिया ही मददगार को दोषी बना दे, तो समाज में डर पैदा होना स्वाभाविक है। सरकार ने गुड सेमैरिटन नीति लाकर यह सुनिश्चित किया था कि किसी घायल की मदद करने वाले व्यक्ति को किसी कानूनी झंझट में न फंसना पड़े। लेकिन दुमका की यह घटना इस नीति के क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है।

न्यूज़ देखो: इंसानियत पर भारी कानूनी जाल

यह घटना केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे समाज की चिंता है। जब मदद करने वाले को ही अपराधी बना दिया जाए, तो यह संदेश जाता है कि संवेदना दिखाना खतरे से खाली नहीं। जरूरत है कि प्रशासन इस मामले की निष्पक्ष जांच करे और “गुड सेमैरिटन” कानून के दायरे में रहकर न्याय सुनिश्चित करे।

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मदद को अपराध न बनने दें

हम सबके भीतर इंसानियत जिंदा रहनी चाहिए। अगर कानून की जटिलता के डर से कोई घायल सड़क पर तड़पता रह जाए, तो यह हमारे समाज की हार है। अब समय है कि हम “गुड सेमैरिटन” जैसे मानवता के प्रतीक व्यक्तियों के समर्थन में खड़े हों। अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को शेयर करें, और जागरूकता फैलाएं ताकि मददगारों को सम्मान मिले, सजा नहीं।

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