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हर बारिश में डूबता है भरोसा! रामपुर पुल बना मौत का रास्ता: जान हथेली पर ले कर पार हो रहे महुआडांड़ के छात्र, महिलाएं और बुजुर्ग

#लातेहार #रामपुरपुलसंकट : परहाटोली पंचायत में रामपुर नदी पर बना अधूरा पुल — हर बरसात में बह जाता है एप्रोच पथ, स्कूली बच्चियां मौत से जूझते हुए करती हैं पार

अधूरी योजना, अधूरा पुल — हर साल दोहराता है वही संकट

लातेहार जिला के महुआडांड़ प्रखंड अंतर्गत परहाटोली पंचायत के रामपुर नदी पर बना पुल अब लोगों की उम्मीद नहीं, जान का खतरा बन गया है। बीते छह वर्षों से यह पुल अधूरा है, क्योंकि एप्रोच पथ हर साल बारिश में बह जाता है। बारिश के मौसम में यह क्षेत्र शेष दुनिया से कट जाता है, और पुल पार करना एक मौत से जूझने जैसा साहसिक कार्य बन जाता है।

ग्रामीणों के अनुसार, पुल निर्माण में नदी की चौड़ाई और पानी की तेज़ धार को नजरअंदाज कर दिया गया। पहली बारिश में ही मिट्टी धंसने लगती है, और बच्चों, महिलाओं, वृद्धों को फिसलते हुए यह खतरनाक रास्ता पार करना पड़ता है।

स्कूली बच्चियां फिसलती हैं कीचड़ में, मां-बेटियां डर के साए में

बच्चियां रोज़ जूते हाथ में लेकर, कीचड़ में पैर फिसलाते हुए, पुल पार करती हैं। बरसात में यह रास्ता किसी एडवेंचर ट्रैक से कम नहीं, लेकिन यह उनकी दैनिक मजबूरी है। कई बच्चियों की यूनिफॉर्म गंदी हो जाती है, कई फिसल कर गिर जाती हैं, लेकिन कोई देखने वाला नहीं।

ग्राम प्रधान लुइस कुजूर ने कहा: “हर बार हम ग्रामीण मिलकर रास्ता बनाते हैं, लेकिन बारिश में मिट्टी बह जाती है। बस एक पिलर और जोड़ दिया जाए तो समस्या सुलझ जाएगी।”

बीमारों को खाट पर बांधकर पार कराया जाता है

गंभीर बीमार मरीजों या प्रसूताओं को अस्पताल ले जाना बेहद जोखिम भरा काम बन गया है। कई बार परिजनों को खाट पर महिला को बांध कर नदी पार करानी पड़ी है। कई मरीज रास्ते में ही दम तोड़ चुके हैं। यह एक जमीनी त्रासदी है, जो हर साल दोहराई जाती है।

ग्रामीण राम जायसवाल ने बताया: “यह पुल बना तो है, लेकिन अधूरा है। अफसर आए, सर्वे किया, फोटो खिंचवाई और चले गए। लेकिन समाधान आज तक नहीं हुआ।”

प्रशासन अब भी ‘संज्ञान में आया’ कहकर बच रहा है

जब इस संबंध में गढ़वा एसडीएम विपिन दुबे से सवाल किया गया, तो उनका कहना था,

विपिन दुबे (एसडीएम) ने कहा: “आज ही मामला संज्ञान में आया है, जांच कर कार्रवाई करेंगे।”

इस तरह के बयान अब स्थानीय लोगों को और ज्यादा आहत करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि इस मुद्दे की फाइलें हर बरसात के साथ दब जाती हैं, लेकिन समाधान कभी सामने नहीं आता।

न्यूज़ देखो: प्रशासनिक सोच की दरार, जो हर बारिश में और गहरी हो जाती है

न्यूज़ देखो इस गंभीर समस्या को सिर्फ एक पुल की खामी नहीं, बल्कि नीतिगत असफलता और विकास की खोखली परिभाषा मानता है। अगर छह साल बाद भी एक पुल लोगों के जीवन को सरल नहीं कर पा रहा है, तो सवाल सिर्फ निर्माण एजेंसी पर नहीं, पूरे प्रशासनिक तंत्र की संवेदनशीलता पर उठता है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

सजग नागरिक बनें, बदलाव की आवाज़ उठाएं

आपके गांव या मोहल्ले में भी अगर इस तरह की समस्याएं हैं तो चुप न रहें। इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करें, ताकि जिम्मेदार अफसरों तक सच्चाई पहुंचे। कमेंट में अपनी राय दें — क्योंकि सच की आवाज जितनी तेज़ होगी, बदलाव उतना ही नज़दीक होगा।

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