
#महुआडांड़ #विकास_संकट : पंचायतों में फंड न मिलने से ठप पड़े सभी काम मुखियाओं ने कहा – सरकार मइया योजना में मस्त, गांव बेहाल
- महुआडांड़ अनुमंडल की पंचायतों में सड़क, नाली, जलमीनार और शौचालय निर्माण के सभी कार्य ठप पड़े हैं।
- एक वर्ष से पंचायतों को न तो मुखिया फंड मिला, न पंचायत समिति फंड का एक रुपया।
- मुखिया रेणु तिग्गा, प्रमिला मिंज और रामबिशुन नगेशिया ने फंड रोकने पर सरकार से कड़ा सवाल उठाया।
- ग्रामीण मदन प्रसाद, अजय तिर्की, मंदिप सिंह, केशव नगेशिया और राजन प्रसाद ने कहा – गांवों में विकास पूरी तरह थम गया है।
- सरकार घोषणाओं और प्रचार योजनाओं में उलझी, जबकि पंचायतों में टूटी नालियां और जर्जर सड़कें इंतजार कर रही हैं।
महुआडांड़ (लातेहार) अनुमंडल की पंचायतों में इन दिनों विकास कार्य पूरी तरह ठप हो गए हैं। ग्रामीण इलाकों में न सड़क की मरम्मत हो रही है, न नाली का निर्माण, न पेयजल आपूर्ति की समस्या का समाधान। पंचायतों को पिछले एक साल से फंड नहीं मिलने के कारण योजनाएं अधर में लटकी पड़ी हैं। सरकार की “विकास” और “मइया योजना” की घोषणाओं के बीच गांवों की सच्चाई यह है कि अब पंचायत कार्यालयों में सन्नाटा पसरा है और मजदूरों को भुगतान तक नहीं हो पा रहा।
पंचायतों की आवाज़ — फंड के बिना रुका विकास
स्थानीय मुखियाओं का कहना है कि पिछले एक वर्ष से पंचायतों को मुखिया फंड और पंचायत समिति फंड नहीं मिला है। इससे गांवों में विकास कार्य रुक गए हैं। गड़बुढ़नी पंचायत की मुखिया रेणु तिग्गा, महुआडांड़ पंचायत की मुखिया प्रमिला मिंज, और नेतरहाट पंचायत के मुखिया रामबिशुन नगेशिया ने सरकार से सवाल उठाया कि आखिर कब तक पंचायतें फंड की प्रतीक्षा करती रहेंगी।
महुआडांड़ की मुखिया प्रमिला मिंज ने कहा कि
“सरकार गांव-गांव विकास की बातें करती है, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं। पंचायतों के पास फंड न होने से जनता के बीच हमारी विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है।”
गड़बुढ़नी की मुखिया रेणु तिग्गा ने बताया कि कई बार जिला मुख्यालय को आवेदन भेजा गया, पर कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि पंचायतों को सशक्त करने का दावा करने वाली सरकार अब पंचायतों को पंगु बना रही है।
ग्रामीणों की पीड़ा — “क्या गांव सिर्फ वोट देने के लिए हैं?”
स्थानीय ग्रामीण मदन प्रसाद, अजय तिर्की, मंदिप सिंह, केशव नगेसिया और राजन प्रसाद ने कहा कि फंड न मिलने से गांवों में नाली, सड़क और जलमीनार निर्माण रुक गया है। गांवों में विकास का पहिया थम चुका है। ग्रामीणों ने कहा कि सरकार केवल योजनाओं की घोषणा कर रही है, जबकि गांवों की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है।
ग्रामीण अजय तिर्की ने सवाल किया: “जब मुख्यमंत्री और मंत्री गांव-गांव विकास की बातें करते हैं, तो फिर पंचायतों को पैसा क्यों नहीं? क्या गांव सिर्फ वोट देने के लिए हैं?”
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने जल्द फंड जारी नहीं किया तो वे सड़क से लेकर प्रखंड कार्यालय तक आंदोलन करेंगे।
विकास की फाइलें धूल फांक रहीं, अधिकारी मौन
सूत्रों के अनुसार, पंचायतों की फंड फाइलें महीनों से जिला मुख्यालय में लंबित हैं। कोई अधिकारी स्पष्ट जवाब नहीं दे रहा। निर्माण कार्य अधर में हैं, और मजदूरों को भुगतान तक नहीं हो पा रहा। कई मुखियाओं ने बताया कि अधूरे प्रोजेक्ट अब सड़कों पर बदनुमा निशान बन चुके हैं।
न्यूज़ देखो: गांवों की हालत ने खोली सरकार की पोल
यह खबर झारखंड की पंचायत व्यवस्था की हकीकत को उजागर करती है। एक ओर सरकार नई योजनाओं और प्रचार अभियानों में व्यस्त है, वहीं दूसरी ओर गांवों में टूटी नालियां और जर्जर सड़कें विकास की कहानी खुद बयां कर रही हैं। पंचायतों को अधिकार और संसाधन दिए बिना “आत्मनिर्भर ग्राम” का सपना अधूरा रहेगा।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
अब वक्त जवाब का — गांवों की आवाज़ सत्ता तक पहुंचाने का समय
अब समय है कि पंचायत प्रतिनिधि और ग्रामीण एकजुट होकर अपने अधिकारों की मांग करें। विकास योजनाओं को धरातल पर उतारना सिर्फ़ घोषणा नहीं, बल्कि जिम्मेदारी है।
सजग रहें, सक्रिय बनें। अपनी पंचायत की समस्या साझा करें, इस खबर को दोस्तों तक पहुंचाएं ताकि सत्ता तक गांवों की आवाज़ पहुंचे और असली विकास का रास्ता खुले।




