
#Garhwa #ShokSabha : झारखंड राज्य के जनक दिशोम गुरू शिबू सोरेन को दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि—नेताओं और कार्यकर्ताओं ने याद किए उनके संघर्ष।
- गढ़वा के कल्याणपुर आवास पर पूर्व मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर के नेतृत्व में शोक सभा आयोजित।
- दिशोम गुरू शिबू सोरेन के 81 वर्ष की उम्र में निधन पर झारखंडभर में शोक की लहर।
- वक्ताओं ने कहा—झारखंड आंदोलन के अग्रदूत और आदिवासी समाज के मसीहा थे शिबू सोरेन।
- झारखंड राज्य निर्माण में दी अहम भूमिका, जेल भरो आंदोलन और आर्थिक नाकेबंदी में रहे अग्रणी।
- आदिवासी समाज के अधिकारों के लिए समर्पित जीवन, आज भी बने प्रेरणा स्रोत।
- सभा में सैकड़ों कार्यकर्ता और स्थानीय नेता शामिल हुए।
शोक सभा में उमड़ा जनसैलाब
झारखंड राज्य के निर्माता दिशोम गुरू शिबू सोरेन के निधन की खबर से पूरा राज्य शोक में डूबा है। इसी कड़ी में आज दिनांक 04 अगस्त 2025, सोमवार को पूर्व मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर के गढ़वा स्थित कल्याणपुर आवास पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित हुई।
इस दौरान सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि यह क्षति अपूरणीय है और इसकी भरपाई कभी संभव नहीं।
झारखंड आंदोलन की रीढ़ थे शिबू सोरेन
वक्ताओं ने कहा कि दिशोम गुरू का संघर्ष 18 वर्ष की आयु से शुरू हुआ था। उन्होंने सेठ-साहूकारों और महाजनों की सूदखोरी के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी।
झारखंड आंदोलन को गति देने के लिए उन्होंने आर्थिक नाकेबंदी, धरना-प्रदर्शन, रैली और जेल भरो आंदोलन का नेतृत्व किया। इसी आंदोलन के परिणामस्वरूप बिहार सरकार को स्वायत परिषद का गठन करना पड़ा, जिसका अध्यक्ष खुद शिबू सोरेन बने।
जिला सचिव शरीफ अंसारी ने कहा: “झारखंड की लड़ाई में हजारों लोग शहीद हुए, लेकिन गुरूजी ने कभी हार नहीं मानी। आज जो राज्य हमारे सामने है, वह उनकी दूरदर्शिता और अदम्य साहस का परिणाम है।”
आदिवासी अधिकारों के लिए समर्पित जीवन
शिबू सोरेन ने न केवल झारखंड को अलग राज्य दिलाने में अहम भूमिका निभाई, बल्कि आदिवासी समाज को एकजुट करने और मुख्यधारा में लाने का भी ऐतिहासिक प्रयास किया।
उन्होंने कभी अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। देश में जब भी आदिवासी अधिकारों की चर्चा होगी, शिबू सोरेन का नाम सम्मानपूर्वक लिया जाएगा।
बड़ी संख्या में जुटे कार्यकर्ता और नेता
इस शोकसभा में जिले के प्रमुख नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
इनमें शरीफ अंसारी, मनोज ठाकुर, अनिता दत्त, अंजली गुप्ता, रेखा चौबे, फुजैल अहमद, फरीद खाँ, अशर्फी राम, आलमगीर अंसारी, संजय सिंह छोटू, वंदना जायसवाल, धन्न्जय तिवारी, फखरे आलम, इस्तेखार अंसारी, पूरन तिवारी, रतन सिंह खरवार, मंजर खान, रसीद अंसारी, रविन्द्र तिवारी सहित सैकड़ों कार्यकर्ता मौजूद थे।
न्यूज़ देखो: संघर्ष और समर्पण की अमर गाथा
शिबू सोरेन का जीवन यह संदेश देता है कि अडिग संकल्प और न्याय के लिए संघर्ष से असंभव भी संभव हो सकता है। आज झारखंड जिस पहचान के साथ खड़ा है, उसके मूल में गुरूजी का त्याग और संघर्ष है।
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