
- होलिका दहन में लकड़ी की जगह गौ काष्ठ के उपयोग को बढ़ावा।
- गौशाला समिति ने बड़े पैमाने पर गौ काष्ठ का उत्पादन किया।
- गोबर और लकड़ी के बुरादे से तैयार किया जा रहा गौ काष्ठ।
- लकड़ी की तुलना में कम कीमत, कम धुआं और अधिक पर्यावरण हितैषी।
- होटल, रेस्टोरेंट और हवन-पूजन में भी बढ़ रही मांग।
लकड़ी के बजाय गौ काष्ठ का बढ़ता उपयोग
पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए कोडरमा गौशाला समिति ने होलिका दहन के लिए बड़े पैमाने पर गौ काष्ठ तैयार किया है। इससे लकड़ी की खपत को कम किया जा सकेगा और पर्यावरण को भी फायदा होगा। गाय के गोबर से तैयार गौ काष्ठ पूरी तरह लकड़ी के समान दिखता है और जलने में भी उतना ही प्रभावी होता है।
गौ काष्ठ निर्माण की प्रक्रिया
गौशाला समिति ने गौ काष्ठ निर्माण के लिए विशेष मशीन लगाई है। इसमें
- 80% गोबर और 20% लकड़ी का बुरादा या कोयले का चूर्ण मिलाया जाता है।
- मशीन से 6 इंच मोटी और 4 फीट लंबी लकड़ी जैसी आकृति में गौ काष्ठ तैयार होता है।
- 10 रुपये प्रति किलो की दर से यह गौ काष्ठ लकड़ी से सस्ता और अधिक उपयोगी है।
- इस पहल से गौशाला के 8-10 लोगों को रोजगार भी मिला है।
गौ काष्ठ के फायदे
लकड़ी की तुलना में गौ काष्ठ जलाने से कम धुआं निकलता है, जिससे वायु प्रदूषण भी घटता है। इसके अलावा, जंगलों की अंधाधुंध कटाई पर भी रोक लगेगी।
गौशाला समिति का मानना है कि इस पर्यावरण हितैषी गौ काष्ठ का उपयोग
- होलिका दहन, हवन, पूजा-पाठ, होटल, रेस्टोरेंट और घरेलू जलावन के रूप में बड़े पैमाने पर किया जा सकता है।
- इसकी शुद्धता और कम प्रदूषण इसे हवन-पूजन के लिए भी उपयुक्त बनाती है।
‘न्यूज़ देखो’ की नज़र
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कोडरमा गौशाला समिति की यह पहल सराहनीय है। क्या झारखंड के अन्य जिलों में भी ऐसी पहल देखने को मिलेगी? ‘न्यूज़ देखो’ इस विषय पर लगातार अपनी नज़र बनाए रखेगा, क्योंकि “हर खबर पर रहेगी हमारी नज़र”।