
#डुमरी #गुमला #इंद्रदेवपूजन : सैकड़ों ग्रामीणों ने पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ की इंद्रदेव की पूजा — अच्छी बारिश और फसल के लिए की प्रार्थना
- डुमरी के झुमरा स्थल पर हुआ पारंपरिक जल अर्पण अनुष्ठान
- आदिवासी समुदाय ने रीति-रिवाज से की भगवान इंद्रदेव की पूजा
- अच्छी वर्षा, सुख-शांति और फसल के लिए की सामूहिक प्रार्थना
- महिला-पुरुष-बच्चों ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ लिया भाग
- आस्था, परंपरा और प्रकृति से जुड़ने की अद्भुत मिसाल पेश की गई
सदियों पुरानी परंपरा को जीवित रखने का प्रयास
गुमला जिले के डुमरी प्रखंड अंतर्गत स्थित ऐतिहासिक झुमरा स्थल पर मंगलवार को एक महत्वपूर्ण पारंपरिक आयोजन हुआ। क्षेत्र के आदिवासी समुदाय ने अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार भगवान इंद्रदेव को जल अर्पित कर अच्छी वर्षा और समृद्धि के लिए विशेष पूजा-अर्चना की। ग्रामीणों ने बताया कि यह परंपरा वर्षों पुरानी है और आज भी उसी श्रद्धा और आस्था के साथ निभाई जाती है।
अच्छी बारिश के लिए की गई प्रार्थना
इस आयोजन का उद्देश्य इंद्रदेव को प्रसन्न करना है ताकि समय पर बारिश हो और खेतों में अच्छी फसल हो। आदिवासी समाज का विश्वास है कि इंद्रदेव की कृपा से ही वर्षा समय पर होती है, जिससे किसानों का जीवन सुखमय होता है और क्षेत्र में समृद्धि आती है। इस मौके पर ग्रामीणों ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर गीत गाते हुए सामूहिक रूप से वर्षा की प्रार्थना की।
पीढ़ियों से चल रही परंपरा में उमड़ा जनसमूह
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिला, पुरुष और बच्चे शामिल हुए। सभी ने मिलकर सामूहिक रूप से जल अर्पित कर भगवान इंद्रदेव से अच्छी फसल, सुख-शांति और खुशहाली की कामना की। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और भविष्य की पीढ़ियां भी इसे निभाती रहेंगी।
ग्रामवासी बुधू उरांव ने कहा: “हमारे पूर्वजों से मिली इस परंपरा को हम पूरी श्रद्धा से निभाते हैं। भगवान इंद्रदेव हमारी बारिश की प्रार्थना जरूर सुनेंगे।”
धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत का संगम
ग्रामीणों का मानना है कि यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ जुड़ाव और सामूहिक एकता का प्रतीक भी है। यह स्थानीय संस्कृति और परंपरा को जीवंत बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। ऐसे आयोजन पर्यावरण चेतना को भी बढ़ावा देते हैं।

न्यूज़ देखो: लोक परंपराओं में रची-बसी प्रकृति की पूजा
झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी प्रकृति के प्रति आस्था और सामूहिक पूजा की परंपराएं जीवित हैं, जो आधुनिकता के दौर में भी अपनी जड़ों से जुड़ाव का प्रमाण देती हैं। डुमरी प्रखंड में इंद्रदेव को जल अर्पित करने की यह परंपरा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना और पर्यावरणीय संतुलन की सोच को भी दर्शाती है। न्यूज़ देखो ऐसे आयोजनों की महत्ता को समझता है और लोक-परंपराओं की सजीव झलक को सामने लाकर समाज को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य करता रहेगा।
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प्रकृति और परंपरा से जुड़कर बढ़ेगी हमारी पहचान
इस आयोजन से स्पष्ट होता है कि समाज जब एकजुट होकर परंपराओं को निभाता है, तो वह संस्कृति और प्रकृति दोनों की रक्षा करता है। हमें चाहिए कि हम ऐसी स्थानीय पहचानों को सहेजें और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं। आप भी इस ख़बर पर अपनी राय दें, कमेंट करें और इस परंपरा को जानने के लिए इसे दोस्तों और परिवार वालों से शेयर करें।