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बुजुर्गों की आस्था और युवा उत्साह के बीच डूमरडांड में करम पर्व की जीवंत झलक

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#गिरिडीह #करम_पर्व : डूमरडांड गांव में आदिवासी परंपरा और सांस्कृतिक उत्साह के साथ मनाया गया करम पर्व
  • डूमरडांड गांव में करम पर्व उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया गया।
  • युवाओं और महिलाओं ने मांदर, नगाड़ा और करताल की थाप पर करम डाली लाकर गांव के अखरा में स्थापित की।
  • पुजारी सुभाष भगत ने करम देवता की पूजा-अर्चना और पारंपरिक कथाएँ सुनाईं।
  • पर्व के दौरान पूरे गांव के पुरुष, महिलाएं और बच्चे रातभर परंपरागत करम गीतों और नृत्य में शामिल रहे।
  • करम डाली को अगले दिन घर-घर दर्शन कराने के बाद नदी में विसर्जित किया गया।
  • कार्यक्रम में समाज के सभी वर्ग ने प्रकृति और संस्कृति के प्रति समान सम्मान और श्रद्धा दिखाई।

डूमरडांड गांव में आदिवासी समाज ने करम पर्व बड़े उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया। पर्व की शुरुआत युवाओं और महिलाओं द्वारा मांदर, नगाड़ा और करताल की थाप पर करम डाली लाने और गांव के अखरा में स्थापित करने के साथ हुई। इसके बाद पुजारी सुभाष भगत ने करम देवता की विधिवत पूजा-अर्चना की और पारंपरिक कथाएँ सुनाईं। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम, ईमानदारी और प्रकृति के संरक्षण जैसे मूल्यों की शिक्षा देने वाला माना जाता है।

पर्व का सांस्कृतिक महत्व और रस्में

करम डाली की स्थापना के उपरांत गांववासियों ने विधिवत पूजा-अर्चना की। पुजारी सुभाष भगत ने करम देवता की कथा सुनाते हुए कहा कि यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि समाज में भाईचारा और सहयोग की भावना को भी मजबूत करता है। रातभर गांववासियों ने पारंपरिक भेष, गीत और नृत्य के माध्यम से इस उत्सव को जीवंत बनाए रखा। पुरुष, महिलाएं और बच्चे सभी मिलकर मांदर-घंट की थाप पर रातभर करम गीतों और नृत्य में शामिल हुए।

करम डाली का विसर्जन और घर-घर दर्शन

पर्व के अगले दिन सुबह करम डाली को पूरे गांव में घुमाया गया। इसके माध्यम से प्रत्येक परिवार को डाली के दर्शन कराए गए और उनके कल्याण की प्रार्थना की गई। इसके पश्चात पारंपरिक नृत्य और गीतों के साथ जुलूस निकाला गया और करम डाली को नदी में विसर्जित किया गया। इस अवसर पर समाज के सभी वर्ग ने प्रकृति और परंपरा के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया।

समाज में करम पर्व की सांस्कृतिक धरोहर

डूमरडांड गांव के इस आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि आदिवासी समुदाय अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में सक्रिय है। यह पर्व न केवल धार्मिक उत्सव है बल्कि सामाजिक मूल्यों और प्रकृति संरक्षण की सीख भी देता है।

न्यूज़ देखो: करम पर्व में युवाओं और बुजुर्गों ने दिखाई परंपरा के प्रति प्रतिबद्धता

यह आयोजन दर्शाता है कि समाज अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने के लिए मिलकर काम कर रहा है। युवा पीढ़ी की भागीदारी और बुजुर्गों का मार्गदर्शन समाज में समन्वय और सांस्कृतिक शिक्षा को सशक्त बनाता है। ऐसे आयोजनों से परंपरा और आधुनिक जीवन के बीच संतुलन भी स्थापित होता है।

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युवा ऊर्जा और सांस्कृतिक संवेदनशीलता को जोड़कर बनाए मजबूत समाज

परंपरा और आधुनिकता के संतुलन को बनाए रखना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। करम पर्व जैसे आयोजनों में भाग लेकर हम अपनी संस्कृति को जीवित रख सकते हैं और समाज में भाईचारे, सहयोग और प्राकृतिक संरक्षण की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं। अपनी राय कमेंट करें, यह खबर साझा करें और स्थानीय सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय भागीदारी निभाने की प्रेरणा फैलाएं।

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Aditya Kumar

डुमरी, गुमला

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