वक्फ संशोधन बिल पर जदयू में मची हलचल, 15 से अधिक नेताओं ने दिया इस्तीफा

#JDU पार्टी नेतृत्व के फैसले से अल्पसंख्यक नेता नाराज़, कहा – ‘विश्वासघात हुआ है’:

वक्फ संशोधन बिल बना जदयू के लिए सिरदर्द

पटना/पूर्वी चंपारण: केंद्र सरकार द्वारा वक्फ संशोधन बिल पास किए जाने के बाद बिहार की सत्ताधारी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) के भीतर गहरी नाराज़गी उभर कर सामने आ रही है। पूर्वी चंपारण जिले के ढाका विधानसभा क्षेत्र से पार्टी को बड़ा झटका लगा है, जहां 15 से ज्यादा स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने एक साथ इस्तीफा दे दिया है।

इस्तीफा देने वालों में शामिल प्रमुख नाम

ढाका प्रखंड युवा जदयू अध्यक्ष गौहर आलम, नगर परिषद कोषाध्यक्ष मोहम्मद मुर्तजा, प्रखंड युवा उपाध्यक्ष मो. शब्बीर आलम, नगर अध्यक्ष (अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ) मौसिम आलम, नगर सचिव जफीर खान, नगर महासचिव मो. आलम, और युवा महासचिव मो. तुरफैन जैसे सक्रिय नेताओं ने पार्टी से दूरी बना ली है।

साथ ही नगर उपाध्यक्ष मो. मोतिन, करमावा पंचायत युवा अध्यक्ष सुफैद अनवर, प्रखंड युवा सचिव फिरोज सिद्दिकी, नगर महासचिव सलाउद्दीन अंसारी, सलीम अंसारी, एकरामुल हक और सगीर अहमद जैसे कार्यकर्ताओं ने भी जिलाध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष को इस्तीफा सौंप दिया है।

नेताओं ने जताया आक्रोश

गौहर आलम ने कहा:

“हमें उम्मीद थी कि वक्फ संशोधन बिल पर पार्टी अल्पसंख्यकों की भावनाओं का सम्मान करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पार्टी ने हमसे वादा किया था, जो अब विश्वासघात जैसा लगता है।”

नेताओं का आरोप है कि अल्पसंख्यक समुदाय की भावनाओं की अनदेखी कर पार्टी ने उन्हें हाशिए पर डाल दिया है।

पहले भी उठ चुकी है विरोध की आवाज

यह पहली बार नहीं है जब जदयू में अल्पसंख्यक नेताओं ने इस्तीफा दिया हो। 4 अप्रैल को भी कई मुस्लिम नेताओं ने इस्तीफा दिया था, जिनमें शामिल थे – नवाज मलिक (अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश सचिव होने का दावा), कासिम अंसारी, शहनवाज आलम और तबरेज़ सिद्दीकी अलीग

हालांकि, पार्टी ने इनमे से कई नेताओं के सदस्यता से इनकार कर दिया था, लेकिन ढाका से आए ताजा इस्तीफे स्थानीय संगठन के भीतर गहरी नाराजगी की ओर संकेत कर रहे हैं।

पार्टी नेतृत्व ने जताई बेफिक्री

पार्टी के जिला स्तर के नेताओं ने इस घटनाक्रम को अहमियत नहीं देने की कोशिश की है। उनका मानना है कि इससे पार्टी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन लगातार हो रहे इस्तीफे कहीं न कहीं पार्टी के संगठनात्मक ढांचे और नेतृत्व शैली पर सवाल उठा रहे हैं।

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