
#गिरिडीह #धरना_विवाद : बीसीसीएल ब्लॉक-2 में चल रहे सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी के धरने के विरोध में भाजपा कार्यकर्ताओं और लोकल सेल मजदूरों ने किया जोरदार प्रदर्शन
- सांसद के आंदोलन को बताया निजी स्वार्थ से प्रेरित
- भाजपा कार्यकर्ताओं ने काले झंडे के साथ जताया विरोध
- लोकल सेल मजदूरों ने रोजगार छिनने का लगाया आरोप
- धरना स्थल पर लगे नारे – ‘सांसद होश में आओ’
- विरोध में शामिल भाजपा कार्यकर्ताओं में नाराजगी स्पष्ट
गिरिडीह सांसद के धरने को लेकर भाजपा में फूटा असंतोष
गिरिडीह। बीसीसीएल ब्लॉक-2 में स्थानीय नियोजन, पुनर्वास और अन्य मांगों को लेकर आजसू पार्टी के गिरिडीह सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी द्वारा शुरू किए गए अनिश्चितकालीन धरना को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। धरने के पहले ही दिन सांसद को भाजपा कार्यकर्ताओं और लोकल सेल मजदूरों के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा।
काले झंडे और नारेबाजी के साथ विरोध
धरना स्थल पर भाजपा कार्यकर्ताओं और स्थानीय मजदूरों ने काले झंडे दिखाकर विरोध जताया। “सांसद होश में आओ”, “लोकल मजदूरों के साथ अन्याय नहीं सहेंगे” जैसे नारों से माहौल गर्माया रहा। भाजपा कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि सांसद ने चुनाव में विरोध करने वालों को साथ लेकर अब उन्हीं लोगों के हित में यह आंदोलन शुरू किया है।
विरोधियों के साथ मिलकर रोजगार छीनने का आरोप
विरोध में शामिल एक भाजपा कार्यकर्ता ने कहा:
“चुनाव में सांसद को जिताने के लिए हमने तन, मन, धन से मेहनत की, लेकिन आज वही सांसद विरोधियों के साथ मिलकर लोकल सेल मजदूरों की रोजी-रोटी छीनने का काम कर रहे हैं।”
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि सांसद का यह आंदोलन निजी स्वार्थ से प्रेरित है और इसमें स्थानीय हितों को नजरअंदाज किया गया है।
सांसद के धरने पर सवाल
धरने की शुरुआत से पहले ही जिस तरह का विरोध प्रदर्शन देखने को मिला, उससे सांसद की रणनीति और उद्देश्य पर सवाल खड़े हो गए हैं। एक ओर सांसद स्थानीय नियोजन और पुनर्वास की मांग उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी राजनीतिक सहयोगी पार्टी भाजपा के कार्यकर्ता ही उनके खिलाफ मोर्चा खोलते नजर आए।
न्यूज़ देखो: जनहित के मुद्दे या राजनीतिक टकराव?
लोकतंत्र में आंदोलन जनभावनाओं का प्रतीक होता है, लेकिन जब अपने ही राजनीतिक सहयोगी विरोध में उतरें, तो मामला जनहित से ज्यादा राजनीतिक असंतोष का प्रतीक बन जाता है। गिरिडीह में जो हो रहा है, वह एक उदाहरण है कि राजनीतिक संधियों और स्थानीय उम्मीदों के बीच जब संतुलन बिगड़ता है, तो विरोध सड़क पर उतर आता है।
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