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मनातू में बंधन विकास केंद्र की महिलाएं देंगी इस्तीफा, बीपीएम पर 7 लाख रुपए ट्रांसफर करने का आरोप

#पलामू #महिला_विकास : महिलाओं ने कहा—न मीटिंग होती है, न हिसाब दिया जाता है

मनातू (पलामू): जिले के मनातू प्रखंड अंतर्गत रंगेया पंचायत के नावा चुनका गांव स्थित बंधन विकास केंद्र से जुड़ी महिलाएं अब पद छोड़ने की तैयारी में हैं। महिलाओं का आरोप है कि जेएसएलपीएस की बीपीएम नम्रता कुमारी द्वारा लगातार पैसे ट्रांसफर करवाए जा रहे हैं, लेकिन न कोई सामग्री खरीदी जा रही है और न ही किसी प्रकार का विकास कार्य हो रहा है।

महिलाओं की पीड़ा और आरोप

बंधन विकास केंद्र की अध्यक्ष बंजंती देवी ने बताया कि साल 2020 में ग्रामीण बैंक चक में उनके नाम से खाता खोला गया था। केंद्र के खाते में जैसे ही पैसा आता है, बीपीएम कहती हैं कि सामान खरीदना है और तुरंत पैसा ट्रांसफर करवा लेती हैं। लेकिन आज तक कोई सामान खरीदा नहीं गया।

अध्यक्ष ने कहा, “हम लोग अनपढ़ हैं। हमें मीटिंग की जानकारी नहीं दी जाती। पिछले एक साल से मीटिंग में नहीं जा रहे हैं क्योंकि कोई सूचना नहीं मिलती। रजिस्टर और पासबुक भी मैडम अपने पास रखती हैं। हमें डर है और अब विश्वास नहीं बचा है। इसलिए हम इस्तीफा देना चाहते हैं।”

कोषाध्यक्ष का बयान

विदेशी देवी, जो केंद्र की कोषाध्यक्ष हैं, ने कहा कि बंधन विकास केंद्र में जुड़े हुए आठ साल हो गए लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। उनके मुताबिक, “खाते में कुल 15 लाख रुपए आए थे, जिसमें से लगभग 7 लाख रुपए सामग्री खरीदने के नाम पर ट्रांसफर करवा लिए गए, लेकिन आज तक कोई काम नहीं हुआ। ट्रैक्टर भी लिया गया था, मगर उससे भी हमें कोई लाभ नहीं मिला। ट्रैक्टर को ले जाकर मैडम ने कहीं और खड़ा करवा दिया।”

सचिव की नाराजगी

सचिव श्रद्धा देवी ने भी यही कहा कि महिलाओं को सिर्फ बैंक जाकर पैसा ट्रांसफर करने के लिए कहा जाता है। कोई सूचना या रिपोर्ट उन्हें नहीं दी जाती। वे भी अब इस केंद्र से अपना नाम वापस लेने की बात कह रही हैं।

प्रशासन की प्रतिक्रिया

जब इस मामले में जिला परियोजना प्रबंधक (डीपीएम) अनीता केरकेटा से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि पूरी जानकारी बीपीएम नम्रता कुमारी तक पहुंचा दी जाएगी और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।

न्यूज़ देखो: महिलाओं की मेहनत और विश्वास पर न लगे आंच

मनातू की यह घटना महिला सशक्तिकरण और विकास योजनाओं की सच्चाई को उजागर करती है। यदि पैसे का सही इस्तेमाल नहीं होता, तो ग्रामीण महिलाएं न सिर्फ हतोत्साहित होती हैं, बल्कि उनके भरोसे पर भी आघात होता है। प्रशासन को इस मामले में पारदर्शी जांच और ठोस कार्रवाई करनी होगी।

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महिलाओं की आवाज़ को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता

बंधनों को तोड़कर आगे बढ़ने का नाम ही सशक्तिकरण है। इन महिलाओं की मांग सिर्फ पैसे का हिसाब और काम की पारदर्शिता है। अब समय है कि जिम्मेदार अधिकारी उनकी बात सुनें और सही समाधान दें। अपनी राय कमेंट करें और इस खबर को साझा करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस मुद्दे से जुड़ सकें।

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