
#रांची #स्थानीयनीतिमांग – पुण्यतिथि पर बिरसा समाधि स्थल पर श्रद्धांजलि के साथ स्थानीयता पर जोर, जेएलकेएम प्रतिनिधिमंडल ने सौंपा नियोजन प्रस्ताव
- देवेंद्र नाथ महतो ने राज्यपाल को 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति का प्रारूप सौंपा
- राज्यपाल ने बताया – विधेयक राष्ट्रपति भवन भेजा जा चुका है
- 25 वर्षों में 14 मुख्यमंत्री और 12 राज्यपाल बदल गए, फिर भी अधूरी रही स्थानीयता नीति
- झारखंडियों की पहचान, अधिकार और अस्मिता पर मंडरा रहा खतरा
- गंभीर मामलों में कानूनी पहल और ऐतिहासिक दस्तावेज सौंपे गए राज्यपाल को
कोकर समाधि स्थल से उठी जनभावना की आवाज
धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 125वीं पुण्यतिथि के अवसर पर झारखंड लोक कल्याण मंच (JHKM) के केंद्रीय वरीय उपाध्यक्ष देवेंद्र नाथ महतो के नेतृत्व में एक 9 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने रांची स्थित कोकर समाधि स्थल पर माल्यार्पण के बाद राज्यपाल संतोष गंगवार से मुलाकात कर झारखंड की स्थानीय नीति और नियोजन नीति का प्रारूप सौंपा।
देवेंद्र नाथ महतो ने इस दौरान कहा:
“आज जिस धरती आबा को माला चढ़ाई जा रही है, उन्हीं के जन्मदिन पर झारखंड राज्य का गठन हुआ था, लेकिन 25 वर्ष बाद भी उनका सपना अधूरा है। अब वक्त है उनके सपनों को साकार करने का।”
राज्यपाल ने दी संवेदनशील प्रतिक्रिया
राज्यपाल संतोष गंगवार ने प्रतिनिधिमंडल की बातों को गंभीरता से लेते हुए कहा कि “1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक 2022 को राष्ट्रपति भवन भेजा जा चुका है।” उन्होंने यह भी माना कि झारखंडियों की जनभावना का आदर होना चाहिए और समय की मांग है कि स्थानीयता और नियोजन को लेकर ठोस पहल हो।
स्थानीय नीति के इतिहास का खाका पेश
देवेंद्र नाथ महतो ने बताया कि:
- 2002 में बाबूलाल मरांडी सरकार ने सर्वे रिपोर्ट आधारित नीति बनाई थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया, लेकिन सरकार ने कानूनी लड़ाई नहीं लड़ी।
- 2010 में अर्जुन मुंडा सरकार ने मंत्री स्तरीय समिति बनाई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
- 2013 में हेमंत सोरेन सरकार ने भी समिति बनाई, पर रिपोर्ट नहीं आई।
- 2016 में रघुवर दास सरकार ने 1985 को आधार बनाया, जो जनभावना के खिलाफ था।
- 2022 में 1932 खतियान आधारित विधेयक विधानसभा से पास हुआ, लेकिन राज्यपाल ने वापस भेज दिया।
- 2023 में फिर से पारित हुआ, पर अब तक प्रक्रिया अधूरी है।
दस्तावेजों के साथ मजबूत पैरवी
राज्यपाल को सौंपे गए दस्तावेजों में शामिल थे:
- स्थानीय नीति और नियोजन नीति प्रारूप
- बिहार सरकार का 1982 का श्रम-नियोजन गजट
- बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 की छायाप्रति
साथ ही, डॉ. रामदयाल मुंडा समिति की रिपोर्ट के अनुरूप झारखंड की 9 जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं को मान्यता देकर नीति लागू करने की मांग की गई।
लगातार जनदबाव में है यह मुद्दा
प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि:
- दुमका से रांची तक पदयात्रा
- राजभवन के समक्ष 5 जून को धरना
- पहले कई बार झारखंड बंदी
- 72 विधायक और 13 सांसदों का लिखित समर्थन प्राप्त
“स्थानीयता नीति केवल रोजगार का नहीं, बल्कि अस्मिता और अधिकार की लड़ाई है,” — देवेंद्र नाथ महतो

न्यूज़ देखो : जनभावना बनाम नीतिगत जटिलता
स्थानीय नीति और नियोजन नीति झारखंड की राजनीति और प्रशासन की सबसे लंबी चली आ रही चुनौती बन चुकी है। देवेंद्र नाथ महतो जैसे समाजसेवियों के प्रयास यह दर्शाते हैं कि यह केवल राजनीतिक नहीं, सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक न्याय का प्रश्न है।
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अबुआ दिशुम को चाहिए स्पष्ट दिशा
बिरसा मुंडा के सपनों का झारखंड बनाने के लिए अब कानून, नीति और नियोजन में संकल्प की जरूरत है। जनभावना अगर नीतियों में न झलके, तो लोकतंत्र अधूरा है। यह आवाज अब और इंतजार नहीं कर सकती।