
#दुमका #विधायकपरिवार : पूर्व विधायक चडरा मुर्मू की बहू और पोता आज भी सरकारी योजनाओं से वंचित रहकर मजदूरी कर जीवन यापन करने को मजबूर हैं
- पूर्व विधायक चडरा मुर्मू की बहू और पोता आज भी मजदूरी कर गुजर-बसर कर रहे हैं।
- 1969 में वे शिकारीपाड़ा से निर्दलीय विधायक बने थे और 1942 आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी।
- चडरा मुर्मू की पत्नी को केवल 265.50 रुपये पेंशन मिलती थी, 2013 में निधन के बाद स्थिति बिगड़ी।
- 2017 में पुत्र की मौत के बाद बहू ने मजदूरी कर बेटे को बीएड तक पढ़ाया, फिर भी बेटा बेरोजगार।
- परिवार को अबुआ आवास, विधवा पेंशन, मइया सम्मान योजना का लाभ आज तक नहीं मिला।
- केवल जनवितरण प्रणाली (PDS) के तहत चावल मिलता है, बाकी सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित।
दुमका जिले में झारखंड की गौरवशाली स्वतंत्रता संघर्ष इतिहास से जुड़े एक परिवार की दयनीय स्थिति सामने आई है। स्वतंत्रता सेनानी और 1969 में शिकारीपाड़ा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक चुने गए चडरा मुर्मू के परिवार की आज हालत बेहद बदहाल है। झारखंड गठन के 25 वर्ष बाद भी यह परिवार सरकारी मदद और योजनाओं से वंचित है। परिवार की बहू और पोता गुजर-बसर के लिए मजदूरी पर निर्भर हैं, जबकि पूर्व विधायक के योगदान और स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका को इतिहास में सम्मानपूर्वक दर्ज किया गया है।
चडरा मुर्मू का राजनीतिक और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा योगदान
पूर्व विधायक चडरा मुर्मू ने 1969 में शिकारीपाड़ा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतकर अपनी अलग पहचान बनाई थी। वे 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय रहे, लेकिन आज उनके परिवार की स्थिति उनके योगदान से बिल्कुल उलट दिखाई देती है। राज्य गठन के इतने वर्षों बाद भी परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने की दिशा में कोई पहल नहीं की गई, जो प्रशासनिक उदासीनता को उजागर करता है।
265.50 रुपये पेंशन से चलता था घर पत्नी के निधन के बाद टूटी उम्मीदें
चडरा मुर्मू की पत्नी को एक समय केवल 265.50 रुपये प्रतिमाह पेंशन मिलती थी, जो परिवार के लिए किसी तरह जीवनयापन का सहारा था। 2013 में उनके निधन के बाद यह पेंशन बंद हो गई और परिवार आर्थिक रूप से पूरी तरह असहाय हो गया। आय का कोई स्थायी स्रोत न होने के कारण परिवार की स्थिति बद से बदतर होती चली गई।
पति की मौत ने बढ़ाया संघर्ष बहू ने मजदूरी कर बेटे को बीएड तक पढ़ाया
परिवार पर दूसरी बड़ी मार तब पड़ी जब 2017 में चडरा मुर्मू के पुत्र का निधन हो गया। इसके बाद बहू ने अपने बेटे की पढ़ाई जारी रखने के लिए मजदूरी का सहारा लिया। कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने बेटे को बीएड तक पढ़ाया, लेकिन योग्य होने के बावजूद बेटा आज भी बेरोजगार है।
सरकारी योजनाओं से वंचित आवास से लेकर पेंशन तक कुछ नहीं मिला
परिवार के संघर्ष की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अब तक उन्हें न तो अबुआ आवास, न विधवा पेंशन, न मइया सम्मान योजना, और न ही किसी अन्य सरकारी सुविधा का लाभ मिला है। परिवार को केवल PDS के चावल मिलते हैं। स्वतंत्रता सेनानी के परिवार को इतनी उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है, यह झारखंड की सामाजिक असमानताओं और प्रशासनिक लापरवाही की कठोर तस्वीर पेश करता है।
बेरोजगार पोते का दर्द पढ़ाई पूरी, लेकिन अवसर नहीं
बीएड तक पढ़ाई पूरी करने के बाद भी रोजगार न मिलना परिवार की बदहाली की एक और बड़ी वजह है। शिक्षा के बावजूद नौकरी न मिलना बताता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और अवसरों की उपलब्धता कितनी सीमित है। परिवार का कहना है कि अगर उन्हें सरकारी योजनाओं और पेंशन का लाभ मिलता, तो कम से कम बुनियादी जीवन यापन की समस्या इतनी विकराल न होती।
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चडरा मुर्मू जैसे स्वतंत्रता सेनानी और जनप्रतिनिधि के परिवार की ऐसी स्थिति यह दर्शाती है कि योजनाओं की घोषणा और उनके वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंच में गहरी खाई आज भी मौजूद है। प्रशासन की जिम्मेदारी है कि स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने वाले परिवारों को सम्मानजनक जीवन मिले। इस मामले में तत्काल सर्वे कर संबंधित लाभ और सहायता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
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सम्मान और अधिकार हर नागरिक तक पहुंचे
स्वतंत्रता सेनानी परिवारों को सम्मान देना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि राष्ट्र का कर्तव्य है। ऐसे परिवारों को योजनाओं का लाभ देकर न केवल उनके जीवन में सुधार लाया जा सकता है, बल्कि समाज में सकारात्मक संकेत भी दिए जा सकते हैं। अब समय है कि प्रशासन तेजी से कदम उठाए, और नागरिक भी जागरूक होकर ऐसी स्थितियों को सामने लाएं। अपनी राय कमेंट में लिखें, खबर को शेयर करें और ऐसे परिवारों तक सहायता की आवाज पहुंचाने में सहयोग करें।





