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गढ़वा में मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना में बड़ा घोटाला: आपूर्तिकर्ता के परिवार खुद बने लाभुक

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#गढ़वा #भ्रष्टाचार : सरकारी योजना के नाम पर खुद और परिवार को बनाया लाभुक – करोड़ों की राशि की हुई हेराफेरी
  • गढ़वा जिले में मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना में करोड़ों रुपये के घोटाले का खुलासा हुआ।
  • आपूर्तिकर्ता उपेंद्र यादव ने खुद और अपने परिवार के 22 सदस्यों को योजना का लाभुक बना लिया।
  • फर्जी आपूर्ति और कागजी योजना दिखाकर सरकारी राशि की निकासी की गई।
  • विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से चार सालों तक योजना में गड़बड़ी जारी रही।
  • जांच शुरू, दोषियों पर कार्रवाई का आश्वासन जिला गव्य विकास पदाधिकारी ने दिया।

गढ़वा जिले में मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना, जो किसानों और पशुपालकों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में झारखंड सरकार की एक महत्वाकांक्षी पहल है, अब भ्रष्टाचार के दलदल में फंसती दिख रही है। रमना प्रखंड के मड़वनिया गांव निवासी उपेंद्र यादव, जो इस योजना के आपूर्तिकर्ता (Supplier) भी हैं, उन्हीं पर आरोप है कि उन्होंने योजना के नाम पर खुद और अपने परिवार के 22 सदस्यों को लाभुक बना लिया। इस योजना में सरकार ने गरीब किसानों और पशुपालकों को गाय पालन, वर्मी कंपोस्ट, पनीर-खोआ यूनिट, चारा मशीन और डीप बोरिंग जैसी सुविधाएं देने की व्यवस्था की थी, लेकिन जांच में पाया गया कि अधिकांश आपूर्तियाँ सिर्फ कागजों पर की गईं।

कैसे चला यह ‘पशुधन खेल’

गव्य विकास विभाग के अभिलेखों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 से 2023-24 के बीच उपेंद्र यादव ने खुद के नाम पर चार बार, पत्नी सुषमा देवी के नाम पर पांच बार, भाई महेंद्र यादव और सुरेंद्र यादव के नाम पर क्रमशः चार और तीन बार, भाभी अनिता देवी और प्रमिला देवी के नाम पर दो-दो बार, जबकि मां कौली कुंवर और रिश्तेदार प्रतिमा देवी के नाम पर एक-एक बार योजना का लाभ लिया।
कुल मिलाकर चार वर्षों में 22 लाभुक नाम एक ही परिवार से जुड़े पाए गए।

इन लाभों के तहत गाय पालन इकाइयाँ, फॉडर गोदाम, डीप बोरिंग, वर्मी कंपोस्ट, जैविक खाद, और पनीर-खोआ यूनिट जैसी परियोजनाएँ दर्शाई गईं। लेकिन स्थल निरीक्षण में यह पाया गया कि इन परियोजनाओं में से कई केवल कागजों पर ही अस्तित्व में थीं, जबकि ज़मीन पर कोई वास्तविक ढांचा नहीं था।

मिलीभगत का जाल और प्रशासनिक लापरवाही

यह घोटाला तभी संभव हो पाया जब विभागीय अधिकारी और कर्मचारी भी इसमें शामिल रहे। जांच में यह बात सामने आई कि ऑडिट रिपोर्ट, सत्यापन दस्तावेज़, और मॉनिटरिंग रिकॉर्ड्स में भारी हेरफेर की गई।
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, विभाग में लंबे समय से तैनात कुछ कर्मचारी इस खेल में मुख्य भूमिका निभा रहे थे।
उनकी मिलीभगत से फर्जी लाभुक सूची, जाली बिल, और कथित आपूर्ति प्रमाणपत्र तैयार किए गए।

जिला गव्य विकास पदाधिकारी गिरीश कुमार ने कहा: “मामले की पूरी जांच कराई जा रही है। यदि कोई आपूर्तिकर्ता स्वयं लाभुक पाया गया तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।”

उन्होंने बताया कि सूची का मिलान किया जा रहा है और जांच रिपोर्ट राज्य मुख्यालय को भेजी जाएगी।

गरीब किसानों का हक मारने का आरोप

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस योजना का लाभ गरीब किसानों और पशुपालकों के लिए था, जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। लेकिन अब यह योजना एक ही परिवार की कमाई का जरिया बन गई।
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि विभागीय अधिकारी आंख मूंदकर इस पूरे घोटाले को वर्षों तक चलने देते रहे।
कई ग्रामीणों ने बताया कि जब उन्होंने योजना में आवेदन दिया तो उन्हें “कोटा भर जाने” का बहाना बनाकर मना कर दिया गया, जबकि वही लाभ एक ही परिवार को बार-बार मिल रहा था।

सरकार से उच्चस्तरीय जांच की मांग

इस खुलासे के बाद स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राज्य सरकार से उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि जब तक पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाएगी, यह तय नहीं हो पाएगा कि जिले में और कितने ऐसे ‘कागज़ी लाभुक’ हैं।
लोगों का कहना है कि विभाग के अंदर सिस्टमेटिक करप्शन इतना गहरा है कि बिना ऊपर की मिलीभगत के यह संभव ही नहीं था।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और पशुपालन मंत्री से यह अपील की गई है कि वे इस मामले को गंभीरता से लें और सस्पेंडेड अफसरों के स्थान पर निष्पक्ष जांच टीम गठित करें।

न्यूज़ देखो: गरीबों के अधिकार पर चला भ्रष्टाचार का बुलडोजर

यह घटना सिर्फ एक घोटाला नहीं, बल्कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर लगे भ्रष्टाचार के दाग का प्रतीक है। जिस योजना का उद्देश्य गांवों के किसानों को सशक्त बनाना था, वह अब कुछ रसूखदारों की कमाई का ज़रिया बन चुकी है। सवाल यह भी है कि जब लाभुक सूची हर साल प्रकाशित होती है, तो यह गड़बड़ी चार साल तक छिपी कैसे रही।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

सजग नागरिक ही बदल सकते हैं व्यवस्था

यह मामला हमें यह सिखाता है कि पारदर्शिता सिर्फ सरकारी फाइलों में नहीं, जनजवाबदेही और निगरानी में भी जरूरी है। समाज को चाहिए कि वे योजनाओं के क्रियान्वयन पर स्थानीय स्तर पर नजर रखें ताकि भ्रष्टाचार की जड़ें वहीं काटी जा सकें।
अब वक्त है कि हम सब ईमानदारी और जनहित की मांग को मजबूत करें
अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को ज्यादा से ज्यादा साझा करें ताकि जागरूकता फैले और गरीबों का हक सुरक्षित रहे।

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