
#गढ़वा #सर्पदंश_इलाज – बरसात शुरू होते ही तीन लोगों को सांप और विषैले जीवों ने काटा, गढ़वा सदर अस्पताल की तत्परता से सभी की जान बचाई गई
- रारो, संगवरिया और चमरही गांव में हुए सर्पदंश के तीन मामले
- गढ़वा सदर अस्पताल में एंटी वेनम इंजेक्शन से सभी को मिली नई ज़िंदगी
- डॉक्टरों की मुस्तैदी और आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था से हुआ असरदार इलाज
- बरसात में बढ़ी विषैले जीव-जंतुओं की सक्रियता, ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास अब भी बड़ी चुनौती
- स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने ओझा-गुनी के बजाय तत्काल अस्पताल पहुंचने की दी सलाह
इलाज में तत्परता बनी जीवन रक्षक
गढ़वा जिले में शनिवार का दिन स्वास्थ्य विभाग के लिए परीक्षा की घड़ी बनकर सामने आया — लेकिन गढ़वा सदर अस्पताल की चिकित्सा टीम ने सर्पदंश और विषैले जीव-जंतु के काटने की तीन अलग-अलग घटनाओं में जान बचाकर मिसाल पेश की। बरसात के मौसम में ऐसे मामलों में इज़ाफा देखा जा रहा है, और इस बार समय पर इलाज से सभी मरीज सुरक्षित बाहर आ गए।
मामला 1: खेत में काम कर रहीं सुनीता देवी को विषैले जीव ने काटा
डंडई थाना क्षेत्र के रारो गांव की सुनीता देवी, पति अंबिका पासवान, खेत में झांकी उठाते वक्त किसी विषैले जीव के काटने की शिकार हो गईं। उन्हें पहले डंडई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां से गढ़वा सदर अस्पताल रेफर किया गया। डॉक्टरों ने तत्काल एंटी वेनम इंजेक्शन देकर जान बचाई।
मामला 2: शौचालय का दरवाजा खोलते समय मीना देवी पर हमला
मेराल थाना क्षेत्र के संगवरिया गांव की मीना देवी, पति रामजी साव, जब शौचालय का दरवाजा खोल रही थीं, उसी वक्त सांप ने उन्हें डस लिया। प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें भी गढ़वा सदर अस्पताल लाया गया, जहां तेजी से इलाज हुआ और वे खतरे से बाहर आ गईं।
मामला 3: ईंट हटाते समय जुबेदा बीवी को सांप ने काटा
गढ़वा थाना क्षेत्र के चमरही गांव में जुबैदा बीवी, पति अख्तर शेख, घर के पास रखी ईंटें हटा रही थीं, तभी सांप ने डस लिया। परिवार वाले सीधे उन्हें गढ़वा सदर अस्पताल ले आए। डॉक्टरों की तत्परता और एंटी वेनम की पर्याप्त उपलब्धता ने उनकी जान बचाई।
प्रशासनिक तैयारी और सामाजिक चेतना, दोनों जरूरी
गढ़वा सदर अस्पताल प्रशासन के अनुसार, बरसात के मौसम में सर्पदंश के मामले आम हो जाते हैं। इस स्थिति को देखते हुए हर प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एंटी वेनम इंजेक्शन की पहले से आपूर्ति की गई है। डॉक्टरों ने बताया कि यदि एक घंटे के अंदर इलाज हो जाए, तो सर्पदंश से जान बचाई जा सकती है।
एक वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा: “अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में पहले ओझा-गुनी के पास जाने की प्रवृत्ति है, जिससे इलाज में देरी होती है और मौत की आशंका बढ़ जाती है। यह मानसिकता बदलनी होगी।”
न्यूज़ देखो: सजगता और वैज्ञानिक सोच से बच सकती है जान
इन घटनाओं ने साफ कर दिया है कि चिकित्सकीय तैयारी, सामयिक इलाज और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही जीवन रक्षक बन सकते हैं। अंधविश्वास और झाड़-फूंक से ऊपर उठकर यदि समाज अस्पताल को प्राथमिकता दे, तो सर्पदंश जैसी घटनाओं में होने वाली अनावश्यक मौतें रोकी जा सकती हैं।
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