#गुमला #शिवधामटांगीनाथ : जहां झारखंड के घने जंगलों के बीच भगवान परशुराम का फरसा बन गया है आस्था का प्रतीक — सावन में उमड़ती है हजारों श्रद्धालुओं की भीड़
- गुमला जिले में स्थित है टांगीनाथ धाम, जिसे झारखंड का ‘कैलाश’ कहा जाता है
- भगवान परशुराम के लोहे के फरसे को माना जाता है अविनाशी त्रिशूल, जो आज भी जंग नहीं खाता
- सावन में हजारों श्रद्धालु कठिन चढ़ाई पार कर भोलेनाथ को अर्पित करते हैं जल
- 360 शिवलिंग, बुद्धकालीन मूर्तियां और 8 पंक्तिबद्ध शिवलिंग बनाते हैं इसे अनोखा तीर्थ
- नागपुरी भाषा में होती है पूजा, 2000 वर्षों से इस क्षेत्र की परंपरा और मान्यता जीवित
- राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की जरूरत — संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए प्रशासनिक पहल की दरकार
आस्था और रहस्य का संगम: झारखंड का टांगीनाथ धाम
झारखंड के गुमला जिले से 40 किमी दूर स्थित टांगीनाथ धाम को ‘कैलाश’ की उपमा दी जाती है। यह स्थान पहाड़ों और जंगलों के मध्य स्थित एक चमत्कारिक शिवधाम है, जहां सदियों पुराना लोहे का फरसा, जिसे त्रिशूल रूप में पूजा जाता है, आज भी जंग रहित है। मान्यता है कि यह फरसा भगवान परशुराम का है — जिन्हें शिव का रौद्र अवतार माना गया है। श्रद्धालु मानते हैं कि यहां शिव स्वयं विराजमान हैं।
सावन में भक्तों का अद्भुत संगम
सावन की पहली सोमवारी से ही यहां कांवड़ियों और साधकों की भीड़ उमड़ पड़ती है। भोलेनाथ को जल अर्पित करने के लिए लोग घने जंगलों और कठिन चढ़ाई को पार कर यहां पहुंचते हैं। चारों ओर गूंजता बोल बम, ढोल-नगाड़े और पारंपरिक गीत इस जगह को शिव की तपस्थली बना देते हैं।
मंदिर का स्वरूप और ऐतिहासिक धरोहर
करीब 10,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैले टांगीनाथ धाम परिसर में शिव, विष्णु, लक्ष्मी, सूर्य आदि की सैकड़ों प्राचीन मूर्तियां स्थापित हैं। इनमें से कई मूर्तियों को बुद्धकालीन भी माना जाता है। इसके अलावा 360 शिवलिंग और 8 पंक्तिबद्ध शिवलिंग पहाड़ी चक्रधारी मंदिर में विराजमान हैं। नीचे सर्प गुफा है, जिसे हाल ही में खोला गया है — यह गुफा 1500 फीट से भी अधिक लंबी है।
नागपुरी में होती है पूजा, नारियल पर मन्नत की परंपरा
यहां पूजा की एक अलग परंपरा है। नागपुरी भाषा में पूजा कराना यहां 2,000 वर्षों से प्रचलित परंपरा रही है। बैगा पुजारी ही पूजा कराते हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि नारियल चढ़ाकर की गई मन्नत जरूर पूरी होती है, और उसके बाद उन्हें दोगुना नारियल चढ़ाना अनिवार्य होता है।
स्थानीय बैगा पुजारी ने बताया: “यह शिवधाम केवल पूजा का स्थान नहीं, यह उस शक्ति का केंद्र है जो हमारी परंपरा और आस्था दोनों को जीवंत रखती है।”
प्राकृतिक सौंदर्य और आत्मचिंतन का केंद्र
हरियाली, पहाड़ी श्रृंखलाएं और शांत वातावरण इस स्थल को ध्यान और आत्मिक शांति का अद्भुत स्थान बनाते हैं। पर्यटक और साधक यहां प्रकृति के साथ अध्यात्म का अद्वितीय संगम महसूस करते हैं।
राष्ट्रीय धरोहर के रूप में हो संरक्षण
टांगीनाथ धाम आज केवल झारखंड नहीं, पूरे भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर बन सकता है। इसकी पुरातात्विक, आध्यात्मिक और पर्यटनीय महत्ता को ध्यान में रखते हुए पर्यटन मंत्रालय, पुरातत्व विभाग और राज्य सरकार को चाहिए कि इसके संरक्षण, शोध और प्रचार के लिए विशेष योजना लाएं।
झारखंड के इतिहासकार डॉ. रमेश मिंज ने कहा: “टांगीनाथ जैसे स्थलों को संरक्षण मिलने से यह देश की ऐतिहासिक धरोहर बन सकते हैं और झारखंड की पहचान दुनिया के धार्मिक मानचित्र पर उभर सकती है।”




न्यूज़ देखो: झारखंड की आध्यात्मिक विरासत की गूंज
न्यूज़ देखो सदैव ऐसे अद्भुत, ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को समाज के समक्ष लाकर उनकी महत्ता को उजागर करने में विश्वास रखता है। टांगीनाथ धाम केवल आस्था नहीं, परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का जीता-जागता उदाहरण है, जिसे प्रशासनिक संरक्षण और राष्ट्रीय पहचान की आवश्यकता है।
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सजग नागरिकता से संवरेगा शिवधाम
आइए, इस सावन में न केवल भोलेनाथ की पूजा करें, बल्कि अपने धार्मिक स्थलों की पहचान को संरक्षित करने का संकल्प लें। इस लेख को साझा करें, टांगीनाथ धाम की अनूठी आस्था को देश-दुनिया तक पहुंचाएं और सकारात्मक सोच के साथ सामाजिक साझेदारी निभाएं।