
#रांची #राजनीतिक_विवाद : सत्ता पक्ष और विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू
- केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने झारखंड में Special Intensive Revision (S.I.R.) की घोषणा की।
- भाजपा का दावा: अब वोटर लिस्ट से फर्जी और अवैध मतदाताओं को हटाया जाएगा।
- झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने कहा: यह सुधार नहीं, बल्कि राजनीतिक सफाया है।
- मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बोले: यह गरीबों और अल्पसंख्यकों के अधिकार छीनने की साजिश है।
- बाबूलाल मरांडी ने पलटवार किया: लोकतंत्र असली मतदाताओं के बिना नहीं चल सकता।
रांची। सर्दियों की दस्तक से पहले ही झारखंड की राजनीति का पारा चढ़ गया है। केंद्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा Special Intensive Revision (S.I.R.) की तारीख़ों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक बयानबाज़ी का दौर शुरू हो गया है। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों इस प्रक्रिया को अपने-अपने नजरिए से देख रहे हैं—एक पक्ष इसे लोकतांत्रिक सुधार, तो दूसरा राजनीतिक खेल बता रहा है।
मतदाता सूची या सियासी सूची?
चुनाव आयोग के मुताबिक़, मृत, पलायन कर चुके और फर्जी मतदाताओं के नामों को सूची से हटाना एक नियमित और आवश्यक प्रक्रिया है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह मुद्दा अब “पहचान बनाम राजनीति” की बहस में बदल गया है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा: “S.I.R. के नाम पर गरीबों, दलितों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कुचलने की कोशिश की जा रही है।”
वहीं, विपक्ष ने आयोग के फैसले को समर्थन देते हुए इसे “लोकतंत्र की सफाई” बताया है।
भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा: “अगर मतदाता असली नहीं हैं, तो लोकतंत्र किसके नाम पर चलेगा?”
इस बीच, स्थानीय चर्चाओं में जनता ने भी तंज़ कसा है—“जब सफाई की बात आती है तो नेता खुद को सैनिटाइज़र समझने लगते हैं, और जनता को वायरस।”
वोटर लिस्ट सुधार या राजनीतिक रणनीति?
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि S.I.R. केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं बल्कि राजनीतिक भूगोल को बदल देने वाला कदम साबित हो सकता है। आंकड़े बताते हैं कि पूर्व में बिहार में ऐसे ही संशोधन के दौरान करीब 35 लाख मतदाताओं के नाम कटे थे। इसी आधार पर झारखंड के विपक्षी दलों में आशंका है कि इस बार भी कई इलाकों में वोटर संख्या घट सकती है।
लेकिन इसके साथ ही एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि कटा हुआ नाम भी अगले चुनाव में “भावनात्मक मुद्दा” बन जाता है। जनता अब इस प्रक्रिया को “राजनीतिक निवेश” की तरह देख रही है—जहाँ आज खोया हुआ वोट, कल आंदोलन की ऊर्जा बन सकता है।
जनता के सवाल और नेताओं की जवाबदेही
ग्रामीण इलाकों में अब लोग मज़ाक में पूछ रहे हैं—“कहीं ऐसा न हो कि वोट देने गए, लेकिन नाम लिस्ट में बंगाल चला गया!” यह व्यंग्य उस वास्तविक डर की झलक है जो लोगों के मन में मौजूद है।
झारखंड जैसे संवेदनशील राज्यों में जहाँ जनजातीय पहचान, पलायन और सीमावर्ती राजनीति का प्रभाव गहरा है, वहाँ मतदाता सूची में नाम होना सिर्फ वोट का अधिकार नहीं, बल्कि अस्तित्व का प्रमाणपत्र भी है।
विश्लेषक मानते हैं कि आने वाले महीनों में S.I.R. की प्रक्रिया सियासी रिपोर्ट कार्ड की तरह इस्तेमाल होगी। प्रत्येक दल यह दिखाना चाहेगा कि उसके समर्थकों के नाम सुरक्षित हैं, जबकि विरोधियों के नाम सूची से गायब।
सियासी गणित की नई बिसात
S.I.R. अब महज़ वोटर लिस्ट संशोधन नहीं, बल्कि “सियासी रिपेयरिंग” का मौका बन गया है। भाजपा इसे “भ्रष्ट तंत्र की सफाई” बता रही है, जबकि झामुमो इसे “राजनीतिक षड्यंत्र” कहकर जनता को चेतावनी दे रही है।
जनता के बीच चर्चा है कि असली “डेमोग्राफी” तो नेताओं की ही है—जो हर चुनाव में दल, विचार और वादे बदलते रहते हैं।
राजनीतिक विश्लेषणों में यह भी कहा जा रहा है कि यह प्रक्रिया राज्य के सामाजिक समीकरणों पर गहरा असर डालेगी। यदि हजारों नाम सूची से हटे, तो कई सीटों पर परिणाम पूरी तरह बदल सकते हैं।
न्यूज़ देखो: लोकतंत्र की सफाई या सियासत की धूल?
S.I.R. का असली उद्देश्य मतदाता सूची को पारदर्शी बनाना है, लेकिन यह प्रक्रिया तभी सफल होगी जब सभी दल इसे निष्पक्ष भावना से अपनाएं। अगर यह सुधार राजनीतिक हथियार बन गया, तो लोकतंत्र की बुनियाद पर अविश्वास की परत जम जाएगी।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
सजग नागरिक ही लोकतंत्र की ताकत
लोकतंत्र केवल मतदान का अधिकार नहीं, बल्कि सतर्क नागरिकता की जिम्मेदारी भी है। S.I.R. जैसे कदम तभी सार्थक होंगे जब जनता अपने नाम, अधिकार और ज़िम्मेदारी को समान रूप से समझे।
अब वक्त है कि हम मतदाता सूची को केवल “कागज़ का दस्तावेज़” न समझें, बल्कि अपने लोकतांत्रिक अस्तित्व का प्रतीक मानें।
सजग बनें, सूची में अपना नाम जांचें, और दूसरों को भी प्रेरित करें।
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