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करोड़ों का अस्पताल – ‘कछुआ’ की चाल: चैनपुर में स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, झोला छाप डॉक्टरों के भरोसे ग्रामीण

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#गुमला #स्वास्थ्य_संकट : अनुमंडल स्तरीय अस्पताल निर्माण ठप—गांवों में इलाज के अभाव से बढ़ी परेशानी
  • चैनपुर प्रखंड में बन रहा अनुमंडल स्तरीय अस्पताल वर्षों से धीमी गति का शिकार।
  • निर्माण विलंब से ग्रामीणों को गुमला और जशपुर जैसे दूरस्थ स्थानों पर जाना पड़ रहा है।
  • गरीब ग्रामीणों को इलाज के लिए धान-चावल या मवेशी बेचने तक की नौबत आती है।
  • उपायुक्त प्रेरणा दीक्षित की सख्ती के बाद भी संवेदक पर कोई असर नहीं।
  • मेरी लकड़ा और प्रमोद खलखो ने निर्माण एजेंसी और अधिकारियों की लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताई।
  • अस्पताल के अभाव में झोला छाप डॉक्टरों और निजी क्लिनिकों का बोलबाला जारी।

चैनपुर प्रखंड में करोड़ों की लागत से बन रहे अनुमंडल स्तरीय अस्पताल का निर्माण वर्षों से कछुआ चाल से चल रहा है, जिससे यहां के ग्रामीणों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी भारी संघर्ष करना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि साधारण बुखार, चोट या सामान्य इलाज के लिए भी लोगों को गुमला या पड़ोसी राज्य जशपुर तक जाना पड़ता है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार इलाज का खर्च जुटाने के लिए धान, चावल या यहां तक कि गाय-बैल बेचने को मजबूर हो जाते हैं। स्थानीय जनता का मानना है कि अस्पताल शुरू हो जाए तो उन्हें निजी क्लिनिकों में महंगे इलाज और झोलाछाप डॉक्टरों की मनमानी से राहत मिलेगी।

अस्पताल निर्माण में लापरवाही—नाराजगी के बावजूद बदस्तूर जारी धीमी गति

कुछ माह पूर्व गुमला उपायुक्त प्रेरणा दीक्षित ने निर्माण स्थल का निरीक्षण करते हुए संवेदक ठेकेदार की खामियों पर सख्त आपत्ति दर्ज की थी। उन्होंने कार्य में सुस्ती के लिए प्रखंड विकास पदाधिकारी के मासिक वेतन पर भी रोक लगा दी थी। इसके बावजूद निर्माण गति में कोई ठोस सुधार नहीं हुआ, जिससे प्रशासनिक निर्देशों की प्रभावशीलता पर भी सवाल उठ रहे हैं।

जनप्रतिनिधियों का प्रहार: “जनता त्रस्त है और अधिकारी मस्त”

जिला परिषद सदस्य मेरी लकड़ा ने निर्माण कार्य की प्रगति पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा:

मेरी लकड़ा ने कहा: “जनता त्रस्त है और अधिकारी मस्त हैं। छोटे से छोटे इलाज के लिए भी गुमला रेफर कर देना निंदनीय है। अस्पताल बन जाए तो ग्रामीणों को त्वरित इलाज मिलेगा और कई परेशानियों से मुक्ति मिलेगी।”

इसी तरह, कांग्रेस प्रखंड अध्यक्ष सह उप प्रमुख प्रमोद खलखो ने निर्माण एजेंसी और अधिकारियों की उदासीनता पर सवाल उठाते हुए कहा:

प्रमोद खलखो ने कहा: “कार्य की धीमी गति से सभी अवगत हैं, लेकिन फिर भी कोई प्रगति नहीं हो रही है। जिम्मेदार लोग सिर्फ कागजों पर काम दिखा रहे हैं।”

झोला छाप डॉक्टरों पर बढ़ती निर्भरता—ग्रामीणों के स्वास्थ्य से खिलवाड़

अस्पताल के अभाव में चैनपुर में छोटे-छोटे निजी क्लिनिकों और झोला छाप डॉक्टरों का वर्चस्व बढ़ गया है। ग्रामीण दावा करते हैं कि ये लोग भारी फीस वसूलते हैं और कई बार गलत उपचार कर मरीजों की हालत और बिगाड़ देते हैं। सरकारी अस्पताल न होने के कारण स्थानीय लोग विवश हैं और विकल्प के नाम पर उनके पास यही निजी व्यवस्था बचती है।

निरीक्षण के नाम पर खानापूर्ति, कार्य में तेजी की मांग

ग्रामीणों का आरोप है कि उच्च अधिकारियों द्वारा सिर्फ औपचारिक निरीक्षण किया जाता है, लेकिन निर्माण कार्य को गति देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। लोगों का कहना है कि यह स्वास्थ्य परियोजना पूरे चैनपुर के लिए जीवनरेखा साबित हो सकती है, बशर्ते इसे प्राथमिकता में रखते हुए समय पर पूरा किया जाए।

न्यूज़ देखो: चैनपुर की सेहत अधर में—जवाबदेही तय करना जरूरी

चैनपुर में अस्पताल निर्माण की सुस्ती बताती है कि प्रशासनिक स्तर पर जवाबदेही की बड़ी कमी है। ग्रामीणों की बढ़ती पीड़ा, महंगे निजी इलाज का बोझ और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव स्थिति को गंभीर बनाता है। सरकार और प्रशासन अगर समय रहते हस्तक्षेप करें, तो यह अस्पताल हजारों लोगों की जिंदगी बदल सकता है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

अस्पताल बनेगा तो बदलेगी तस्वीर—आवाज़ उठाएं, अधिकार मांगें

चैनपुर के लोग वर्षों से एक ऐसे अस्पताल का इंतजार कर रहे हैं, जो उनकी ज़रूरत नहीं बल्कि अधिकार है। स्वास्थ्य सेवाएं हर नागरिक की मूल आवश्यकता हैं और इसे टालना किसी भी तरह उचित नहीं। जब ग्रामीण अपनी आवाज़ मिलाते हैं, तभी व्यवस्था जागती है—अब समय है कि जनता जिम्मेदारों से हिसाब मांगे।

आप क्या सोचते हैं—अस्पताल निर्माण में देरी का असली कारण क्या है?
कमेंट कर अपनी राय बताएं, इस खबर को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं और चैनपुर की आवाज़ को मजबूत बनाएं।

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