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चंदवा के परहिया टोला में सड़क और पानी की समस्या से जूझ रहे ग्रामीणों की व्यथा सुन भावुक हुए विशाल पांडे

#चंदवा #ग्रामसमस्या : झारखंड जनसंघर्ष मोर्चा ने ग्राम संपर्क अभियान में जाना आदिम जनजाति की पीड़ा

चंदवा प्रखंड के परहिया टोला में रविवार को जब झारखंड जनसंघर्ष मोर्चा की टीम पहुंची, तो ग्रामीणों की दशा देखकर हर कोई भावुक हो गया। राष्ट्रीय राजमार्ग से महज एक किलोमीटर दूर बसे इस गांव में आज तक न सड़क बनी और न ही पीने के पानी की समुचित व्यवस्था हो पाई है। आदिम जनजाति समुदाय से जुड़े लोग दशकों से इन बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।

सड़क और स्वास्थ्य सुविधा से वंचित ग्रामीण

गांव की सबसे बड़ी समस्या सड़क का अभाव है। ग्रामीणों ने बताया कि एंबुलेंस तक गांव में प्रवेश नहीं कर पाती, बीमार को उठाकर कंधे या खटिया पर बाहर लाना पड़ता है। इससे कई बार मरीजों की जान जोखिम में पड़ जाती है। ग्रामीणों ने कहा कि चुनाव के दौरान नेताओं द्वारा वादे किए जाते हैं, लेकिन चुनाव के बाद कोई सुध नहीं लेता।

पेयजल संकट और योजनाओं की अनदेखी

परहिया टोला में पेयजल संकट गहरा गया है। ग्रामीणों को पानी के लिए दूर-दराज जाना पड़ता है। साथ ही मनरेगा योजना में भी भ्रष्टाचार की शिकायतें सामने आई हैं। ग्रामीणों का कहना है कि मजदूरी और योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा, बल्कि स्थानीय स्तर पर गड़बड़ियां की जा रही हैं।

संगठन की पहल और आश्वासन

ग्राम संपर्क अभियान के दौरान मोर्चा के अध्यक्ष विशाल पांडे ने ग्रामीणों से मुलाकात की और भरोसा दिलाया कि उनकी लड़ाई अब संगठन लड़ेगा। उन्होंने कहा –

“सड़क, बिजली और पानी जैसी सुविधाएं बुनियादी अधिकार हैं। जनता के प्रति यह हर जनप्रतिनिधि का फर्ज है कि वह इन्हें सुनिश्चित करे।”

उन्होंने बताया कि संगठन गांव-गांव में निःशुल्क ट्यूशन की व्यवस्था कर रहा है, क्योंकि शिक्षा ही जागरूकता का रास्ता खोल सकती है।

ग्रामीणों का भरोसा और बढ़ता आक्रोश

ग्रामीणों ने संगठन पर भरोसा जताते हुए कहा कि अब उनकी आवाज़ बुलंद होगी। बैठक में कई लोगों ने पंचायत मुखिया पर अनदेखी और वादाखिलाफी का आरोप लगाया। मौके पर लातेहार जिला सचिव कुलेश्वर कुमार, पंचायत उपाध्यक्ष उमेश उरांव, पंचायत प्रभारी संजय कुमार, कमेटी सदस्य आयुष कुमार, पंचायत सचिव आशीष उरांव समेत बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे।

न्यूज़ देखो: बुनियादी सुविधाओं से वंचित आदिवासी समाज

राष्ट्रीय राजमार्ग से चंद कदम दूर बसे गांव में सड़क और पानी का न होना प्रशासनिक लापरवाही का बड़ा उदाहरण है। सवाल यह है कि आदिवासी समुदाय के लोग कब तक केवल चुनावी वादों पर भरोसा करते रहेंगे? यह मामला सिर्फ परहिया टोला का नहीं, बल्कि उन तमाम ग्रामीण इलाकों का है जो आज भी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

अब बदलाव की जिम्मेदारी हम सबकी

यह समय केवल शिकायत करने का नहीं, बल्कि समाधान खोजने और आवाज़ उठाने का है। सड़क और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं किसी भी नागरिक का अधिकार हैं। अब जरूरी है कि हम सब मिलकर प्रशासन को जवाबदेह बनाएं। अपनी राय कमेंट करें और इस खबर को साझा करें ताकि हर गांव की आवाज़ सत्ता तक पहुंचे।

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