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“मौत की राह” बना महुआडांड़–गारू मार्ग, लाखों की आबादी और पर्यटक संकरे और जर्जर रास्ते पर निर्भर

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#लातेहार #सड़क_संकट – वन्यजीव संरक्षण के नाम पर मानव जीवन संकट में, एंबुलेंस फंसती हैं, पर्यटक लौट रहे

  • महुआडांड़–गारू–छिपादोहर को जोड़ने वाला मुख्य मार्ग वर्षों से बदहाल
  • लगभग 5-6 लाख लोग एक ही जर्जर और संकरे रास्ते पर निर्भर
  • बीमारों की जान बचाना मुश्किल, एंबुलेंस जाम में फंसती हैं
  • सड़क की दुर्दशा के कारण पर्यटकों ने रुख मोड़ लिया
  • वन विभाग से एनओसी न मिलना बना विकास में सबसे बड़ी बाधा

बदहाली का पर्याय बन चुकी है यह सड़क

लातेहार जिला का महुआडांड़–गारू–छिपादोहर मार्ग आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी सिर्फ एकल लेन की जर्जर सड़क के रूप में मौजूद है। लगभग 5 से 6 लाख की आबादी के लिए यह इकलौता संपर्क मार्ग है — न केवल स्थानीय यात्रियों, बल्कि प्रशासनिक टीमों, पर्यटकों और मरीजों के लिए भी यही एक मात्र सहारा है।

हालात इतने खराब हो चुके हैं कि लोग अब इसे “मौत का रास्ता” कहने लगे हैं। घने जंगलों के बीच से गुजरती इस सड़क पर भयानक गड्ढे, अत्यधिक संकरी चौड़ाई और तेज रफ्तार वाहन हर दिन किसी न किसी हादसे को न्योता देते हैं।

एंबुलेंस नहीं पहुंचती, दम तोड़ते हैं मरीज

इस मार्ग पर यात्रा करना किसी संघर्ष से कम नहीं है। महुआडांड़, गारू और छिपादोहर से यदि किसी गंभीर मरीज को डलटनगंज मेडिकल सेंटर तक ले जाना हो, तो तीन घंटे से अधिक का वक्त लग जाता है, जबकि सामान्य स्थिति में यह दूरी डेढ़ घंटे में पूरी होनी चाहिए

सड़क इतनी तंग है कि दोनों ओर से वाहनों के आने पर घंटों जाम लग जाता है। कई बार मरीजों ने एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया है। यह सिर्फ प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि एक सामाजिक त्रासदी बन चुकी है।

असुरक्षा और अपराध भी बढ़े

सुनसान और संकरी सड़कों का अपराधी तत्व भी भरपूर लाभ उठा रहे हैंलूटपाट और चोरी की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिससे आम लोग तो डरते ही हैं, पर्यटक भी अब इस क्षेत्र से दूरी बना रहे हैं। पलामू टाइगर रिजर्व और गारू जैसे क्षेत्रों की प्राकृतिक खूबसूरती और जैव विविधता को देखने आने वाले विदेशी और देशी पर्यटक इस रास्ते की हालत देखकर अपने कदम पीछे खींच रहे हैं।

वन विभाग की बाधा या बहाना?

स्थानीय लोगों का आरोप है कि वन विभाग सड़क चौड़ीकरण की अनुमति नहीं देता, क्योंकि इससे वन्यजीवों को खतरा हो सकता है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि आधुनिक तकनीकों जैसे ग्रीन ब्रिज, एलिवेटेड रोड और सोलर फेंसिंग के ज़रिए पर्यावरण को बचाते हुए भी डबल लेन सड़क का निर्माण संभव है। जरूरत है तो बस सरकारी इच्छाशक्ति की।

जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की चुप्पी

सबसे चिंताजनक बात यह है कि न तो किसी सांसद ने, न विधायक ने और न ही जिला प्रशासन ने अब तक इस मुद्दे को प्राथमिकता दी है। कोई सर्वे, कोई प्रस्ताव, कोई मांग पत्र अब तक सरकार के समक्ष नहीं भेजा गया। जनता अब यह सीधा सवाल कर रही है:

“क्या सिर्फ जानवरों की सुरक्षा की कीमत पर लाखों इंसानों की जिंदगी को दांव पर लगाया जा सकता है?”

समाधान की दिशा में उठने चाहिए ठोस कदम

आज की तकनीक इस समस्या का समाधान कर सकती है — चाहे वह एलिवेटेड डबल लेन रोड हो या ग्रीन ब्रिज और तारबंदी। सवाल बस नीति निर्धारण और प्राथमिकता का है। यदि सरकार पर्यावरण और मानव जीवन के बीच संतुलन बनाना चाहे, तो यह एक आदर्श उदाहरण बन सकता है।

न्यूज़ देखो : सड़क की नहीं, सरकार की नीयत की परीक्षा

न्यूज़ देखो इस मुद्दे को केवल सड़क की नहीं, बल्कि सरकार की नीयत और नीति की परीक्षा मानता है। जब सवाल लाखों की जान का हो, तब चुप्पी सबसे बड़ा अपराध बन जाती है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

अब समय है कि लातेहार की जनता अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाए, और सरकार अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाए। क्योंकि सड़कें केवल कनेक्टिविटी नहीं, जीवन की धड़कन होती हैं।

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