
#गढ़वा #समाहरणालय_भर्ती : DGPS-05 परामर्शदाता पद की नियुक्ति पर उठे गंभीर आरोप—आवेदक ने उपायुक्त से दस्तावेज़ी सत्यापन और चयन रद्द करने की मांग की
- DGPS-05 परामर्शदाता (Consultant) पद पर प्रेरणा मिश्रा के चयन पर गंभीर आरोप लगे।
- आवेदक अजीत चौधरी ने उपायुक्त को औपचारिक शिकायत देकर फर्जी शैक्षणिक व अनुभव प्रमाण पत्र का आरोप लगाया।
- भर्ती विज्ञापन में 24.09.2024 के बाद 11.03.2025 में किए गए अनुभव मानदंड (3 वर्ष से 7 वर्ष) के बदलाव पर सवाल उठाए गए।
- शिकायत में दावा है कि MBA (2020, 87.19%) के आधार पर अनुभव-समय की संगति संदिग्ध है।
- चयन प्रक्रिया में 06 अन्य आवेदक दस्तावेज़ सत्यापन में असफल रहे—यह तथ्य भी विवाद को हवा दे रहा है।
- शिकायतकर्ता ने अनुभव प्रमाण पत्रों, वेतन पर्ची/बैंक स्टेटमेंट और विश्वविद्यालय से डिग्री सत्यापन सहित तीव्र जाँच की मांग की।
गढ़वा जिले के समाहरणालय द्वारा DGPS-05 परामर्शदाता पद पर हुई नियुक्ति अब बड़े विवाद में उलझ गई है। इस मामले में पद के एक आवेदक अजीत चौधरी ने उपायुक्त सह जिला दण्डाधिकारी को एक औपचारिक शिकायती पत्र देकर चयनित उम्मीदवार प्रेरणा मिश्रा पर शैक्षणिक व अनुभव प्रमाण पत्रों में जालसाज़ी का गंभीर आरोप लगाया है। चौधरी ने भर्ती प्रक्रिया के कई पहलुओं पर संशय दिखाया है और कहा है कि चयन नियम-विरोधी तरीके से बदलकर किसी एक उम्मीदवार को लाभ पहुँचाने का प्रयास किया गया हो सकता है।
क्या-क्या आरोप लगाए गए हैं और क्यों बनी जाँच जरूरी
शिकायत के प्रमुख बिंदु निम्न हैं: (1) प्रारम्भिक विज्ञापन दिनांक 24.09.2024 में अनुभव की न्यूनतम अवधि 3 वर्ष अंकित थी, लेकिन दूसरे विज्ञापन (दिनांक 11.03.2025) में अनुभव मानदण्ड को अचानक 7 वर्ष कर दिया गया—इस बदलाव की वजह और तिथि-वार पुष्टि की मांग की गई है। (2) चयनित उम्मीदवार प्रेरणा मिश्रा की MBA डिग्री वर्ष 2020 बताई गई है; शिकायतकर्ता ने तर्क दिया है कि उसी वर्ष की डिग्री के आधार पर अनुभव की गणना और 3 वर्ष को 7 वर्ष में कैसे बदला गया यह समझने योग्य नहीं है। (3) अनुभव प्रमाण पत्रों की प्रामाणिकता पर संदेह जताते हुए चौधरी ने आरोप लगाया कि कुछ दस्तावेज़ों में फर्जी मोबाइल नंबर/ईमेल और मनगढ़ंत संस्थाओं का उल्लेख है। (4) भर्ती प्रक्रिया के दौरान 06 आवेदक दस्तावेज़ सत्यापन में असफल रहे—यह तथ्य चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगता है।
शिकायतकर्ता ने उपायुक्त से अनुरोध किया है कि प्रेरणा मिश्रा के चयन को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया जाए और निम्नलिखित दस्तावेज़ों की उच्च-स्तरीय जाँच कराई जाए:
- अनुभव प्रमाण पत्रों तथा उनके जारीकर्ताओं की वैधता की सत्यापित जाँच।
- संबंधित नियोक्ता संस्थाओं से सैलरी स्लिप/बैंक स्टेटमेंट मंगाकर कार्य करने की अवधि की प्रत्यक्ष पुष्टि।
- MBA डिग्री, मार्कशीट और विश्वविद्यालय में पंजीकरण का RTI/सत्यापन।
आवेदक ने यह भी कहा है कि यदि जाँच में धोखाधड़ी पाई जाती है तो चयन को रद्द कर उत्तरदायियों के खिलाफ अनुशासनात्मक व दण्डात्मक कार्रवाई की जाए।
भर्ती प्रक्रिया, पारदर्शिता और संभावित निहितार्थ
यह विवाद केवल एक नामित चयन का प्रश्न नहीं रह जाता, बल्कि सरकारी भर्ती प्रणालियों की विश्वसनीयता और विभागीय पारदर्शिता पर भी प्रभाव डालता है। जब विज्ञापन-शर्तों में बदलाव बिना स्पष्ट कारण और रिकॉर्ड के किए जाते हैं, तो प्रतिभागियों में आशंका उत्पन्न होती है कि भर्ती नियमों का दुरुपयोग किया गया है। DGPS-05 जैसे संवेदनशील परामर्शदाता पद में अनुभव और सत्यापित योग्यता की आवश्यकता अधिक है—यदि कोई असत्य दस्तावेज़-आधारित नियुक्ति हो तो परियोजनाओं तथा स्थानीय विकास कार्यक्रमों पर भी इसका नकारात्मक असर होगा।
प्रकरण में यह तथ्य भी चिंता का विषय है कि प्रारम्भिक चरण में छह आवेदक दस्तावेज़ सत्यापन में असफल रहे—इससे यह पता चलता है कि दस्तावेज़-प्रमाणीकरण प्रक्रिया पहले से ही कड़ी रही होगी और फिर अचानक मानदण्डों में बदलाव को लेकर संदेह उठना स्वाभाविक है।
प्रशासन पर दबाव और अपेक्षित कार्रवाई की रूपरेखा
शिकायत करते हुए अजीत चौधरी ने उपायुक्त से निष्पक्ष, त्वरित और पारदर्शी जाँच की विशेष मांग की है। अब जिला प्रशासन के पास तीन विकल्प हैं—(1) शिकायत का स्वतः संज्ञान लेकर रिकॉर्ड-आधारित जाँच कराना, (2) संबंधित संस्थानों से प्रमाण पत्रों की प्रत्यक्ष पुष्टि कराना, व (3) जरूरत पड़ने पर चयनित उम्मीदवार पर आपराधिक या अनुशासनात्मक प्रकरण चलाने हेतु उपयुक्त प्राधिकारी को रिपोर्ट भेजना।
यदि जांच में लागत, स्वीकृति प्रक्रिया या मानदण्डों में संसोधन के औचित्य पर उत्तर नहीं मिला तो भर्ती प्रक्रिया की विश्वसनीयता गंभीर रूप से प्रभावित होगी और जिले में सरकारी नियुक्तियों पर चिन्ता बढ़ेगी।
न्यूज़ देखो: भर्ती पारदर्शिता पर सवाल—प्रशासन को तेज और निष्पक्ष जाँच करनी होगी
यह मामला साफ़ तौर पर दिखाता है कि सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और नियमों का कड़ाई से पालन कितनी अहमियत रखता है। अगर आरोप सत्य पाए जाते हैं तो न केवल चयन रद्द होना चाहिए, बल्कि भर्ती पद्धति में संभावित कमियों की पहचान कर उन्हें दुरुस्त करने हेतु ठोस कदम उठाने होंगे। प्रशासन से अब अपेक्षा की जाती है कि वह त्वरित, निष्पक्ष और सार्वजनिक रूप से जाँच कर के परिणामों को साझा करे ताकि जनता का भरोसा बना रहे।
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जवाबदेही और पारदर्शिता से ही मजबूत होगी भर्ती व्यवस्था
यह समय है कि प्रशासन निष्पक्ष जाँच कराकर जनता के समक्ष जवाब दे—भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करना ही बेहतर प्रशासन और सशक्त समाज का मार्ग है। यदि आप भी भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता चाहते हैं तो इस खबर को शेयर कर व्यापक चर्चा को प्रोत्साहित करें और अपनी राय कमेंट में दें ताकि स्थानीय प्रशासन को कार्रवाई के लिए दबाव बन सके।





