
#रांची #स्थानीयनिकायविवाद – अनुदान रोके जाने, पंचायत अधिकारों और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी को लेकर बैठक में उठी तीखी आवाजें
- दो वर्षों से झारखंड के निकायों को नहीं मिला अनुदान, आयोग ने जताई चिंता
- 16वें वित्त आयोग ने राज्य सरकार से मांगा जवाब, बैठक में उठाया गया मामला
- पंचायती प्रतिनिधियों ने बालू की कमी को बताया योजनाओं में बाधा
- अनटाईड फंड की कमी से स्थानीय समस्याएं हल नहीं हो रहीं – मुखिया
- विधायकों और जिला परिषद सदस्यों के बीच भेदभाव का मुद्दा भी आया सामने
स्थानीय निकायों को अनुदान न मिलने पर 16वें वित्त आयोग की तीखी टिप्पणी
झारखंड में दो वर्षों से शहरी व ग्रामीण स्थानीय निकायों को किसी प्रकार का वित्तीय अनुदान नहीं मिला है, जिसे लेकर 16वें वित्त आयोग ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है। यह टिप्पणी उस समय सामने आई जब स्थानीय प्रतिनिधियों ने आयोग के समक्ष यह गंभीर मामला उठाया।
आयोग ने कहा कि अगर निकायों को फंड नहीं दिया जा रहा है, तो राज्य सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि किस कारणवश यह अनुदान रोका गया है, जबकि 15वें वित्त आयोग की अनुशंसाएं पहले से ही लागू हैं।
पंचायतों को चाहिए बालू पर अधिकार
बैठक के दौरान अबुआ आवास योजना के क्रियान्वयन में आ रही बालू की कमी की शिकायत कई पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा की गई। उन्होंने कहा कि बालू के अभाव में निर्माण कार्य ठप हो रहे हैं।
प्रतिनिधियों ने यह मांग भी रखी कि बालू खनन और उपयोग पर पंचायतों को अधिकार दिया जाए, ताकि योजनाओं को समय पर पूरा किया जा सके और ग्राम स्तर पर आत्मनिर्भरता बढ़े।
टाईड बनाम अनटाईड फंड: अनुपात पर असहमति
प्रतिनिधियों ने 60% टाईड और 40% अनटाईड फंड के मौजूदा ढांचे पर भी आपत्ति जताई। उनका कहना था कि अनटाईड फंड बहुत कम है, जिसके कारण स्थानीय जरूरतों जैसे सड़क, नाली, पानी आदि के छोटे लेकिन महत्वपूर्ण कार्य समय पर नहीं हो पाते।
“जब टाईड फंड योजनाबद्ध होता है और हम अपनी प्राथमिकताओं के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, तो स्थानीय निकायों की उपयोगिता कैसे बढ़ेगी?” — एक पंचायत प्रतिनिधि
जनप्रतिनिधियों में भेदभाव क्यों?
बैठक में रांची जिला परिषद की अध्यक्ष ने स्पष्ट कहा कि विधायकों को फंड और पेंशन जैसी सुविधाएं दी जाती हैं, जबकि जिला परिषद के निर्वाचित प्रतिनिधियों को नजरअंदाज किया जाता है। उन्होंने सवाल उठाया:
“हम भी जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि हैं, फिर हमसे यह भेदभाव क्यों?”
राज्य वित्त आयोग की रिपोर्ट और सिफारिशों की स्थिति
राज्य वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में शहरी निकायों और पंचायती राज संस्थाओं को राज्य के राजस्व में हिस्सेदारी देने की सिफारिश की है। इसके लिए विकास आयुक्त की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई है, जो इन अनुशंसाओं पर विचार कर रही है।
हालांकि, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि अब तक राज्य सरकार ने आयोग की अनुशंसा के आलोक में किसी भी निकाय को अनुदान नहीं दिया है, जिससे स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली बुरी तरह प्रभावित हुई है।
न्यूज़ देखो : पंचायतों की आवाज़ बनकर उभरी रिपोर्ट
न्यूज़ देखो आपको राज्य के प्रशासनिक तंत्र की हर परत से जोड़ता है। स्थानीय निकायों को अनुदान न मिलना झारखंड के विकास के लिए एक बड़ा रोड़ा है, और यह रिपोर्ट पंचायतों की वास्तविक पीड़ा और मांगों को सरकार तक पहुंचाने का माध्यम बनी है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
न्याय और संतुलित विकास की मांग करने वाली पंचायतों की आवाज अगर नजरअंदाज की गई, तो लोकतंत्र की नींव ही कमजोर हो जाएगी। आइए, हम सब मिलकर इस संघर्ष में उनके साथ खड़े हों।