
#भारत #कांग्रेसस्थापनादिवस : राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के पुनर्जागरण और ऐतिहासिक यात्रा पर विचार
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के 28 दिसंबर को पूरे देश में ऐतिहासिक विरासत और वर्तमान राजनीतिक भूमिका को लेकर चर्चा तेज होती है। 1885 में शुरू हुई कांग्रेस की यात्रा केवल एक दल की कहानी नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के विकास की गाथा है। आज जब देश की राजनीति निर्णायक दौर में है, कांग्रेस नेतृत्व और दिशा को लेकर नए सिरे से बहस सामने आई है। इस संदर्भ में अधिवक्ता हृदयानंद मिश्र ने कांग्रेस की ऐतिहासिक भूमिका और राहुल गांधी के नेतृत्व पर विस्तृत विचार रखे हैं।
- 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस अपनी लोकप्रियता के निम्नतम बिन्दु पर थी और उसे महज 44 सीटें मिली थीं।
- 2022 में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद राहुल गांधी एक नए अवतार में समसामयिक इतिहास को प्रभावित करते दीख रहे हैं।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कहानी केवल एक राजनीतिक दल की कहानी नहीं, बल्कि भारत के आधुनिक इतिहास की आत्मकथा है।
- 28 दिसंबर 1885 को गोपालदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज, मुंबई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई।
- कांग्रेस ने अपने प्रारंभिक अधिवेशनों में नागरिक अधिकारों, प्रशासनिक, संवैधानिक और आर्थिक मुद्दों पर प्रस्ताव पारित किए।
2014 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी सत्ता को स्थायी बनाने की जुगत में लग गए थे। उनका सही आकलन था कि क्षेत्रीय क्षत्रप और पार्टियां उनको चुनौती पेश नहीं कर पाएंगी, क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियां व्यक्ति विशेष के करिश्मे और चमत्कार पर निर्भर होती हैं। अधिकांश क्षेत्रीय पार्टियां व्यक्ति विशेष के निजी पारिवारिक हितों, आकांक्षाओं और स्वार्थपूर्ति की साधन मात्र होती हैं। त्रासदी यह भी थी कि 2014 में कांग्रेस अपनी लोकप्रियता के निम्नतम बिन्दु पर थी, उसे महज 44 सीटें मिली थीं। अपनी लोकप्रियता से बौराए मोदी कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखने लगे और सोनिया गांधी को जर्सी गाय और राहुल गांधी को ‘पप्पू’ साबित करने में जुट गए। भाजपा का मीडिया सेल अपने व्हॉट्सप यूनिवर्सिटी के शोधों(?) के जरिए एक हद तक सफल होता भी दिखा।
राहुल गांधी और बदला हुआ राजनीतिक परिदृश्य
लेकिन, 2022 में अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद राहुल गांधी एक नए अवतार में समसामयिक इतिहास को प्रभावित करते दीख रहे हैं। आज, संसद में विपक्ष इतिहास में सबसे मजबूत स्थिति में है। वैश्विक परिदृश्य में नरेन्द्र मोदी अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं, भारतीय उपमहाद्वीप में भारत बड़े भाई की हैसियत गंवाता जा रहा है, राष्ट्रीय परिदृश्य में ‘लोकतंत्र चोरी’ के सबूत सामने आ रहे हैं। तथाकथित हिन्दूवाद, बहुसंख्यकवाद की आड़ में तानाशाही कायम करने की कोशिशें विफल होती दिख रही हैं। वस्तुतः, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा और मोदी की इतिहास की समझ अपर्याप्त है।
कांग्रेस की ऐतिहासिक भूमिका और वैचारिक विरासत
राहुल गांधी अपने कंधों पर सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार की विरासत ही नहीं, कांग्रेस का ऐतिहासिक दायित्व भी साथ लेकर चल रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कहानी केवल एक राजनीतिक दल की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारत के आधुनिक इतिहास की आत्मकथा है। यह कहानी संघर्ष की है, त्याग की है और उस विश्वास की है कि एक शोषित, पीड़ित जनता की सामूहिक, संगठित जनशक्ति अपने भाग्य को स्वयं लिख सकती है। कांग्रेस को समझे बिना भारत की लोकतांत्रिक यात्रा को समझना कठिन ही नहीं नामुमकिन है।
कांग्रेस स्थापना और ए ओ ह्यूम का संदर्भ
आरएसएस, भाजपा और मोदी इतिहास को इस प्रकार तोड़ते-मरोड़ते और अपने अनुरूप पेश करने की कोशिश करते रहे हैं कि कांग्रेस की स्थापना की पहल एक अंग्रेज प्रशासक ए ओ ह्यूम ने की थी। इसलिए, कांग्रेस पर अंग्रेजियत या फिर विदेशी संस्कृति हावी रही है। लेकिन, वह भूल जाते हैं कि ह्यूम की पदस्थापना इटावा के प्रशासक के रूप में सन् 1856 ई में इतिहास के एक ऐसे दौर में हुई थी, जब 1857 की क्रान्ति दस्तक दे रही थी। उसी दौर में आमजनों की आकांक्षाएं और अपेक्षाएं परवान चढ़ रही थीं, जिसकी अभिव्यक्ति एक ओर बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के ‘वंदेमातरम्’ में थी, तो दूसरी ओर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा स्वदेशी के विचारों में।
28 दिसंबर 1885 और कांग्रेस का गठन
इसी संदर्भ में 28 दिसंबर, 1885 को, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना गोपालदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज, मुंबई में हुई, जिसमें 72 प्रतिनिधि उपस्थित थे। ह्यूम ने महासचिव के रूप में कार्यभार संभाला, और व्योमेश चन्द्र बनर्जी को अध्यक्ष चुना गया। अन्य प्रमुख प्रतिनिधियों में दादाभाई नौरोजी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, बदरूद्दीन तैयबजी, फिरोजशाह मेहता, एस रामास्वामी मुदलियार, एस सुब्रमण्यम अय्यर और रमेश चन्द्र दत्त शामिल थे।
प्रारंभिक कांग्रेस के प्रस्ताव और दिशा
1885 से 1905 के बीच, कांग्रेस ने अपने अधिवेशनों में कई प्रस्ताव पारित किए। इन प्रस्तावों के माध्यम से कांग्रेस ने नागरिक अधिकारों, प्रशासनिक, संवैधानिक और आर्थिक नीतियों से संबंधित कई मांगें रखीं थीं।
नागरिक अधिकार
कांग्रेस ने भाषण और प्रेस की स्वतंत्रता, जुलूस निकालने, सभाएं आयोजित करने के अधिकार और इसी तरह के अन्य अधिकारों के महत्व को समझा।
प्रशासनिक
कांग्रेस ने प्रशासनिक खामियों को दूर करने, सरकारी सेवाओं में भारतीयों की नियुक्ति, किसानों की राहत के लिए कृषि बैंक खोलने और भेदभावपूर्ण कानूनों के विरोध से जुड़े प्रस्ताव रखे।
संवैधानिक
विधान परिषदों की शक्ति बढ़ाने और निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग की गई।
आर्थिक
कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों को बढ़ती कीमतों और आर्थिक समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराया तथा आधुनिक उद्योगों की स्थापना और सार्वजनिक सेवाओं के भारतीयकरण जैसे सुझाव दिए।
नरमपंथी और गरमपंथी धारा
लेकिन, सच यह भी है कि ब्रिटिश हुकूमत कांग्रेस की अनुशंसाओं और सुझावों को बहुत गंभीरता से नहीं लेती थी। नतीजतन, दादाभाई नौरोजी, गोपालकृष्ण गोखले और फिरोज शाह मेहता जैसे नरमपंथियों के बावजूद लाला लाजपत राय, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक और विपिन चन्द्र पाल जैसे गरमपंथियों की लोकप्रियता और जन-स्वीकार्यता लगातार बढ़ रही थी।
- हृदयानंद मिश्र (अधिवक्ता)
किश्त – एक





