
#दुमका #पाकुड़ : गोपीकांदर में सौ कर्मियों में सिर्फ दो ने दिया रक्त, जबकि पाकुड़ में उपायुक्त के नेतृत्व में 218 लोगों ने किया रक्तदान
- गोपीकांदर में आयोजित रक्तदान शिविर में सिर्फ दो कर्मियों ने दिया रक्त।
- 100 से अधिक सरकारी कर्मियों में बाकी ने नहीं दिखाई जिम्मेदारी।
- प्रेमतोष बास्की और अनुज कोल बने सेवा भावना के उदाहरण।
- वहीं पाकुड़ में “प्रोजेक्ट जागृति” के तहत 218 लोगों ने किया रक्तदान।
- उपायुक्त मनीष कुमार ने 23वीं बार रक्तदान कर पेश की प्रेरणादायक मिसाल।
झारखंड के दो जिलों से आईं दो तस्वीरें समाज में सेवा भावना और सोच के दो अलग आयाम दिखाती हैं। एक ओर दुमका के गोपीकांदर में रक्तदान शिविर तो तामझाम के साथ लगाया गया, लेकिन जब रक्त देने की बारी आई तो हकीकत सामने आ गई — सौ से अधिक कर्मियों में केवल दो ने रक्तदान किया। वहीं दूसरी ओर पाकुड़ जिले में प्रशासनिक नेतृत्व ने ऐसी मिसाल पेश की कि पूरा जिला गर्व महसूस कर रहा है।
गोपीकांदर में उदास करने वाली तस्वीर
दुमका जिले के गोपीकांदर में आयोजित रक्तदान शिविर का उद्देश्य स्थानीय स्वास्थ्य व्यवस्था को सशक्त बनाना था। आयोजन में अस्पताल कर्मियों और प्रखंड कार्यालय के कर्मचारियों को शामिल किया गया था। लेकिन जब रक्तदान की बारी आई, तो केवल दो ही लोग आगे आए — सीएचसी के केटीएस प्रेमतोष बास्की और प्रखंड लिपिक अनुज कोल।
इन दोनों कर्मियों ने न केवल अपनी जिम्मेदारी निभाई, बल्कि यह भी दिखाया कि असली सेवा शब्दों से नहीं, कर्मों से होती है।
पाकुड़ में प्रेरणादायक उदाहरण
इसके उलट, पाकुड़ जिले में “प्रोजेक्ट जागृति” के तहत आयोजित रक्तदान शिविर में प्रशासन और आमजन की सहभागिता ने एक नई मिसाल कायम की।
इस शिविर में उपायुक्त मनीष कुमार, एसडीओ साइमन मरांडी, कई पदाधिकारी और कर्मियों समेत कुल 218 लोगों ने रक्तदान किया।
उपायुक्त मनीष कुमार ने कहा: “रक्तदान जीवनदान है। समाज में यदि हर व्यक्ति साल में दो बार रक्तदान करे, तो किसी की जान कभी खून की कमी से नहीं जाएगी।”
जानकारी के अनुसार, उपायुक्त मनीष कुमार का यह 23वां रक्तदान था, जिससे उन्होंने पूरे जिले में मानवता और सेवा की भावना को नया आयाम दिया।
सोच में फर्क, परिणाम में भी फर्क
दुमका और पाकुड़ की ये दो घटनाएं हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि फर्क केवल व्यवस्था का नहीं, सोच का भी है। जहाँ एक ओर जिम्मेदारी निभाने में हिचक दिखाई दी, वहीं दूसरी ओर नेतृत्व और प्रेरणा ने सामूहिक भागीदारी की मिसाल कायम की। समाज में परिवर्तन तभी संभव है जब लोग केवल निर्देशों से नहीं, भावना और कर्तव्य से प्रेरित होकर कदम बढ़ाएं।

न्यूज़ देखो: प्रेरणा और प्रतिबिंब — समाज की दो सच्चाइयाँ
दुमका और पाकुड़ की ये दो तस्वीरें यह बताने के लिए काफी हैं कि बदलाव ऊपर से नहीं, भीतर से आता है। एक ओर लापरवाही ने जिम्मेदारी की कमी उजागर की, वहीं दूसरी ओर नेतृत्व ने लोगों में उत्साह और जिम्मेदारी की भावना जगाई। अगर हर जगह ऐसी प्रेरणा मिले, तो झारखंड ही नहीं, पूरा देश रक्त की कमी से मुक्त हो सकता है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
सोच बदलें, समाज बदलता है
रक्तदान केवल दान नहीं, जीवन बचाने की प्रक्रिया है। आइए, हम सब “मैं नहीं तो कौन” की भावना से आगे बढ़ें और दूसरों के जीवन के लिए कुछ करें। अगली बार जब रक्तदान शिविर लगे — दर्शक नहीं, सहभागी बनें। अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को शेयर करें और अपने शहर में रक्तदान की प्रेरणा बनें — क्योंकि रक्तदान ही महादान है।




