
#लातेहार #लापता_व्यक्ति : 12 दिनों से नहीं मिला मनोज उरांव, परिजनों के आक्रोश पर प्रशासन ने मांगा तीन दिन का समय
- चंदवा प्रखंड के बनहरदी पंचायत निवासी मनोज उरांव 12 दिनों से लापता।
- एनएच 39 के सीकनी क्षेत्र में ग्रामीणों ने किया तीन घंटे का चक्का जाम।
- 3 दिसंबर को गांव से लातेहार लौटते समय अचानक संपर्क टूटा।
- 5 दिसंबर को चंदवा थाना में दिया गया था आवेदन।
- डीएसपी और थाना प्रभारी ने मौके पर पहुंचकर दिया आश्वासन।
लातेहार जिले में एक बार फिर गुमशुदगी का मामला प्रशासन के लिए चुनौती बन गया है। चंदवा प्रखंड अंतर्गत बनहरदी पंचायत निवासी मनोज उरांव (पिता बालेश्वर उरांव) के पिछले 12 दिनों से लापता होने के बाद परिजनों और ग्रामीणों का आक्रोश अब सड़कों पर दिखाई देने लगा। सोमवार को आक्रोशित ग्रामीणों ने राष्ट्रीय राज्य मार्ग एनएच 39 के सीकनी क्षेत्र में चक्का जाम कर दिया, जिससे करीब तीन घंटे तक यातायात पूरी तरह बाधित रहा और सड़क के दोनों ओर वाहनों की लंबी कतारें लग गईं।
यह प्रदर्शन केवल एक व्यक्ति की गुमशुदगी का मामला नहीं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनशीलता और त्वरित कार्रवाई पर उठते सवालों का प्रतीक बन गया।
कैसे लापता हुआ मनोज उरांव
परिजनों के अनुसार, मनोज उरांव 3 दिसंबर 2025 की शाम लगभग 5 बजे अपने पैतृक गांव बनहरदी से लातेहार के लिए निकले थे। वे लातेहार सदर प्रखंड के चंदनडीह इलाके में अपनी पत्नी और 10 वर्षीय पुत्र के साथ किराए के मकान में रहते थे और एक ठेकेदार के अधीन मजदूरी का काम करते थे।
रास्ते में मनोज की अपनी पत्नी से मोबाइल पर बातचीत भी हुई थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि वे आधे घंटे के भीतर घर पहुंच जाएंगे। लेकिन जब एक घंटा बीत जाने के बाद भी वे घर नहीं पहुंचे और फोन भी बंद हो गया, तो परिजनों की चिंता बढ़ने लगी।
तलाश के बाद भी नहीं मिला कोई सुराग
मनोज के घर नहीं लौटने पर परिजनों ने पहले अपने स्तर से खोजबीन शुरू की। रिश्तेदारों, दोस्तों और जान-पहचान वालों से संपर्क किया गया, संभावित रास्तों और कार्यस्थलों पर पूछताछ की गई, लेकिन कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी।
अंततः परिजनों ने 5 दिसंबर 2025 को चंदवा थाना में लिखित आवेदन देकर मनोज की गुमशुदगी की सूचना दी और पुलिस से मदद की गुहार लगाई। परिजनों का आरोप है कि आवेदन देने के बावजूद तलाश की प्रक्रिया में अपेक्षित तेजी नहीं दिखाई गई, जिससे उनका आक्रोश बढ़ता गया।
एनएच 39 पर चक्का जाम, प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी
12 दिन बीत जाने के बाद भी जब मनोज उरांव का कोई पता नहीं चला, तो सोमवार को परिजन और ग्रामीणों का सब्र टूट गया। सैकड़ों ग्रामीणों ने एनएच 39 के सीकनी क्षेत्र में सड़क जाम कर दिया और प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
चक्का जाम के दौरान लातेहार–चंदवा मार्ग पर आवागमन पूरी तरह ठप हो गया। यात्री बसें, मालवाहक वाहन और निजी गाड़ियां जहां-तहां फंस गईं। राहगीरों और वाहन चालकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।
मौके पर पहुंचे डीएसपी और थाना प्रभारी
चक्का जाम की सूचना मिलते ही चंदवा थाना प्रभारी और लातेहार के डीएसपी दल-बल के साथ मौके पर पहुंचे। अधिकारियों ने प्रदर्शन कर रहे परिजनों और ग्रामीणों से बातचीत की और उन्हें शांत करने का प्रयास किया।
अधिकारियों ने भरोसा दिलाया कि मनोज उरांव की तलाश के लिए पुलिस पूरी गंभीरता से कार्रवाई कर रही है और तीन दिनों के भीतर ठोस जानकारी देने का प्रयास किया जाएगा। प्रशासन की ओर से यह भी कहा गया कि मोबाइल लोकेशन, संभावित रास्तों और संपर्क सूत्रों की फिर से गहन जांच की जाएगी।
तीन दिन का समय मिलने पर हटाया गया जाम
प्रशासन के आश्वासन के बाद परिजनों और ग्रामीणों ने तीन दिन का समय देने पर सहमति जताई और चक्का जाम समाप्त किया। इसके बाद धीरे-धीरे एनएच 39 पर यातायात बहाल हुआ।
हालांकि, परिजनों ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी है कि यदि निर्धारित समय सीमा के भीतर मनोज उरांव का कोई सुराग नहीं मिलता, तो वे फिर से और उग्र आंदोलन करने को मजबूर होंगे।
प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
इस पूरे मामले ने एक बार फिर ग्रामीण क्षेत्रों में लापता मामलों की जांच प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए हैं। परिजनों का कहना है कि यदि शुरुआती दिनों में ही खोजबीन तेज होती, तो शायद स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती।
ग्रामीणों ने यह भी सवाल उठाया कि एक गरीब मजदूर के लापता होने के मामले में प्रशासन की सक्रियता इतनी सीमित क्यों रही। यह मामला अब केवल एक परिवार की पीड़ा नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही से जुड़ा मुद्दा बन गया है।
न्यूज़ देखो: गुमशुदगी और प्रशासन की परीक्षा
मनोज उरांव का मामला यह दर्शाता है कि गुमशुदगी की घटनाएं केवल आंकड़े नहीं होतीं, बल्कि उनके पीछे एक परिवार का भविष्य जुड़ा होता है। समय पर कार्रवाई न होने पर जनता का भरोसा डगमगाने लगता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन अपने वादे पर कितना खरा उतरता है।
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भरोसे की कसौटी पर प्रशासन
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