
#गिरिडीह #पेयजल : बराकर किनारे बनी करोड़ों की टंकी अब भी बेकार, ग्रामीणों की उम्मीदें फिर जगीं
- बराकर नदी किनारे नवाघाट स्थित पानी की टंकी वर्षों से बंद पड़ी।
- फरवरी में ग्रामीणों ने अनिश्चितकालीन धरना दिया था।
- 11.29 करोड़ रुपये की लागत से बनी टंकी का लाभ 15 हजार आबादी को मिलना था।
- प्रशासन का आश्वासन—एक महीने में टंकी चालू होगी।
- बबलू यादव और अशोक कुशवाहा ने डीसी से मुलाकात कर जताई नाराजगी।
बराकर नदी किनारे नवाघाट में बनी करोड़ों की पानी की टंकी ग्रामीणों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाई है। कई सालों से बंद यह टंकी अब भी शोभा की वस्तु बनी हुई है। शुक्रवार को इस मुद्दे को लेकर ग्रामीणों ने जिला उपायुक्त रामनिवास यादव से मुलाकात की और जल्द से जल्द पानी सप्लाई शुरू करने की मांग उठाई।
वर्षों से बेकार करोड़ों की पानी टंकी
गिरिडीह जिले के बिरनी प्रखंड के मंझीलाडीह और बाराडीह पंचायत के करीब 15 हजार की आबादी के लिए 11 करोड़ 29 लाख रुपये की लागत से यह टंकी बनाई गई थी। इसका उद्देश्य ग्रामीणों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना था। लेकिन विडंबना यह है कि निर्माण के सालों बाद भी यह टंकी बेकार पड़ी है और ग्रामीण आज भी पानी के संकट से जूझ रहे हैं।
फरवरी में हुआ था बड़ा आंदोलन
इस मुद्दे पर ग्रामीणों ने पहले भी अपनी नाराजगी जाहिर की थी। फरवरी महीने में ग्रामीणों ने कंपकंपाती ठंड में अनिश्चितकालीन धरना देकर प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया था। उस समय प्रखंड पदाधिकारियों ने लिखित आश्वासन दिया था कि जल्द ही टंकी को चालू कर दिया जाएगा। लेकिन लगभग छह महीने बीत जाने के बावजूद हालात जस के तस बने हुए हैं।
हिंदूवादी नेता बबलू यादव ने कहा: “हमने डीसी से कहा कि छह महीने पहले आश्वासन मिला था, लेकिन अब तक सप्लाई शुरू नहीं हुई। डीसी ने भरोसा दिलाया कि एक महीने में टंकी चालू कर दी जाएगी।”
जनाक्रोश और उम्मीदें
ग्रामीणों का कहना है कि जब करोड़ों रुपये खर्च कर सुविधा बनाई गई है तो इसका लाभ जनता को क्यों नहीं मिल रहा। पानी की टंकी बंद रहने के कारण लोगों को आज भी नदी और कुएं का सहारा लेना पड़ता है। यह न केवल स्वच्छता के लिहाज से खतरनाक है, बल्कि स्वास्थ्य समस्याओं को भी जन्म दे सकता है।
प्रशासन का ताजा आश्वासन
डीसी रामनिवास यादव ने ग्रामीणों को भरोसा दिलाया है कि एक महीने के अंदर पानी टंकी को चालू कर दिया जाएगा। प्रशासन ने कहा कि तकनीकी दिक्कतों को दूर करने के लिए काम शुरू किया जाएगा। अब देखना यह होगा कि यह आश्वासन हकीकत में कब बदलता है।
न्यूज़ देखो: करोड़ों की परियोजना और जिम्मेदारी का सवाल
यह मामला सरकारी योजनाओं की लापरवाही और निगरानी की कमी पर सवाल खड़ा करता है। जब करोड़ों रुपये की परियोजना जनता की प्यास बुझाने के लिए बनी थी, तो यह वर्षों तक बेकार क्यों रही? प्रशासन को चाहिए कि इस बार का वादा सिर्फ आश्वासन तक सीमित न रहे।
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अब समय है बदलाव का
गांव की प्यास बुझाने का सपना अधूरा न रहे, इसके लिए हम सबको प्रशासन पर नजर रखनी होगी और अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। अपनी राय कॉमेंट करें और इस खबर को अधिक से अधिक लोगों तक शेयर करें ताकि जिम्मेदारों पर जवाबदेही बने और समस्या का समाधान जल्द हो।