#बानो #कृषि_प्रशिक्षण : जेएसएलपीएस सीएलएफ केंद्र में किसानों को मिट्टी जांच, जैविक घोल निर्माण और वैज्ञानिक खेती के आधुनिक तरीकों की जानकारी दी गई।
- बानो प्रखण्ड के जेएसएलपीएस सीएलएफ केंद्र में दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित।
- किसानों को मिट्टी जांच, उसके महत्व और वैज्ञानिक खेती के लाभ बताए गए।
- जैविक एवं प्राकृतिक खेती अपनाने हेतु प्रेरित किया गया।
- जीवामृत, बीजामृत और घनामृत तैयार करने का व्यावहारिक प्रदर्शन किया गया।
- कार्यक्रम में पौधा संरक्षण अधिकारी राजेंद्र बारा, एटीएम बानो ओबैदुल्लाह एहरार और बीपीओ उपस्थित रहे।
बानो प्रखण्ड में आयोजित इस विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम में स्थानीय किसानों को आधुनिक, सस्टेनेबल और वैज्ञानिक खेती के विभिन्न आयामों से रूबरू कराया गया। विशेषज्ञों ने किसानों को बताया कि मिट्टी की गुणवत्ता की पहचान कृषि का पहला और सबसे महत्वपूर्ण चरण है। जैविक खेती के वैज्ञानिक तरीकों पर विस्तार से चर्चा की गई, साथ ही प्राकृतिक इनपुट तैयार करने का लाइव प्रदर्शन भी किया गया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसानों को टिकाऊ खेती की ओर बढ़ाना और रासायनिक निर्भरता कम करना रहा।
दो दिवसीय प्रशिक्षण का उद्देश्य
इस प्रशिक्षण का केंद्रीय लक्ष्य किसानों को फसल सुरक्षा योजना के तहत ऐसी तकनीकों से परिचित कराना था, जिनके माध्यम से वे अपनी मिट्टी की सेहत सुधार सकें और रासायनिक खाद–कीटनाशकों पर निर्भरता कम हो। अधिकारियों ने बताया कि सही समय पर मिट्टी जांच से न केवल उत्पादन बढ़ता है, बल्कि भूमि की दीर्घकालिक उर्वरता भी बनी रहती है।
जैविक एवं प्राकृतिक खेती पर विशेष सत्र
किसानों को जैविक खेती की ओर प्रेरित करने हेतु विशेषज्ञों ने प्राकृतिक कृषि के मूल सिद्धांतों पर प्रकाश डाला। प्रशिक्षण के दौरान निम्न विषयों पर व्यावहारिक प्रदर्शन किया गया:
- जीवामृत तैयार करना
- बीजामृत निर्माण प्रक्रिया
- घनामृत तैयार करने की विधि
इन जैविक घोलों के उपयोग से मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ती है और पौधों की वृद्धि प्राकृतिक रूप से होती है।
मिट्टी स्वास्थ्य और वैज्ञानिक खेती
कार्यक्रम में उपस्थित कृषि पदाधिकारियों ने किसानों को बताया कि आधुनिक खेती का सबसे महत्वपूर्ण आधार मिट्टी का वैज्ञानिक विश्लेषण है।
राजेंद्र बारा ने कहा: “मिट्टी की गुणवत्ता समझकर ही सही फसलों और कृषि पद्धतियों का चयन संभव है। इससे उत्पादन में वृद्धि और भूमि की उर्वरता दोनों सुनिश्चित होती हैं।”
ओबैदुल्लाह एहरार ने कहा: “जैविक खेती न सिर्फ पर्यावरण–अनुकूल है, बल्कि किसानों के लिए कम लागत में अधिक उत्पादन का एक प्रभावी विकल्प है।”
बीपीओ ने भी किसानों को सलाह दी कि प्रत्येक फसल चक्र से पूर्व मिट्टी जांच कर सही मात्रा में उर्वरक का उपयोग करें, ताकि अनावश्यक खर्च और संसाधनों की बर्बादी कम हो।
किसानों की सहभागिता और सीख
दो दिनों तक चले इस प्रशिक्षण में किसानों ने बढ़–चढ़कर हिस्सा लिया। उन्हें विभिन्न कृषि उपकरणों, जैविक घोल निर्माण तकनीकों और प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों का प्रत्यक्ष अनुभव मिला। कई किसानों ने इसे अपनी खेती में बड़े बदलाव की शुरुआत बताया।
न्यूज़ देखो: टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने की सराहनीय पहल
बानो प्रखण्ड में आयोजित यह प्रशिक्षण ग्रामीण कृषि सिस्टम को वैज्ञानिक और पर्यावरण–अनुकूल दिशा देने का एक महत्वपूर्ण कदम है। कृषि विभाग द्वारा किए जा रहे ऐसे प्रयास न केवल किसानों की लागत घटाते हैं, बल्कि उनकी जमीन को लंबे समय तक उपजाऊ बनाए रखने में भी मददगार हैं। जैविक खेती की ओर बढ़ते कदम भविष्य में क्षेत्रीय कृषि को नई पहचान दे सकते हैं।
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बानो के किसान बदल रहे खेती की दिशा — आइए इस सकारात्मक यात्रा का हिस्सा बनें
वैज्ञानिक, सस्टेनेबल और पर्यावरण–अनुकूल खेती की ओर बढ़ना सिर्फ किसानों की ही नहीं, पूरे समाज की जिम्मेदारी है। मिट्टी की सेहत सुधरेगी तो उत्पादन बढ़ेगा, और उत्पादन बढ़ेगा तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। इस तरह के प्रशिक्षण गांवों को आत्मनिर्भर और जागरूक बनाते हैं।





