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विश्व हिंदू परिषद का प्रांतीय सत्संग प्रशिक्षण सिमडेगा में संपन्न — अच्युतानंद जी बोले, “परंपरा जिहाद से सनातन संस्कृति को खतरा”

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#सिमडेगा #सत्संग_प्रशिक्षण : अच्युतानंद जी ने कहा कि सत्संग ही समाज में समरसता, आस्था और आत्मबल का आधार है।
  • सिमडेगा जिले के आनंद भवन में विश्व हिंदू परिषद द्वारा दो दिवसीय प्रांतीय सत्संग प्रशिक्षण का आयोजन हुआ।
  • कार्यक्रम का नेतृत्व केंद्रीय सत्संग सह प्रमुख अच्युतानंद जी ने किया।
  • उन्होंने कहा, “परंपरा जिहाद के माध्यम से धार्मिक मूल्यों को विकृत करने का प्रयास चल रहा है।”
  • सत्संग को बताया समाज सुधार और धार्मिक जागरूकता का सबसे प्रभावी माध्यम।
  • सैकड़ों कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में कार्यक्रम रविवार को उत्साहपूर्वक संपन्न हुआ।

सिमडेगा जिले के आनंद भवन में झारखंड विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित दो दिवसीय प्रांतीय सत्संग प्रशिक्षण वर्ग रविवार को संपन्न हुआ। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य सत्संग के माध्यम से समाज में जागरूकता, एकता और समरसता का प्रसार करना था। कार्यक्रम के अंतिम दिन केंद्रीय सत्संग सह प्रमुख अच्युतानंद जी ने अपने ओजस्वी भाषण से उपस्थित कार्यकर्ताओं को संबोधित किया।

अच्युतानंद जी का प्रेरक संदेश

अपने संबोधन में अच्युतानंद जी ने कहा कि आज देश विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है और भारत माता के अस्तित्व पर गहरा संकट उत्पन्न हो गया है। उन्होंने कहा कि समाज के उत्थान के लिए व्यक्ति को अहंकार त्यागकर विनम्रता और सेवा भाव से कार्य करना चाहिए। सत्संग ही वह साधन है जो व्यक्ति को सही दिशा देता है और उसे समाज निर्माण की प्रेरणा प्रदान करता है।

अच्युतानंद जी ने कहा: “आज परंपरा जिहाद के माध्यम से हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को विकृत करने का प्रयास किया जा रहा है। सिमडेगा जिले में धर्मांतरण की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, जिन्हें रोकने के लिए सत्संग ही सबसे सशक्त उपाय है।”

उन्होंने आगे कहा कि भारत की संस्कृति सदियों से प्रकृति पूजक रही है — पेड़, नदी, पहाड़, और जल हमारे आराध्य रहे हैं। परंतु आज कुछ विधर्मी ताकतें इन परंपराओं को मिटाने की कोशिश कर रही हैं। ऐसे समय में आवश्यक है कि गांव-गांव में सत्संग की परंपरा को पुनर्जीवित किया जाए, ताकि समाज में जागरूकता, सद्भाव और आपसी सम्मान की भावना को बल मिले।

समाज सुधार और एकता का संदेश

अच्युतानंद जी ने कहा कि सत्संग केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि समाज को सही दिशा देने वाला मार्गदर्शन है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे धर्मांतरण के विरुद्ध जनजागरण अभियान चलाएं और सनातन समाज की परंपराओं को सशक्त बनाएं। उनके अनुसार, जब हर गांव में सत्संग होगा, तभी समाज एकजुट और मजबूत बनेगा।

कार्यक्रम के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि व्यक्ति का अहंकार उसके पतन का कारण बनता है, जबकि विनम्रता और सेवा का भाव समाज को ऊपर उठाता है। सत्संग व्यक्ति में आत्मबल जगाने के साथ-साथ सामाजिक समरसता की भावना भी उत्पन्न करता है।

स्थानीय नेतृत्व का समर्थन और धन्यवाद ज्ञापन

कार्यक्रम के समापन अवसर पर विश्व हिंदू परिषद सिमडेगा के जिला अध्यक्ष कौशल राज सिंह देव ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। उन्होंने कहा कि सिमडेगा का भौगोलिक स्वरूप और सामाजिक परिस्थिति धर्मांतरण के लिए चुनौतीपूर्ण है, इसलिए सत्संग के माध्यम से ही इस प्रभाव को रोका जा सकता है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से संकल्प लिया कि सत्संग की महिमा गांव-गांव तक पहुंचाई जाएगी और समाज में धार्मिक जागरूकता को फैलाया जाएगा।

कौशल राज सिंह देव ने कहा: “सत्संग व्यक्ति में संस्कार, आस्था और आत्मबल का संचार करता है। यह समाज को संगठित करने का सबसे प्रभावी माध्यम है।”

प्रमुख अतिथि और कार्यकर्ताओं की उपस्थिति

इस अवसर पर प्रांत संगठन मंत्री देवी सिंह, प्रांत सत्संग प्रमुख रंजन कुमार सिन्हा, सह प्रमुख गणेश शंकर विद्यार्थी, प्रचार प्रसार टोली सदस्य नारायण दास, जिला मंत्री कृष्णा शर्मा, सह मंत्री कमल सेनापति, उपाध्यक्ष किरण चौधरी, श्याम सुंदर मिश्रा, मुरारी प्रसाद, अघना जी, संत प्रसाद सिंह, जयश्री प्रधान, बजरंग दल संयोजक आनंद जायसवाल, अर्चक पुरोहित प्रमुख विद्या बंधु शास्त्री, संगठन मंत्री दिलीप बड़ाईक, जिला सत्संग प्रमुख प्रकाश दास गोस्वामी, सुरेश प्रसाद, अगम शरण मिश्रा, गोपाल कसेरा, संदीप नाग सहित झारखंड के विभिन्न जिलों से सैकड़ों कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

न्यूज़ देखो: परंपरा और पहचान की रक्षा में सत्संग की भूमिका

यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में भी एक बड़ा कदम साबित हुआ। सिमडेगा में बढ़ते धर्मांतरण और सांस्कृतिक संकट के बीच सत्संग की यह पहल समाज को फिर से अपनी जड़ों से जोड़ने का सशक्त प्रयास है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

संस्कृति की रक्षा, समाज का दायित्व

सत्संग केवल आराधना नहीं, बल्कि आत्मजागरण का माध्यम है। जब समाज अपनी जड़ों को पहचानता है, तभी सभ्यता सुरक्षित रहती है। हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं की रक्षा के लिए सजग रहना होगा।
आइए, एकजुट होकर सत्संग की भावना को हर घर तक पहुंचाएं। अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को साझा करें और समाज में जागरूकता का दीप जलाएं

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