Site icon News देखो

धनबाद से उठी आवाज़ — जीतपुर कोलियरी बंद करने के निर्णय का कांग्रेस और ट्रेड यूनियन ने किया विरोध

#धनबाद #जीतपुरकोलियरीविवाद : खनिकों की आजीविका पर संकट — कोलियरी बंदी को बताया राष्ट्रीय संपत्ति के खिलाफ षड्यंत्र

कांग्रेस और यूनियनों ने जताया कड़ा विरोध

धनबाद के जीतपुर कोयला खदान को बंद किए जाने के फैसले के खिलाफ कांग्रेस पार्टी और ट्रेड यूनियनों ने खुलकर मोर्चा खोल दिया है। इंटक के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं विधायक जयमंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह ने इस फैसले को राष्ट्रहित के खिलाफ बताते हुए केंद्रीय इस्पात मंत्री और सेल अध्यक्ष को पत्र लिखकर बंदी रद्द करने की मांग की है। उन्होंने इसे खनिकों की आजीविका के साथ अन्याय और राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान करार दिया।

ट्रेड यूनियन आरसीएमयू ने बताया — यह एक ‘राष्ट्रीय अपराध’

आरसीएमयू के महासचिव एके झा ने प्रेस को जानकारी देते हुए कहा कि जीतपुर कोलियरी पिछले 109 वर्षों से सक्रिय है और इसमें अब भी 11 मिलियन टन वाशरी ग्रेड-3 कोयले का भंडार मौजूद है। उन्होंने कहा कि खदान को डीजीएमएस की रिपोर्ट के बहाने बंद किया गया, जबकि असली कारण कुछ अधिकारियों और पूंजीपतियों के बीच मिलीभगत है।

एके झा ने आरोप लगाया: “इस खदान को बंद करना राष्ट्रीय अपराध से कम नहीं है। यह चुनिंदा कॉरपोरेट घरानों की साजिश है, जिन्होंने अधिकारियों की मिलीभगत से खदान को बंद करवाया।”

खदान बंदी से प्रभावित होंगे हजारों मजदूर परिवार

आरसीएमयू के अनुसार, इस खदान में कार्यरत 1,000 से अधिक मजदूर परिवार अपनी आजीविका के संकट में फंसे हुए हैं। इसके अलावा केंद्रीय और राज्य सरकारों को भी करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ेगा। यूनियन का कहना है कि सेल के पास इस खदान को दोबारा चालू करने की पूरी तकनीकी क्षमता है।

विधायक अनूप सिंह ने की मांग — तुरंत हो पुनर्विचार

विधायक अनूप सिंह ने अपने पत्र में आग्रह किया है कि जीतपुर कोलियरी को बंद करने का निर्णय तुरंत रद्द किया जाए और खदान को फिर से चालू किया जाए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की ओर से भी हस्तक्षेप आवश्यक है, ताकि मजदूरों की आजीविका और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बचाया जा सके।

न्यूज़ देखो: श्रमिकों की अनदेखी नहीं बर्दाश्त

‘न्यूज़ देखो’ मानता है कि राष्ट्रीय संपत्ति को बंद करने का निर्णय बेहद गंभीर विषय है, खासकर जब इससे हज़ारों परिवारों की रोज़ी-रोटी जुड़ी हो। इस मामले में श्रमिक हितों की अनदेखी और पारदर्शिता की कमी स्पष्ट रूप से सामने आ रही है। सरकार और सेल को इस निर्णय पर पुनर्विचार कर श्रमिकों के भविष्य की रक्षा करनी चाहिए। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

श्रमिक हितों की रक्षा से ही बनेगा आत्मनिर्भर भारत

संवेदनशील शासन और जवाबदेह व्यवस्था तभी संभव है जब सार्वजनिक निर्णयों में आम जनता और श्रमिकों की भलाई को प्राथमिकता दी जाए। इस खबर को साझा करें ताकि सरकार तक आपकी आवाज़ पहुंचे। टिप्पणियों में अपनी राय जरूर बताएं और इस लेख को मजदूरों से जुड़े लोगों तक भेजें।

Exit mobile version