
#रांची #स्थानीय_नीति_विवाद — सदन में रखा गया गैर सरकारी संकल्प, सरकार ने दिया औपचारिक जवाब
- 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को लेकर फिर गरमाया सदन
- विधायक जयराम महतो ने 01 पन्ने में 25 साल की नीतिगत अनदेखी पर खड़ा किया सवाल
- अब तक की सभी सरकारों पर स्थानीयता के सवाल पर निर्णय न लेने का आरोप
- सरकार ने कहा, “विधायी प्रक्रिया अभी प्रक्रियाधीन है”
- 2022 में पास हुआ था विधेयक, लेकिन अब तक लागू नहीं
- झारखंडी युवाओं के रोजगार अधिकार से जुड़े सबसे संवेदनशील मसले पर फिर विवाद
एक पन्ने में 25 साल की कहानी: युवा विधायक ने दिखाई संवेदनशीलता
झारखंड विधानसभा के 27 मार्च 2025 के सत्र में डुमरी विधायक जयराम कुमार महतो ने एक गैर सरकारी संकल्प के ज़रिए एक बार फिर 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग को प्रखरता से उठाया।
उन्होंने पिछले 25 वर्षों में बनी सभी सरकारों पर यह आरोप लगाया कि झारखंड के अस्तित्व, पहचान और अधिकार से जुड़े इस महत्वपूर्ण मसले को हमेशा टाला गया है।
“स्थानीयता सिर्फ संवैधानिक विषय नहीं, ये हमारी पहचान और अधिकार से जुड़ा हुआ प्रश्न है।”
– जयराम कुमार महतो
पहले भी बनीं समितियाँ, लेकिन कभी नहीं हुआ कोई निर्णायक फैसला
जयराम महतो के अनुसार, 2002 में जब पहली बार स्थानीय नीति बनी, तब झारखंड उच्च न्यायालय ने उसे खारिज कर दिया।
इसके बाद 2010, 2013, 2016 और 2022 तक विभिन्न सरकारों द्वारा समितियाँ तो बनाई गईं, लेकिन किसी भी समिति ने कोई ठोस अनुशंसा नहीं दी।
रघुवर दास सरकार ने 1985 को आधार वर्ष मानते हुए नीति बनाई, जिसे झारखंडी जनभावनाओं के खिलाफ माना गया।
जबकि 2022 में हेमंत सोरेन सरकार ने 1932 खतियान आधारित विधेयक पास कराया, लेकिन वह आज तक लागू नहीं हो पाया।
सरकार का जवाब: प्रक्रिया अभी चल रही है
सरकार की ओर से जारी जवाब में कहा गया है कि—
“झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और लाभ विस्तार हेतु 1932 खतियान आधारित विधेयक को विधानसभा ने 11 नवंबर 2022 को पारित किया। राज्यपाल की आपत्ति के बाद 20 दिसंबर 2023 को पुनः पारित किया गया। अब आगे की विधायी प्रक्रिया प्रक्रियाधीन है।”
इस जवाब से यह स्पष्ट है कि सरकार अब भी इस मुद्दे को पूर्णतः लागू नहीं कर पाई है, जिससे झारखंडी युवाओं में आक्रोश और असंतोष बढ़ता जा रहा है।
क्या झारखंडी युवाओं को मिलेगा उनका हक?
इस संपूर्ण घटनाक्रम में एक बड़ा प्रश्न उभरकर सामने आता है — क्या अब भी झारखंडी युवाओं को अपने अधिकारों के लिए लंबा इंतजार करना होगा?
जब सर्वसम्मति से पारित विधेयक भी अमल में नहीं आ पाता, तब यह सवाल उठता है कि “स्थानीयता की परिभाषा” को लेकर राज्य की राजनीतिक इच्छाशक्ति कितनी मजबूत है।
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