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जंगल डॉक्टर फादर गाब्रियल हेमरोम की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि, आयुर्वेद और मानव सेवा से अमर हुई उनकी विरासत

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#बानो #पुण्यतिथि : जंगल डॉक्टर के नाम से विख्यात फादर गाब्रियल हेमरोम ने कलीसियाई सेवा, आयुर्वेद चिकित्सा और सामाजिक कार्यों से जो मिसाल कायम की वह पीढ़ियों तक प्रेरणा देती रहेगी
  • जंगल डॉक्टर फादर गाब्रियल हेमरोम का जन्म 2 जनवरी 1936 को पश्चिम सिंहभूम के कोडकेल गांव में हुआ।
  • 14 दिसंबर 2009 को रांची में इलाज के दौरान हुआ निधन, आज उनकी पुण्यतिथि
  • हाटिंगहोडे बानो में आयुर्वेदिक अनुसंधान केंद्र की स्थापना कर हजारों लोगों का किया उपचार।
  • कैंसर उपचार के क्षेत्र में देश-विदेश तक मिली पहचान।
  • 2002 स्वतंत्रता दिवस पर झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी द्वारा सम्मानित।
  • वर्तमान में औषधि केंद्रों का संचालन डॉ. ऑस्कर हेमरोम की देखरेख में जारी।

बानो प्रखंड के हाटिंगहोडे क्षेत्र में जंगल डॉक्टर के नाम से विख्यात फादर गाब्रियल हेमरोम भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी स्मृतियां और सेवा भाव आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। संत पॉल गिरजाघर हाटिंगहोडे के गगनचुंबी बुर्ज पर लगी घंटी की हर आवाज लोगों को उनकी उपस्थिति का एहसास कराती है। आयुर्वेद, समाज सेवा और कलीसियाई कार्यों के माध्यम से उन्होंने जो योगदान दिया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा।

जन्म से सेवा पथ तक की यात्रा

2 जनवरी 1936 को पश्चिम सिंहभूम जिले के कोडकेल गांव में जन्मे फादर गाब्रियल हेमरोम बचपन से ही सेवा भावना से ओत-प्रोत थे। शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने धार्मिक जीवन को अपनाया और 16 दिसंबर 1962 को डीकन पद पर आसीन हुए। एक वर्ष बाद वे पुरोहित पद से विभूषित हुए। कलीसियाई सेवा के साथ-साथ उन्होंने समाज के हर वर्ग की सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया।

आयुर्वेद से मानव सेवा की अनूठी मिसाल

धार्मिक सेवा के साथ फादर हेमरोम ने आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली के माध्यम से लोगों की चंगाई का कार्य शुरू किया। उन्होंने बानो प्रखंड के हाटिंगहोडे में निवास बनाकर विभिन्न जड़ी-बूटियों का संग्रह किया और वहां आयुर्वेदिक अनुसंधान केंद्र की स्थापना की। यह केंद्र धीरे-धीरे झारखंड ही नहीं, बल्कि देश और विदेश में भी चर्चित हुआ।

कैंसर उपचार में विशेष पहचान

हाटिंगहोडे स्थित उनके औषधालय में अनेक जटिल रोगों का इलाज किया जाता था, लेकिन विशेष रूप से कैंसर उपचार के क्षेत्र में उन्हें असाधारण पहचान मिली। दूर-दराज के क्षेत्रों के अलावा विदेशों से भी रोगी उनके पास इलाज के लिए आते थे। इस संदर्भ में वे एक मुलाकात के दौरान कहा करते थे:

फादर गाब्रियल हेमरोम ने कहा: “प्रभु ईसा ने मुझे समाज सेवा के लिए ये गुण विरासत में दिए हैं।”

राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सम्मान

उनके कार्यों की गूंज राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची। प्रतियोगिता दर्पण पत्रिका (मार्च 1990) में, जब झारखंड बिहार का हिस्सा था, उन्हें प्रसिद्ध व्यक्तियों की श्रेणी में स्थान दिया गया। इसके बाद 2002 के स्वतंत्रता दिवस पर वन औषधि एवं चिकित्सा क्षेत्र में श्रेष्ठ योगदान के लिए झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया।

कृषि और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

फादर हेमरोम केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने स्थानीय किसानों को आधुनिक खेती के गुर भी सिखाए। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण 19 जून 2005 को रांची के नक्षत्र वन परिसर में आयोजित हॉर्टिकल्चर सोसायटी ऑफ छोटानागपुर के “मैंगो शो” में देखने को मिला, जहां 1238 प्रतिभागियों के बीच उन्होंने मालदा आम में प्रथम स्थान और सीडलिंग ग्रीन श्रेणी में ओवरऑल पुरस्कार प्राप्त किया।

शिक्षा के क्षेत्र में स्थायी योगदान

हाटिंगहोडे स्थित आयुर्वेदिक केंद्र परिसर में उन्होंने संत फ्रांसिस इंग्लिश मीडियम स्कूल की स्थापना की। यह विद्यालय आज भी क्षेत्र के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहा है और उनके दूरदर्शी सोच का प्रतीक है।

निधन के बाद भी जारी सेवा

14 दिसंबर 2009 को रांची में इलाज के दौरान फादर गाब्रियल हेमरोम का निधन हो गया। उनके निधन के बाद भी उनकी सेवा परंपरा रुकी नहीं। हाटिंगहोडे स्थित संत मिखाइल औषधि अनुसंधान केंद्र और रांची के कांटा टोली स्थित मेजर दयाल कॉम्प्लेक्स में औषधि केंद्र का संचालन उनके पुत्र डॉ. ऑस्कर हेमरोम की देखरेख में निरंतर जारी है।

न्यूज़ देखो: सेवा, चिकित्सा और विश्वास की मिसाल

फादर गाब्रियल हेमरोम का जीवन यह दर्शाता है कि सच्ची सेवा धर्म और सीमाओं से परे होती है। आयुर्वेद और समाज सेवा के क्षेत्र में उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है। प्रशासन और समाज के लिए यह एक उदाहरण है कि समर्पण से क्षेत्रीय विकास और मानव कल्याण संभव है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

स्मृतियों से प्रेरणा, सेवा से संकल्प

फादर गाब्रियल हेमरोम की पुण्यतिथि हमें यह याद दिलाती है कि सच्चा जीवन वही है जो दूसरों के काम आए। उनकी तरह निस्वार्थ सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आज के समाज की बड़ी आवश्यकता है।
आइए, उनकी स्मृति में सेवा का संकल्प लें, इस प्रेरक कहानी को दूसरों तक पहुंचाएं और कमेंट के माध्यम से बताएं कि ऐसे व्यक्तित्व हमें कैसे बेहतर समाज की ओर ले जाते हैं।

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Shivnandan Baraik

बानो, सिमडेगा

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