
#गुमला #1932खतियाननीति – हज़ारों आदिवासी ग्रामीणों ने डुमरी में रैली निकालकर सरकार से स्थानीय नीति लागू करने की मांग उठाई
- डुमरी बाजार टांड़ से विशाल रैली निकालकर जनसभा का आयोजन
- “मर जाएंगे पर जमीन नहीं देंगे” के नारों से गूंजा इलाका
- 1976-77 की भूमि वितरण नीति को रद्द करने की मांग
- ग्रामसभा आधारित खतियान सत्यापन प्रक्रिया लागू करने की अपील
- त्रिपुरा व झारखंड के कई बड़े आदिवासी नेता हुए शामिल
1932 खतियान की मांग को लेकर आदिवासी किसानों का हल्ला बोल
गुमला जिले के डुमरी प्रखंड में आज बुधवार को आदिवासी अधिकार मंच के बैनर तले हज़ारों आदिवासी किसान और ग्रामीण जुटे। उन्होंने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को लागू करने, आदिवासी ज़मीन की रक्षा, और भूमि अधिकारों की बहाली को लेकर जोरदार प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारियों ने “BDO – CO मुर्दाबाद” और “मर जाएंगे पर जमीन नहीं देंगे” जैसे नारों से माहौल को आंदोलित कर दिया। सुबह 10:30 बजे डुमरी बाजार टांड़ से शुरू हुई रैली, बाद में एक विशाल जनसभा में बदल गई।
नेताओं ने सरकार को दी चेतावनी
जनसभा में त्रिपुरा के पूर्व सांसद जितेन्द्र चौधरी, आदिवासी मंच के संयोजक पूर्णिमा बिहारी बारके, और झारखंड मंच के अध्यक्ष प्रफुल्ल लिंडा ने शिरकत की।
नेताओं ने 1976-77 में आदिवासियों की ज़मीन बाहरी लोगों को देने की नीति को संविधान विरोधी बताया। उन्होंने कहा:
“सरकार अगर हमारी मांगें नहीं मानेगी तो आंदोलन को और उग्र किया जाएगा। जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए युवाओं को संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा।”
उठी ये प्रमुख मांगें
- 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को पूर्ण रूप से लागू किया जाए।
- 1976-77 की भूमि वितरण नीति रद्द की जाए और ज़मीनें आदिवासियों को वापस मिले।
- ऑनलाइन खतियान प्रक्रिया खत्म कर ग्रामसभा आधारित सत्यापन प्रणाली शुरू की जाए।
आंदोलन को मिली ज़मीनी ताकत
कार्यक्रम की सफलता के पीछे गुमला जिला समिति का संगठित प्रयास था। आयोजकों में मोहन उरांव, आनंद प्रकाश एक्का, गॉडविन बखला और सुखदेव उरांव की अहम भूमिका रही।

न्यूज़ देखो : ज़मीन और पहचान के संघर्ष की आवाज़
‘न्यूज़ देखो’ हर संघर्ष को आपकी आवाज़ बनाता है। 1932 खतियान आंदोलन सिर्फ नीति नहीं, पहचान की लड़ाई है। ऐसे जनांदोलनों की गूंज दूर तक जाए — इसके लिए जुड़े रहिए, सच के साथ।