
#रांची #सिमडेगा #खोरठासाहित्य : आदिकवि श्री निवास पानुरी की 105वीं जयंती पर कवि सम्मेलन और सम्मान समारोह आयोजित।
खोरठा भाषा के आदिकवि स्वर्गीय श्री निवास पानुरी की 105वीं जयंती 25 दिसंबर को लोहारबरवा वरवड्डा में गरिमामय वातावरण में मनाई गई। इस अवसर पर खोरठा कवि सम्मेलन सह सम्मान समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें साहित्यकारों, जनप्रतिनिधियों और स्थानीय नागरिकों ने भाग लिया। कार्यक्रम में खोरठा भाषा के संरक्षण और पहचान को लेकर गंभीर विमर्श हुआ। समारोह ने झारखंडी भाषा साहित्य की सांस्कृतिक विरासत को नई ऊर्जा दी।
- 25 दिसंबर को लोहारबरवा वरवड्डा में हुआ आयोजन।
- मदन मोहन तोरण ने की अध्यक्षता, विनय तिवारी ने किया संचालन।
- टुंडी विधायक मथुरा प्रसाद महतो रहे मुख्य अतिथि।
- खोरठा साहित्य की पत्रिकाओं और कविता संग्रहों का विमोचन।
- पत्रकार रविकांत मिश्रा सहित पांच साहित्यसेवी सम्मानित।
- कई खोरठा कवियों ने कविता पाठ कर श्रोताओं को किया भावविभोर।
खोरठा भाषा–साहित्य के आदिकवि स्वर्गीय श्री निवास पानुरी की 105वीं जयंती के अवसर पर आयोजित यह समारोह न केवल श्रद्धांजलि कार्यक्रम था, बल्कि खोरठा भाषा की वर्तमान स्थिति और भविष्य की दिशा पर गंभीर संवाद का मंच भी बना। कार्यक्रम में झारखंड के विभिन्न हिस्सों से आए साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया और खोरठा भाषा के संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
श्रद्धांजलि से हुई कार्यक्रम की शुरुआत
समारोह की शुरुआत खोरठा के बाल्मीकि कहे जाने वाले स्व. श्री निवास पानुरी की तस्वीर पर माल्यार्पण के साथ हुई। उपस्थित अतिथियों और साहित्यकारों ने उन्हें नमन करते हुए उनके साहित्यिक योगदान को स्मरण किया। इसके बाद खोरठा भाषा–साहित्य को समर्पित पत्रिका परासफुल, बुढीक बयान तथा हामर छोटानागपुर खोरठा कविता संग्रह का विधिवत विमोचन किया गया, जिसे साहित्य प्रेमियों ने ऐतिहासिक क्षण बताया।
मुख्य अतिथि ने खोरठा भाषा की भूमिका पर डाला प्रकाश
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि टुंडी विधायक मथुरा प्रसाद महतो ने कहा:
मथुरा प्रसाद महतो ने कहा: “खोरठा झारखंड की जनसंपर्क भाषा है और इसके संरक्षण व संवर्धन के लिए हरसंभव सहयोग किया जाएगा।”
उन्होंने कहा कि खोरठा भाषा को आज भी उसका उचित सम्मान नहीं मिल पाया है और इसके लिए समाज व सरकार दोनों को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। उन्होंने युवाओं से अपनी मातृभाषा को अपनाने और आगे बढ़ाने की अपील की।
आदिकवि की देन है खोरठा की पहचान: विनय तिवारी
कार्यक्रम का संचालन कर रहे खोरठा गीतकार, कवि एवं लेखक विनय तिवारी ने अपने संबोधन में कहा:
विनय तिवारी ने कहा: “खोरठा भाषा की पहचान आदिकवि श्री निवास पानुरी की देन है, जिन्होंने अपनी लेखनी से इसे समृद्ध और सशक्त बनाया।”
उन्होंने कहा कि श्री निवास पानुरी ने खोरठा को केवल बोली नहीं, बल्कि साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया।
कवि सम्मेलन में गूंजे खोरठा के स्वर
कवि सम्मेलन में महेंद्र प्रबुद्ध, विनय तिवारी, पुनीत साव, नेतलाल यादव, सुलेमान अंसारी, मदन मोहन तोरण, नरसिंह पांडेय, प्रयाग महतो, तारकेश्वर महतो गरीब, उर्मिला कुमारी सहित अन्य कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। कविताओं में खोरठा संस्कृति, समाज, संघर्ष और पहचान की गूंज साफ सुनाई दी, जिससे श्रोता भावविभोर हो उठे।
सम्मान समारोह बना आकर्षण का केंद्र
इस अवसर पर खोरठा भाषा–साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए जीतेन कुमार दास, अनिल कुमार गोस्वामी, तारकेश्वर महतो, पत्रकार रविकांत मिश्रा और चितरंजन गोप लुकाठी को श्री निवास पानुरी प्रबुद्ध सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान पाकर सभी विभूतियों ने इसे खोरठा भाषा के लिए समर्पित संघर्ष की मान्यता बताया।
साहित्यकारों ने जताई चिंता
लेखक नारायण चंद्र मंडल ने कहा:
नारायण चंद्र मंडल ने कहा: “खोरठा भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए संघर्ष अभी भी जारी है।”
उन्होंने शिक्षा और प्रशासन में खोरठा भाषा को स्थान देने की आवश्यकता पर बल दिया।
बड़ी संख्या में गणमान्य लोग रहे उपस्थित
कार्यक्रम में मनोज महतो, बसंत महतो, निर्मला देवी, रेखा देवी, आशा देवी, कृष्ण राजकिशोर पानुरी, रोहित पानुरी, जतिन पानुरी, राहुल पानुरी, अनमोल चौरसिया, अंशुमान, युवा नेता संतोष पांडेय, रुपेश तिवारी सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन गणेश चौरसिया ने किया।

न्यूज़ देखो: खोरठा भाषा की सांस्कृतिक चेतना का सशक्त मंच
यह आयोजन स्पष्ट करता है कि खोरठा भाषा केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की पहचान है। साहित्यिक आयोजनों के माध्यम से भाषा को जीवित रखना समाज की जिम्मेदारी है। ऐसे कार्यक्रम प्रशासन और सरकार को भी यह संदेश देते हैं कि स्थानीय भाषाओं को संरक्षण की आवश्यकता है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
अपनी भाषा, अपनी पहचान को आगे बढ़ाएं
खोरठा भाषा–साहित्य की यह विरासत हमें अपनी जड़ों से जोड़ती है।
ऐसे आयोजन नई पीढ़ी को अपनी मातृभाषा पर गर्व करना सिखाते हैं।
स्थानीय भाषाओं के संरक्षण में हर नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण है।
आप भी अपनी भाषा के लिए आवाज उठाएं, साहित्य से जुड़ें और संस्कृति को सहेजें।
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